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सैन्य वाद्यवृंद अर्थात बैंड संगीत (Military Bands Music) एक ऐसी परंपरा है जो आज तक भारत में जारी है। हमारा शहर मेरठ वाद्यवृंद के पीतल उत्पादों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। हमारे शहर में एक संबंधित वादक समूह (Orchestra) संस्कृति भी है, जिसका श्रेय संगीत वाद्ययंत्र उत्पादन को जाता है। एक सामान्य सैन्य वाद्यवृंद में एक बैंड मास्टर (Band master) और 33 संगीतकार होते हैं जबकि एक पाइप बैंड (Pipe band) में एक बैंड मास्टर और 17 संगीतकार होते हैं।
भारतीय सेना में वाद्यवृंद की परंपरा बहुत पहले से विद्यमान है जिसमें वाद्य वृंद समूह में सैनिक (जिनकी लड़ाई के दौरान, चिकित्सा सहायकों के रूप में प्राथमिक भूमिका होती है) होते हैं। भारतीय सैन्य बैंड में भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के संगीतकार शामिल होते हैं। भारतीय सैन्य बैंड नियमित रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्सवों और विभिन्न राष्ट्रीय आयोजनों को समर्पित समारोहों में भाग लेते हैं। ये बैंड दिल्ली में राजपथ पर आयोजित गणतंत्र दिवस परेड में स्थायी भागीदार होते हैं। आज, भारतीय सशस्त्र बलों में 50 से अधिक सैन्य ब्रास बैंड (Military Brass Bands) और 400 पाइप बैंड (Pipe Bands) और ड्रम के सैन्य-दल हैं। एक त्रि-सेवा बैंड संयुक्त भारतीय सशस्त्र बल सैन्य बैंड को संदर्भित करता है जो एक इकाई के रूप में एक साथ प्रदर्शन करता है। मास्को (Moscow) में आयोजित ‘स्पैस्काया टॉवर सैन्य संगीत समारोह और टैटू’ (Spasskaya Tower Military Music Festival and Tattoo) में, बैंड में 7 अधिकारी और 55 संगीतकार शामिल थे।
भारतीय सेना में, निम्नलिखित कमांड संगीत के लिए अपने स्वयं के निरीक्षणालय हैं: पूर्वी कमान, मध्य कमान, उत्तरी कमान, दक्षिण पश्चिमी कमान, दक्षिणी कमान और पश्चिमी कमान। भारतीय सशस्त्र बलों के सैन्य बैंड में सुषिर काष्ठ वाद्य यंत्र, पीतल के वाद्य यंत्र जिनमें तुरही आदि शामिल हैं और तालवाद्य यंत्रों का मिश्रण होता है । भारतीय सेना के पास समर्पित पाइप बैंड भी हैं जो स्वतंत्र इकाइयों के रूप में कार्य करते हैं और सभी पैदल सैन्यदल द्वारा देखरेख किए जाते हैं।
17वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के काल से ही मार्शल संगीत भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। 1700 के दशक की शुरुआत में संगठित सैन्य बैंड ब्रिटिश सेना द्वारा भारत लाए गए थे। साथ ही प्रथम विश्व युद्ध से पहले भारतीय सेना के बटालियन के आकार के प्रत्येक सैन्य दल का अपना सैन्य बैंड था। भारतीय सैन्य बलों में पाइप बैंड का कोई सटीक परिचय वर्ष मौजूद नहीं है। यह 19वीं शताब्दी के अंत में जातीय रूप से सिख, गोरखा और पठान सैन्य दल द्वारा पेश किए गए । पहला पूरी तरह से सिख पाइप बैंड 1856 में स्थापित किया गया था जब पंजाब में 45वीं रैट्रे रेजीमेंट (45th Rattray Regiment) की स्थापना की गई थी। तब से, सिख पाइप बैंड सिख सैन्य दल का एक हिस्सा रहे हैं जो ब्रिटिश शासन के तहत स्थापित किए गए थे। 1950 के दशक के मध्य में, भारतीय सेना के तत्कालीन संगीत निर्देशक हेरोल्ड जोसेफ(Herald Joseph) के साथ पूर्व ब्रिटिश सैन्य बैंड का भारतीयकरण हुआ, जिसने भारतीय सेना में स्वदेशी धुनों के पुनरोद्धार का नेतृत्व किया। अप्रैल 2022 को कृष्णघाटी ब्रिगेड ने एक विशाल संगीत कार्यक्रम का आयोजन किया, जो केवल एलओसी (LOC) पर रहने वाले लोगों के लिए बनाया गया था। भारतीय सेना और कृष्णाघाटी ब्रिगेड हमेशा इस बात पर विश्वास करते हैं कि जीवन में संगीत बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। लोगों को बस इसे सुनने वाला हृदय