शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का महत्व एवं भारत में इसकी आवश्यकता

ध्वनि 2- भाषायें
27-01-2023 12:19 PM
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शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का महत्व एवं भारत में इसकी आवश्यकता

शिक्षा हम सभी के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और हम सभी के लिए अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा जीवन में स्थिरता प्रदान करती है और यह एक ऐसी चीज है जिसे कोई आपसे कभी नहीं छीन सकता है। लेकिन आज के युग में शिक्षा प्रणाली में अंग्रेजी भाषा का एक छत्र स्थापित है। जीवन के हर पहलू में उन्हीं लोगों का पक्ष लिया जाता है जिनका अंग्रेजी भाषा पर एकाधिकार होता है।
यह भारत जैसे देशों में एक बड़ी चुनौती है, जहां केवल लगभग 6% आबादी ही अंग्रेजी बोलती है। फिर, शिक्षा के माध्यम होने के कारण अंग्रेजी भाषा अवरोध उत्पन्न करती है और अन्त में शिक्षा के क्षेत्र में, सूचना की ऐसी बाधाएं खोए हुए अवसरों में तब्दील हो जाती हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद भारत में अंग्रेजी भाषा शिक्षा में इतनी हावी हो गई है कि इसे त्यागना मुश्किल हो रहा है। किंतु अब समय आ गया है कि शिक्षा को अपनी स्थानीय भाषा में प्राप्त किया जाए , अब आवश्यकता नहीं है विज्ञान और गणित जैसे विषयों को पश्चिमी भाषा में ही पढ़ा जाए । उन्हें हम स्थानीय भाषाओं में भी पढ़ सकते हैं। शिक्षा में अंग्रेजी ने जितना विशेषाधिकार प्राप्त किया है उतना अन्य भाषाओं को भी प्राप्त होना चाहिए । विश्व व्यापक दृष्टि से देखा जाए तो क्या हमारे भारत में पढ़ाई स्थानीय भाषा में नहीं होनी चाहिए ? अंग्रेजी भाषा हम भारतीयों पर ऐसे हावी हो चुकी है कि लाखों भारतीय अपने द्वारा बोले गए अंग्रेजी के गलत शब्दों से अपना आत्मविश्वास एवं आत्मसम्मान खो रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अगर उन्हें अंग्रेजी भाषा नहीं आती, तो वह दूसरों के सामने शर्मिंदगी का पात्र बन जाएंगे,जो उनके आत्मविश्वास को कम करता है। यह निश्चित रूप से गलत है।अधिकांश उच्च वर्ग के लोग अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर निम्न वर्गों के लोगों को कम समझने की भूल कर देते हैं, परंतु वह यह भूल जाते हैं कि शिक्षा अंग्रेजी में दी जाए या स्थानीय भाषा में, शिक्षा, शिक्षा ही होती है जिसका एकमात्र उद्देश्य समाज को शिक्षित करना होता है। वास्तव में, यूनेस्को (UNESCO) और विश्व बैंक (WORLD BANK) के अध्ययन से प्रेरित होकर, नाइजीरिया (Nigeria) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) जैसे बहुभाषी देश प्राथमिक स्तर पर छात्रों को उनकी मातृभाषा में विज्ञान और गणित पढ़ाने का प्रयोग कर रहे हैं,जो एक प्रशंसनीय एवं सराहनीय कार्य है। हालाँकि, संशयवादियों का मानना ​​है कि यह विचार, भले ही प्रशंसनीय हो, भाषाओं की विविधता, स्थानीय भाषाओं में वैज्ञानिक शब्दों का अनुवाद करने का कठिन कार्य और फिर शिक्षकों की एक पूरी नई कक्षा को प्रशिक्षित करने से विज्ञान को एक भाषा में पढ़ाना असंभव हो जाता है। इन आलोचनाओं में एक बिंदु हो सकता है क्योंकि स्थानीय भाषा में विज्ञान और गणित पढ़ाना केवल कुछ ही देशों में सफल रहा है । सच्चाई यह है कि अंग्रेजी भाषा आज के विज्ञान पर हावी हो गई है। कोरियाई (Korean), पुर्तगाली (Portuguese) और जापानी (Japanese) जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर, 80 प्रतिशत से अधिक वैज्ञानिक साहित्य अंग्रेजी में निर्मित होता है। किंतु अब भारत में शिक्षा स्थानीय भाषा की ओर रुख कर चुकी है, अंग्रेजी ही एक ऐसा माध्यम नहीं है जिससे हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि स्थानीय भाषा का प्रयोग करके भी ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। विगत वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में स्थानीय भाषा को अत्यधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। शिक्षा में स्थानीय भाषाओं का अत्यधिक महत्व एवं लाभ है। शिक्षा में स्थानीय भाषा को प्रयोग में लाकर बच्चों से अच्छा संबंध स्थापित किया जा सकता है। स्थानीय भाषा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है, और यह सीखने के परिणामों और शैक्षणिक प्रदर्शन में भी सुधार करती है। दूसरी ओर, जिन छात्रों का शिक्षा का माध्यम उनकी स्थानीय भाषा नहीं है, उनका अन्य माध्यम से शिक्षित छात्रों की तुलना में उपलब्धि परीक्षणों पर खराब प्रदर्शन होता है। स्थानीय भाषा का उपयोग करने से शिक्षा के क्षेत्र में अधिक लाभ प्राप्त होते है जैसे-
छात्रों की वैचारिक समझ बेहतर होती है।
क्षेत्रीय बोलियाँ समृद्धि और विविधता को जोड़ती हैं।
छात्रों के आत्मविश्वास को बढ़ावा मिलता है।
स्थानीय भाषा सीखने के बेहतर परिणामों की ओर ले जाती है।
सामाजिक एकता को बढ़ावा मिलता है।
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में स्थानीय भाषा का उपयोग करने के कई फायदे हैं जैसा कि ऊपर बताया गया है, इससे न केवल सभी छात्रों के सीखने के परिणामों में सुधार होता है, बल्कि यह सामाजिक सामंजस्य को भी बढ़ावा देता है और छात्रों में आत्मविश्वास पैदा करता है। शायद इसीलिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 कक्षा 5 और उसके बाद तक शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग का समर्थन करती है। आने वाले कुछ वर्षों में, हम शैक्षिक संस्थानों और प्रगतिशील एडटेक प्लेटफार्मों द्वारा अधिक स्थानीय भाषा-सामग्री-संचालित शिक्षा देखने की उम्मीद कर सकते हैं। शिक्षा को सिद्धांत और व्यवहार दोनों में एक महान तुल्यकारक बना सकते हैं। आपको बता दें कि हाल ही में इस सोच के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थानीय भाषा में विज्ञान पढ़ाने और संचार को बढ़ाने के लिए एक मजबूत योजना बनाकर लोगों को प्रोत्सहित किया है, जिससे वह अपनी मातृभाषा में विज्ञान को पढ़ पाएंगे एवं उनके तथ्य को समझ पाएंगें। आपको बता दें कि देश में पहली बार ऐसा हो रहा है कि चिकित्सा स्नातक (Bachelor of Medicine) और शल्य चिकित्सा स्नातक (Bachelor of Surgery) की पढ़ाई हिंदी भाषा के माध्यम से होने जा रही है।
इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश से की जा चुकी है। यहाँ एमबीबीएस (MBBS) की पहले सत्र की तीन विषयों की किताबें हिंदी में प्रकाशित की गई है। यह एक अच्छी सोच है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के हिंदी माध्यम के स्कूल के छात्र भी मेडिकल की पढ़ाई कर पाएंगे। देश में पहली बार नई प्रकार की शुरुआत हुई है जिसके लिए उन्हें अंग्रेजी भाषा की आवश्यकता नहीं है। इंजीनियर की पढ़ाई भी हिंदी में हो इसके लिए अनेक योजनाएं बनाई जा रही है। भारत ही नही, बल्कि अन्य देश जैसे यूक्रेन (Ukraine), रूस (Russia), जापान (Japan), चीन (China), किर्गिस्तान (Kyrgyzstan) और फिलीपींस (Philippines) भी मेडिकल की पढ़ाई अपनी मातृभाषा में करते हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3kvAh5w
https://bit.ly/3iZQHTh
https://bit.ly/3WsipWr

चित्र संदर्भ
1.विभिन्न भाषाओँ को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. भाषा के आधार पर राज्यों के नाम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. विविध वैश्विक भाषाओँ को संदर्भित करता एक चित्रण (Free SVG)
4. कंप्यूटर सीखते बच्चो को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. कॉलेज लाइब्रेरी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)

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