समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
सनातन धर्म में यह मान्यता है कि मनुष्य का शरीर पञ्चमहाभूतों या पंच तत्वों (पृथ्वी तत्व, जल तत्व, अग्नि तत्व, वायु तत्व, आकाश तत्व) से मिलकर बना है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बौद्ध धर्म में भी ‘स्कन्ध’ (Skandha) नामक पंच तत्व से मिलती-जुलती एक ऐसी ही अवधारणा है, जो मनुष्य के अस्तित्व का निर्माण करने वाले पांच समुच्चयों या घटकों को संदर्भित करती है।
संस्कृत भाषा के शब्द ‘स्कंध’, जिसे पाली भाषा में खन्ध कहा जाता है, का अर्थ ‘ढेर, समुच्चय, संग्रह या समूह’ होता है। बौद्ध धर्म में, यह शब्द पंचुपादानखंधा अर्थात शरीर रूपी जोड़ के पांच समुच्चयों (five aggregates of clinging) को संदर्भित करता है।ये समुच्चय ऐसे पांच भौतिक और मानसिक कारक होते हैं, जो लालसा और आसक्ति के उदय में भाग लेते हैं।
ये पांच समुच्चय निम्नलिखित दिए गए हैं:
ꕥरूप-स्कंध - रूप का समुच्चय।
ꕥवेदना-स्कंध - संवेदनाओं का समुच्चय।
ꕥसंज्ञा-स्कंध - मान्यता, धारणा या विचारों का समुच्चय।
ꕥसंस्कार-स्कंध - अस्थिर संरचनाओं (इच्छाओं और प्रवृत्तियों) का समुच्चय।
ꕥविज्ञान-स्कंध - चेतना का समुच्चय।
बौद्ध धर्म की सबसे प्राचीन थेरवाद परंपरा के अनुसार, दुख तब उत्पन्न होता है जब कोई व्यक्ति इन समुच्चयों के साथ अपनी पहचान को जोड़ लेता है, या इनसे आसक्ति बना लेता है। यदि वह स्कंधों से आसक्तियों को त्याग दे, तो उसकी सारी पीड़ा समाप्त हो जाती है। महायान परंपरा भी यह मानती है कि सभी समुच्चयों की प्रकृति आंतरिक रूप से स्वतंत्र अस्तित्व से रहित है। उपरोक्त पांच स्कंध यह समझने का एक तरीका है कि कैसे हमारे जीवन में सब कुछ लगातार बदल रहा है। कुछ भी स्थायी या अद्वितीय नहीं है। हमारे जीवन का हर पहलू कई अलग-अलग कारणों और स्थितियों पर निर्भर करता है।
उदाहरण के लिए,
1.रूप-स्कंध संसार में विद्यमान भौतिक वस्तुओं (जैसे हमारा शरीर और हमारे परिवेश) को संदर्भित करता है। इसमें भौतिक दुनिया, भौतिक शरीर और भौतिक इंद्रियां शामिल हैं। रूप-स्कंध की अवधारणा व्यक्ति के भौतिक अस्तित्व के आंतरिक और बाह्य दोनों रूपों के संग्रह को संदर्भित करती है । ये चीजें हमेशा बदलती रहती हैं।
2.वेदना-स्कंध हमारी भावनाओं से जुड़ा है, चाहे वे अच्छी हों, बुरी हों या तटस्थ हों। ये संवेदनाएं तब होती हैं जब आंतरिक ज्ञानेंद्रियां बाहरी वस्तुओं और संबंधित चेतना के संपर्क में आती हैं। ये भावनाएँ भी हमेशा बदलती रहती हैं।
3.संज्ञा-स्कंध यह बताता है कि हम अपनी इंद्रियों के माध्यम से जो कुछ भी अनुभव करते हैं, उसके प्रति हम कैसे धारणा विकसित कर लेते हैं। ये धारणाएं भी हमेशा बदलती रहती हैं।
4.संस्कार-स्कंध हमारे विचारों, इच्छाओं और आदतों को संदर्भित करता है। ये चीजें कई कारणों और स्थितियों पर निर्भर करती हैं और हमेशा बदलती रहती हैं।
