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शायराना मिजाज़ को अक्सर इश्क़ की तबियत से जोड़ा जाता है लेकिन जब इसी मजाज़ में तंज (व्यंग्य) और मजा़ह (हास्य) मिल जाते हैं तो कुछ ऐसे कलाम बनते है जिनको सुन कर दर्शक हँस-हँस के लोटपोट हो जाते हैं। मज़ाहिया शायरी उर्दू शेरो शायरी का एक और रूप है, जिसमें शायर अपने शेरों अथवा गज़लों में हास्य रस की अनुभूति कराता है। हास्य और व्यंग्य का मूल स्रोत हमारी हजारों बरस पुरानी संस्कृति, सभ्यता और जीवन दर्शन में देखा जा सकता है। प्राचीन उर्दू साहित्य से लेकर अब तक के उर्दू साहित्य में आपको हास्य और व्यंग्य के दर्शन होते रहे है। आज मुशायरों में मज़ाहिया उर्दू शेरो शायरी काफी लोकप्रिय है यहाँ तक की कई लोग मानते हैं कि अब सभी मुशायरे मज़ाहिया मुशायरे ही होते हैं। मुशायरों के इतिहास की बात करे तो 18वीं शताब्दी में अखबारों और सार्वजनिक सूचनाओं की कमी थी, इसलिए उस समय उर्दू शायरी लोगों के लिए सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के बारे में एक-दूसरे से संवाद करने का एक तरीका बन गई। संचार के इस माध्यम को सामान्य भाषा में "मुशायरा" कहा जाता था, जो एक सामाजिक घटना थी जहाँ कवि अपनी रचनाओं को दर्शकों के सामने पढ़ने के लिए एकत्रित होते थे।
मुशायरा एक काव्य संगोष्ठी है। एक मुशायरा उत्तर भारत, पाकिस्तान और दक्कन की संस्कृति का हिस्सा है, इसे स्वतंत्र आत्म-अभिव्यक्ति के लिए एक मंच के रूप में भी देखा जाता है। इन मुशायरों में पढ़ी जाने वाली उर्दू शायरी में ताल के बहुत सख्त नियमों का पालन किया जाता था। प्रत्येक मुशायरे में, एक मुख्य, या पीठासीन शायर होता था, जो आम तौर पर सभा में सबसे अधिक प्रशंसित और सम्मानित कवि हुआ करता था। इन मुशायरों में धीरे-धीरे तंज और मजा़ह ने अपनी जगह बनानी शुरू की और इस तरह मज़ाहिया शायरी, मजाकिया अंदाज में वर्तमान हालात पर व्यंगात्मक तंज करने की एक कला बन गयी।
उर्दू साहित्य में हास्य और व्यंग्य की कला सदियों से चली आ रही है, इसकी शुरुआत कुछ प्राचीन दास्तान (किंवदंतियों) में पाई गई है। लेकिन इनमे कहीं-कहीं पर हास्य-व्यंग्य का स्तर बिल्कुल हीन है तो कहीं-कहीं स्वाभाविक रूप से सुखद और मनोरंजक प्रभाव देखने को मिलता है। उर्दू साहित्य में ग़ालिब द्वारा लिखे गए कई पत्रों में हास्य और व्यंग्य स्पष्ट रूप से देखे गए है। ग़ालिब को कवि और गद्य लेखन, दोनों में महारत हासिल थी। साथ ही साथ हास्य उनके स्वभाव का हिस्सा भी था, इसीलिए हाली ने उन्हें "हवन-ए-ज़रीफ़" कहा, जिसका अर्थ हास्यपूर्ण प्राणी है। ग़ालिब के अलावा, सर सैयद अहमद खान और शिबली नोमानी के लेखन में भी हास्य और व्यंग देखा गया है।
साथ ही साथ सज्जाद हुसैन, माचू बेग सितम ज़रीफ़, और जवाला पार्षद बर्क आदि उस युग के प्रमुख व्यक्ति हैं। इसके बाद उर्दू साहित्य में तरह-तरह के हास्य-व्यंग्य देखने को मिले और इसने खूब लोकप्रियता हासिल की - मुल्ला रामूजी, रशीद अहमद सिद्दीकी, फरहतुल्ला बेग, मिर्ज़ा अज़ीम बेग़ चुग़ताई, पतरस बुख़ारी, और शौकत थानवी आदि के नाम यहाँ उल्लेखनीय हैं। कुछ साहित्यकार ऐसे भी थे जो मूल रूप से हास्यकार नहीं थे, लेकिन उनकी रचनाओं में हास्य और व्यंग्य की मिठास झलकती है। ऐसे लेखकों के कुछ प्रमुख नाम मेहदी-उल-अफदी, अबुल कलाम आजाद, महफ़ूज़ अली बदायूनी, मौलाना जफर अली खान, काजी अब्दुल गफ्फार, ख्वाजा हसन निजामी, अब्दुल मजीद सालिक, मजीद लाहौरी, इब्राहिम जलीस और अब्दुल मजदराबादी आदि हैं।