चाहिए। इस संगीत कार्यक्रम द्वारा एलओसी पर जो प्रस्तुत किया जा रहा था वह कुछ ऐसा था जो पहले कभी नहीं किया गया था और कुछ ऐसा जिसे लोगों ने पहले कभी नहीं देखा था, लेकिन कृष्णघाट ब्रिगेड ने यह सुनिश्चित किया कि वे इसे इतना आकर्षित बनाए कि देखने वाले आश्चर्य चकित हो जाएं और पलक झपकाए बिना उन्हें सुनें। इस कार्यक्रम में पुंछ जिले के जिला आयुक्त और पुलिस अधीक्षक सहित कई प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का भव्य समापन 'सारे जहां से अच्छा' गीत के साथ हुआ , जिसने वातावरण में और जनता के बीच एक मजबूत देशभक्ति की भावना का संचार किया।
मेरठ का एक छोटा सा इलाका, देश भर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, शादियों में उपयोग होने वाले बैंड को 95% पीतल के वाद्य यंत्र प्रदान करता है। हालाँकि, यह दशकों पुराना व्यवसाय अब घट रहा है, क्योंकि मेरठ के जली कोठी इलाके में चल रही 100 इकाइयों में से लगभग आधी हाल ही के वर्षों में बंद हो गई हैं और जो अभी भी मौजूद हैं वे ग्राहकों की मांग में कमी के साथ-साथ उद्योग को संरक्षित करने में सरकारी सहायता की कमी के कारण काफी मंदे में चल रहे हैं। भारत में बैंड बाजे के काम के साथ संबंधित सबसे बड़ा और सबसे पुराना नाम है नादिर अली एंड कंपनी का । नादिर अली एंड कंपनी मेरठ के जली कोठी इलाके में स्थित है तथा कई वर्षों से यह कंपनी भारत के संगीत वाद्ययंत्रों की सबसे बड़ी उत्पादक है । नादिर अली एंड कंपनी द्वारा 1885 में एक शादी के बैंड के रूप में शुरुआत की गई थी, जब ब्रिटिश सेना में एक बैंड लीडर नादिर अली ने अपने चचेरे भाई इमाम बक्श के साथ अपनी खुद की कंपनी खड़ी की और 1911 में वाद्ययंत्र बनाना शुरू किया।1950 के दशक तक, जली कोठी एक संगीत वाद्ययंत्र निर्माण केंद्र बन गया था।नादिर अली एंड कंपनी को दूसरे विश्व युद्ध के समय जबरदस्त मुनाफा हुआ, जब यूरोप से सामान की लदान रुक गई। कंपनी ने गृह रक्षकों के लिए पीतल की सीटियां और बिगुल, 200 इकाई प्रतिदिन की दर से बनाने शुरू किए। 1947 में सियालकोट ने मेरठ को इस क्षेत्र के व्यवसाय में टक्कर दी, लेकिन विभाजन के बाद नादिर अली और जली कोठी के उनके पड़ोसियों ने भारतीय बाजार पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।
आजकल इस कंपनी को 78 साल के आफताब अहमद, जो एक एक भौतिकी स्नातक हैं, संभाल रहे हैं, वे इस कला में पारंगत हैं कि उनके कान दूर से साज़ की आवाज़ जांच लेते हैं। इसके लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। टर्की की एक फैक्ट्री में उन्होंने इस बारे में 1959 में गहरा अध्ययन किया था । आज नादिर अली एंड कंपनी 11 प्रकार के पीतल के साज़ बनाते हैं। इन्होंने बहुत से अंतरराष्ट्रीय मुकाबले भी जीते हैं । यूनाइटेड किंगडम(United Kingdom) की रॉयल नेवी (Royal Navy) और सऊदी अरब की रॉयल गार्ड (Royal Guard of Saudi Arabia) जैसी सेनाओं द्वारा भी इनके बनाए बिगुल बजाए जाते हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3QzEFfW
https://bit.ly/3IBZHbL
https://bit.ly/3kcU9Kk
https://bit.ly/3H6gDWN
https://bit.ly/3QvMZNs
चित्र संदर्भ
1. भारतीय सेना के बैंड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. 26 जनवरी, 2015 को राष्ट्रपति मुखर्जी और पीएम मोदी के सामने राजपथ पर अनोखे बीएसएफ कैमल बैंड" को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सिख पाइप बैंड को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ट्रम्पेट (Trumpet) बजाते हुए मेरठ के दो कारीगरों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. नादिर अली एंड कंपनी को संदर्भित करता एक चित्रण (facebook)
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