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जैसा की आप जानते ही होंगे, मेरठ के पास सरधना शहर में एक पुराना चर्च है। इस चर्च से जुड़ी कुछ बातें आज भी 19वीं शताब्दी के वास्तुकला, इतिहास और लैंगिक भूमिकाओं के बारे में एक जीवंत विषय का रूप ले लेती है। इसी चर्चा का एक और केंद्र बिंदु है, और वह बेगम समरू है।
‘बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेसेस’ (Basilica of Our Lady of Graces) हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से 19 किमी उत्तर-पश्चिम में सरधना शहर में स्थित एक रोमन कैथलिक चर्च है। ‘बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेस’, जिसे ‘चर्चों में चर्च’ (Church among the Churches) के रूप में भी जाना जाता है, यीशु (Christ) की माँ ‘वर्जिन मैरी’ (Virgin Mary) को समर्पित है । इस चर्च का निर्माण एक मुस्लिम नर्तिका बेगम समरू द्वारा कराया गया था, जिन्होंने एक यूरोपीय सैनिक वाल्टर रेनहार्ड्ट सोम्ब्रे (Walter Reinhardt Sombre) से विवाह के पश्चात 1781 में रोमन कैथलिक धर्म में अपना धर्म परिवर्तन कर लिया और फिर जोआना नोबिलिस (Joanna Nobilis) नाम अपना लिया। उन्हें भारत की एकमात्र कैथलिक महिला शासक माना जाता है जिन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में सरधना की रियासत पर शासन किया था। यह चर्च उत्तर भारत में सबसे बड़ा चर्च है।
1778 में पति की मृत्यु के बाद बेगम समरू को सरधना की जागीर विरासत में मिली। इसके बाद, उन्होंने सरधना शहर में वर्जिन मैरी को समर्पित एक चर्च बनाने का फैसला किया। इस चर्च के निर्माण में कुल 4 लाख रुपए खर्च हुए थे , जो उन दिनों वास्तव में एक बड़ी राशि थी। शीर्ष राजमिस्त्रियों को प्रति दिन 25 रुपए के बराबर भुगतान किया जाता था। कहा जाता है कि चर्च के पास बनी दो विशाल झीलें उस मिट्टी के उत्खनन का परिणाम हैं जिसे चर्च के लिए निर्माण सामग्री की आपूर्ति के लिए निकाला गया था।
बेगम समरू ने पोप (Pope) से सरधना को एक स्वतंत्र क्षेत्र घोषित करने का अनुरोध किया। पोप दुनिया भर में कैथलिक चर्च के प्रमुख होते है। 1834 में, पोप ग्रेगरी XVI (Pope Gregory XVI) ने तिब्बत और हिंदुस्तान के अपोस्टोलिक विकेरिअट (Apostolic Vicariate) के तहत सरधना के अपोस्टोलिक विकेरिअट की स्थापना की। परंतु फिर बाद में, सरधना के अपोस्टोलिक विकेरिअट को आगरा के अपोस्टोलिक विकेरिअट में मिला दिया गया था। अपोस्टोलिक विकेरिअट से अभिप्राय मिशनरी क्षेत्रों में स्थापित कैथलिक चर्च के एक प्रकार के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से है।
चर्च के वास्तुकार एंटोनियो रेघेलिनी (Antonio Reghellini) थे, जो इटली (Italy) देश के विसेंज़ा (Vicenza) शहर से थे। इस चर्च की वास्तुकला रोम (Rome) के सेंट पीटर्स बेसिलिका (St. Peter’s Basilica) चर्च पर आधारित है, जिसमें इटली के जाने माने वास्तुकार एंड्रिया पैलैडियो (Andrea Palladio) और कुछ भारतीय वास्तुशिल्पकारों का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। चर्च की वेदी (Altar) और उसके चारों ओर का स्थान रंगीन पत्थरों और संगमरमर से बना हुआ है। बाकी का अधिकांश आंतरिक भाग भी संगमरमर से ही बना हुआ है, और प्रत्येक वस्तु एवं स्थान उच्चतम शिल्प कौशल का उदाहरण है। यह चर्च गुंबद में स्थापित एक अष्टकोण से आने वाले सूर्य के प्रकाश द्वारा प्रकाशित होता है ।
