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असामान्य हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) के कारण होने वाली रक्त की लाल कोशिकाओं में होने वाला एक आनुवंशिक विकार जिसे ‘सिकल सेल एनीमिया’(Sickle Cell Anaemia) के नाम से जाना जाता है, एक प्रकार की आनुवंशिक बीमारी है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होती है। यह बीमारी हर साल दुनिया भर में 4.4 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है। इस बीमारी से प्रभावित होने वाले ज्यादातर लोग उप-सहारा अफ्रीका (sub-Saharan Africa), भारत और अरब (Arabian) प्रायद्वीप से आते हैं। ऐसा अनुमान है कि भारत में इस रोग से ग्रसित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। इस रोग में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार हंसिया या दरांती के आकार का हो जाता है, तथा वे एक-दूसरे पर एकत्रित हो जाती हैं। इससे शरीर की ऑक्सीजन संचरण करने की क्षमता कम हो जाती है। यदि माता-पिता दोनों में 'सिकल कोशिका’ मौजूद है, तो यह कोशिका उनके बच्चे में भी संचरित हो जाती है, और परिणामस्वरूप बच्चा अक्सर घातक बीमारी से पीड़ित हो जाता है। इस बीमारी से बचने के लिए सामान्यतः बच्चे के जन्म से पहले आनुवंशिक जांच की जाती है, जिससे यह पता चल सके कि बच्चा इस बीमारी से प्रभावित है या नहीं। इसके अलावा प्रभावित व्यक्ति को गर्भ धारण न करने की सलाह भी दी जाती है। लेकिन विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ वर्तमान समय में ऐसी कई जीन-संपादन तकनीकें विकसित हो चुकी हैं, जिनकी मदद से मनुष्य में मौजूद कई बीमारियों और विकृतियों को गर्भावस्था के दौरान ही ठीक किया जा सकता है।
इसी श्रंखला में क्रिस्पर केस9 (CRISPR-Cas9), जो कि एक प्रकार का जीन संपादन उपकरण (Gene editing tool) है, इस प्रकार के उत्परिवर्तन के लिए उत्तरदायी जीन को नष्ट करने तथा रोग को दूर करने में सक्षम है। अब बच्चा भले ही सिकल सेल एनीमिया से ग्रसित क्यों न हो, लेकिन उसकी बीमारी को क्रिस्पर केस के जरिए दूर किया जा सकता है। तो आइए भारत में क्रिस्पर तकनीक के अभ्यास और अनुप्रयोग के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
सबसे पहले तो यह जानते हैं कि आखिर क्रिस्पर केस9 क्या है? क्रिस्पर का पूरा नाम ‘क्ल्सटर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट’ (Clustered regularly interspaced short palindromic repeats) है, जो कि मानव जीनोम (Genome) को संपादित करने या उसमें बदलाव करने का एक शक्तिशाली उपकरण है। इसकी मदद से शोधकर्ता आसानी से डीएनए (DNA) अनुक्रमों में परिवर्तन ला सकते हैं और जीन की कार्यिकी को बदल सकते हैं। क्रिस्पर तकनीक के कई अनुप्रयोग हैं, जिनमें आनुवंशिक दोषों को ठीक करना, रोगों के प्रसार का इलाज करना और उन्हें रोकना, जीनो के उत्पादन में वृद्धि करना तथा उनकी गुणवत्ता को बढ़ाना आदि शामिल है। क्रिस्पर तकनीक के जरिए उस डीएनए खंड को ठीक किया जाता है, जहां एक एकल क्षार युग्म में उत्परिवर्तन होता है। पूरी प्रक्रिया में डीएनए को जो भी क्षति होती है, उसकी मरम्मत कोशिकाओं द्वारा खुद ही कर ली जाती है। जिन कोशिकाओं में उत्परिवर्तन को ठीक कर लिया जाता है, उनसे प्रयोगशाला में नई कोशिकाएं विकसित कर ली जाती हैं, ताकि उन्हें फिर से रोगी में स्थापित किया जा सके। मरम्मत या तो लाल अस्थि मज्जा की रक्त उत्पादन करने वाली कोशिकाओं में या वयस्क कोशिकाओं की रिप्रोग्राम्ड स्टेम (Reprogrammed stem) कोशिकाओं में की जाती है।चूंकि कोशिकाएं रोगी की अपनी कोशिकाएं होती हैं, इसलिए जब स्वस्थ कोशिकाओं को पुनःस्थापित किया जाता है, तब यह आसानी से स्थापित हो जाती हैं। विकासशील दुनिया में मौजूद लाइलाज बीमारियों का समाधान खोजने के लिए भारतीय वैज्ञानिक अब इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। भारत में पिछले 3 वर्षों में, जितने भी नैदानिक परीक्षणों में जीन-संपादन तकनीक का उपयोग किया गया है, वे परीक्षण सफल हुए हैं।
अब भारत ने सिकल सेल एनीमिया को ठीक करने के लिए क्रिस्पर तकनीक को विकसित करने हेतु बनाई गई 5 साल की परियोजना को मंजूरी दे दी है। दिल्ली के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटेड बायोलॉजी’ (Institute of Genomics and Integrated Biology - IGIB) में, शोधकर्ता देबोज्योति चक्रवर्ती और उनके प्रयोगशाला साथी सिकल सेल एनीमिया से ग्रसित रोगियों के नमूनों पर क्रिस्पर केस9 तकनीक का उपयोग करके इस बीमारी को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। रोगियों के नमूनों को उन्होंने छत्तीसगढ़ के ‘सिकल सेल संस्थान’ (Sickle cell institute), नई दिल्ली स्थित ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ और नागपुर महाराष्ट्र के सरकारी मेडिकल कॉलेज जैसे कोषों या भंडारगृहों से प्राप्त किया है। भारतीय राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा में जनजातीय आबादी के बीच इस प्रकार का रक्त विकार व्यापक रूप से मौजूद है। देबोज्योति और उनकी टीम, एक वर्ष से भी अधिक समय से इस उपकरण पर काम कर रही हैं, तथा अब उनका प्रयास है कि वे मानव प्रेरित प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल (Human induced pluripotent stem cells) में इस अवधारणा के प्रमाण प्रस्तुत करें। यदि क्रिस्पर तकनीक का उपयोग जीन थेरेपी (Gene therapy) में सही तरीके से किया जाता है, तो भारतीय आबादी में बड़ी संख्या में एकजीनी (Monogenic) विकारों को ठीक किया जा सकता है। हालांकि, क्रिस्पर तकनीक अनेकों रोगों को ठीक करने में सहायक है, लेकिन वर्तमान समय में सुरक्षा की दृष्टि से यह चिंता का विषय भी है। जब इसके जरिए डीएनए में एक विशिष्ट स्थान को लक्षित किया जाता है, तब डीएनए के अन्य हिस्से भी प्रभावित हो सकते हैं और परिणामस्वरूप कोई हानिकारक प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है। लेकिन इस तकनीक के कई लाभकारी परिणाम सामने आए हैं, जो भारत में इसकी व्यापक संभावना पर प्रकाश डालते हैं।
संदर्भ:
https://go.nature.com/3IsTL4m
https://bit.ly/3IxxvGE
https://bit.ly/3YBWUo9
चित्र संदर्भ
1. क्रिस्पर प्रतिरोध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सिकल सेल रोग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्रिस्पर श्रंखला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. क्रिस्पर केस9 प्रतिरोध को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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