मेरठ से भी कई उर्दू शायरी के दिग्गज उभर कर सामने आये हैं। निम्नलिखित कुछ चंद नाम ऐसे है जिनकी जड़े मेरठ से जुडी है: फ़हमीदा रियाज़, इस्माइल मेरठी, आसी उल्दनी, अफ़सर मेरठी, अहमद हमदानी, आलमताब तिश्ना, बेदिल हैदरी, हफ़ीज़ मेरठी, इक़बाल अज़ीम, जिगर बरेलवी, महेश चंद्र नक़्श, मुज़फ़्फ़र वारसी, उबैद सिद्दीक़ी, साजिदा ज़ैदी, शमीम जयपुरी, शौकत सब्ज़वारी, उरूज ज़ैदी बदायूनी, ऐश मेरठी, अख़्तर हामिद ख़ाँ, अज़हर इक़बाल, हुसैन माजिद, पॉपुलर मेरठी, शबाब मेरठी, शाकिर मेरठी, शौक़ मुरादाबादी, सैयद फ़ख़्रुद्दीन बल्ले, सय्यद मुज़फ़्फ़र अहमद ज़िया, सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही, सय्यद क़ुदरत नक़वी, ज़ाहिदा ज़ैदी, दीपक क़मर, देवदास बिस्मिल, फ़ज़ल अहमद सिद्दीक़ी, इब्राहीम अफ़्सर, अली इमाम नक़वी, अल्लाह दी शरारत, आरिफ़ अब्बासी बलियावी, आसिफ़ इज़हार अली, असलम जमशेदपुरी, असरारुल हक़ असरार, बीएस जैन जौहर, बयान मेरठी, बूम मेरठी आदि।
इनमे से समकालीन मज़ाहिया शायर पॉपुलर मेरठी की "मुल्ला-जी की बीवी का जवाब" ग़जल काफी लोगप्रिय है, इसकी कुछ पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं :
“चौथी शादी कर के मुल्ला-जी बहुत शादाँ हुए
अपनी क़िस्मत की बुलंदी देख कर नाज़ाँ हुए
यूँ जवानों की तरह लाए दुल्हन को साथ में
आ गई हो जैसे सुल्ताना कहीं की हाथ में
पहले ही दिन सारे घर का जाएज़ा उस ने लिया
अपने शौहर की नज़र का जाएज़ा उस ने लिया
चार कीलें ख़ास कमरे में नज़र आईं उसे
तीन कीलों पर डुपट्टे भी नज़र आए टँगे
मुल्ला-जी से उस ने पूछा ये डुपट्टे किस के हैं
ये है किस किस की निशानी ये अतीए किस के हैं
मुल्ला-जी ने यूँ दिया उस के सवालों का जवाब
ऐ मेरी प्यारी दुल्हन ऐ आफ़्ताब ओ महताब
बेगमात-ए-साबिक़ा जो इस जहाँ से उठ गईं
ये डुपट्टे हैं इन्हीं की यादगार-ए-दिल-नशीं
जब तुम इस दुनिया से उठ जाओगी ऐ जान-ए-जहाँ
तब तुम्हारा भी डुपट्टा टाँग दूँगा मैं यहाँ
बोलीं बेगम मौत के पंजे में शौहर आएगा
अब डुपट्टे का नहीं टोपी का नंबर आएगा”
आ गई न आप सब को भी हंसी!
मेरठ में 9 अगस्त 1953 को जन्मे, सैयद एजाजुद्दीन शाह (पॉपुलर मेरठी), एक उर्दू और हिंदी हास्यकार, व्यंग्यकार और कवि हैं। चाहे ग़ज़ल हो या फिर हास्य शायरी की कोई भी विधा , पॉपुलर मेरठी का अपना ही एक अलग अन्दाज़ है। ये उर्दू में हास्य-व्यंग के लाज़वाब शायर है जोकि पिछले 45 वर्षों से पूरी दुनिया में मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भाग लेते आ रहे हैं । इनके काम के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री श्री रमेश पोखरियाल ने इन्हें काका हाथरसी पुरस्कार से सम्मानित किया है। मुशायरों में लोकप्रिय होने के बाद इन्होंने मेरठ के प्रसिद्ध उर्दू कवियों की विरासत को आगे बढ़ाने की ठान ली।उन्होंने 1989 में सऊदी अरब में अपने पहले अंतर्राष्ट्रीय मुशायरे में भाग लिया, 2019 में दुबई मुशायरा और कवि सम्मेलन में भी इन्होंने भाग लिया जिसका वीडियो आप यहाँ देख सकते हैं। पॉपुलर मेरठी भारत के अब बहुत कम बचे वरिष्ठ शायरों में से हैं। दुनिया भर में यात्रा करते हुए, उन्होंने भारतीय संस्कृति और विदेशों में हिंदी और उर्दू भाषाओं को बढ़ावा दिया है। लोकप्रिय मेरठी को "द कपिल शर्मा शो" के सीजन 3 के 23 जनवरी 2022 के एपिसोड में शैलेश लोढ़ा और संजय झाला के साथ अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। इनका यह लोकप्रिय वीडियो आपको हँसा-हँसा केलोटपोट कर देगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/3SznMD7
https://bit.ly/3lP8uNX
https://bit.ly/3Z6wwCA
https://bit.ly/3XQrFEs
https://bit.ly/3xMLemo
https://bit.ly/3EtrCrz
चित्र संदर्भ
1. मुशायरे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. उर्दू मुशायरे में जवाहर लाल नेहरू जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. एक अन्य मुशायरे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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