इस चर्च का निर्माण कार्य 11 वर्षों में पूर्ण हुआ । यह चर्च अर्द्ध कीमती पत्थर के काम,एक ग्रीक उपनिवेशित बरामदा, रंगीन कांच के गुंबद के साथ एक ऊंची वेदी ,दो मीनारें और तीन रोमन गुंबद आदि के लिए विख्यात है और यही सब मिलकर इस इमारत की भव्यता को बढ़ाते हैं। इस पुण्य स्थान के पास बेगम के मकबरे पर 18 फीट ऊंची एक स्मारकीय मूर्ती भी है। इटली के एक मूर्तिकार एडैमो ताडोलिनी (AdamoTadolini) द्वारा उकेरी गई इस प्रतिमा में सिंहासन पर बैठी हुई बेगम सुमरू को हुक्का पीते हुए दर्शाया गया है, साथ ही इसमें उन्हें बादशाह शाह आलम II के एक सूचीपत्र के साथ दर्शाया गया है जिसमे उनकी पति की मृत्यु के बाद उन्हें सरधना की जागीर प्रदान करने का उल्लेख है। इस प्रतिमा में ही उनके दत्तक पुत्र डेविड डायस सोम्ब्रे (David Dyce Sombre) और उनके दीवान राय सिंह को भी चित्रित किया गया है, जो मोतीलाल नेहरू के परदादा थे।
भारत में 18 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध न केवल उथल-पुथल भरे बदलावों का समय था बल्कि यह विशेष पहचानों को फिर से खोजने के अवसरों का भी समय था। और बेगम समरू इस पुन: आविष्कार के समय की एक प्रतीक थीं। वह उत्तरी भारत में महान राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के दौर से गुज़री। एक मुस्लिम नृत्यांगना से एक कैथलिक धर्मांतरित स्त्री, तथा बाद में सरधना के शासक के रूप में एक जागीर और एक भारतीय जोन ऑफ आर्क (Joan of Arc) जैसी सेनाओं की कमान संभालने वाली ऐसी महिला का यह जीवनक्रम वास्तव में प्रेरणादायक है।
यह चर्च बेगम समरू की सामंतवादी भावना और उपमहाद्वीप में बड़े पैमाने पर प्रोटेस्टेंट (Protestant) धार्मिक परिदृश्य के होते हुए भी कैथलिक विश्वास के एक समर्थक के रूप में गिने जाने की उनकी खोज का प्रतीक है और इसी बात ने भावी पीढ़ी के लिए उनकी विरासत को आकार दिया है। प्रोटेस्टेंट, कैथलिक चर्च से अलग हुए धार्मिक समूह थे।
चर्च की एक अनूठी विशेषता इसका मकबरा है, जिसे मुगल शताब्दी से समाविष्ट माना जाता है। लखनऊ के क्लाउड मार्टिन (Claude Martin) के कॉन्स्टेंटिया (Constantia), दिल्ली के डेविड ऑक्टरलोनी (David Ochterlony) के मुबारक बाग और सरधना चर्च के बीच वास्तुशिल्प समानताएं भी देखी जा सकती हैं। सैन्य साहसिकों और भारतीय शासकों के बीच के सौहार्द से संस्कृतियों का एक मिश्रण उत्पन्न हुआ जिसका प्रभाव तत्कालीन निर्माण कला शैली पर देखा जा सकता है ।
ऐसा माना जाता है कि चर्च की निर्माण शैली बेगम समरू के जीवन और उनके रूढ़ियों को तोड़ने के तरीके को दर्शाती है।
एक शासक के रूप में, बेगम के व्यक्तिगत और व्यावसायिक कौशल ने उन्हें दिल्ली में मुगल शासक और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) दोनों के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में सहायता की। मुगल और ब्रिटिश दोनों के साथ मित्रता में होना पश्चिमी संस्कृति को भारतीय संस्कृति से जोड़ने के लिए उनके महत्व को दर्शाता है।
यूरोपीय और भारतीय दरबारियों से घिरी बेगम को दर्शाती एक स्मारकीय 18 फीट ऊंची मूर्ति सरधना चर्च का केंद्रबिंदु है। भारतीय इतिहास की एकमात्र कैथलिक रानी होने से लेकर 18वीं शताब्दी के नारीवादी प्रतीक के रूप में याद किए जाने तक, बेगम समरू ने चर्च के रूप में अपनी विरासत छोड़ी है। और बहुत से लोग अभी भी वहां जाने के लिए काफी दूरी तय करते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3laquCM
https://bit.ly/3TjUp7U
चित्र संदर्भ
1. बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेसेस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बेगम समरू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेसेस’ के सामने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बेसिलिका ऑफ अवर लेडी ऑफ ग्रेसेस की भव्यता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सरधना चर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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