5.विज्ञान-स्कंध हमारी चेतना से जुड़ा है, जो कई अलग-अलग हिस्सों से बनी है, और हमेशा बदलती रहती हैं। इसमें आंख, कान, नाक, जीभ, शरीर और मन की चेतना सहित छह प्रकार की चेतना शामिल होती है, जो निम्न प्रकार हैं-
𓁋नेत्र चेतना (चक्षुरविज्ञान)
𓁋कर्ण चेतना (श्रोत्विज्ञान)
𓁋नाक की चेतना (घ्राणविज्ञान)
𓁋जीभ चेतना (जिह्वाविज्ञान)
𓁋शरीर चेतना (कायविज्ञान)
𓁋मन की चेतना (मनोविज्ञान)
स्कंधों की अवधारणा उन विभिन्न घटकों को तोड़ने में मदद करती है जो किसी व्यक्ति के अनुभव और उनके आसपास की दुनिया के साथ उसके संबंध को बनाते हैं। बौद्ध धर्म के अनुसार, इन विचारों को समझने पर ही हम इनका त्याग कर सकते हैं। यह विचार दुख का कारण बनते है, इसलिए यदि हम इनका त्याग कर दें तो हम दुख से मुक्त हो सकते हैं। बौद्ध दर्शन के अनुसार, स्कंधों पर नियंत्रण करके, आत्म-ग्राह्यता पर काबू पाया जा सकता है। स्वयं के बारे में विकृत दृष्टिकोण ही दुख का मूल कारण होता है।
विद्वानों ने स्कंधों की विभिन्न व्याख्याएं की हैं, जो बौद्ध शिक्षाओं पर विभिन्न दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोणों को दर्शाती हैं। थानिसारो (Thanissaro) का तर्क है कि स्कंधों का विवरण किसी व्यक्ति के घटकों के रूप में करने के बजाय इन्हें उन गतिविधियों के रूप में देखा जाना चाहिए जो पीड़ा का कारण बनती हैं। उनका सुझाव है कि स्कंधों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर अस्वास्थ्यकर कार्यों को बाधित किया जा सकता है, जिससे पीड़ा समाप्त हो सकती है।
बौद्ध धर्म सिखाता है कि मनुष्य के लिए कुछ भी “सार” नहीं है। इसको समझाने के लिए बुद्ध ने रथ का उदाहरण दिया। एक रथ कई चीजों या भागों से मिलकर बना होता है, और उन भागों में से किसी एक के बिना कोई भी रथ पूरा नहीं हो सकता। इसी तरह, एक व्यक्ति या स्वयं की अवधारणा भी ऐसे सभी भागों के एक साथ काम करने से बनी है। हालाँकि, एक रथ की तरह, ‘स्व’ एक निश्चित और अपरिवर्तनीय चीज़ के रूप में मौजूद नहीं है। यह लगातार बदल रहा है और विभिन्न कारकों से प्रभावित हो रहा है।
यह रूपक एक दार्शनिक तर्क के लिए नहीं है, बल्कि एक अनुस्मारक है, जो हमें बताता है कि हमें सावधान रहना चाहिए , और अपने या अपने आसपास की दुनिया से जुड़ी निश्चित अवधारणाओं और विचारों से चिपके नहीं रहना चाहिए। हमें यह पहचानना चाहिए कि सब कुछ लगातार बदल रहा है और विकसित हो रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ZgQ1YR
https://bit.ly/3ZetdsM
https://bit.ly/3JIS0PJ
चित्र संदर्भ
1. बौद्ध भिक्षु और पांच स्कंधों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
2. मानव शरीर संरचना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. थानिसारो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.