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आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हमारा मेरठ जिला न केवल आधारभूत संरचनाओं और विकास का केंद्र बनकर उभरा है, बल्कि पूरे देश की कृषि उत्पादकता में भी अहम भूमिका अदा करते हुए मेरठ जिला प्रत्येक खरीफ के मौसम में 45113 टन से अधिक चावल का उत्पादन करता है। हालांकि, चावल उत्पादन की यह मात्रा काफी हद तक जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रही है।
उत्तरी भारतीय मैदान (Northern Indian Plain), जिसको इंडो-गंगा का मैदान (Indo-Gangetic Plain (IGP) के नाम से भी जाना जाता है और जो 2.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला है, भारत के 1.2 बिलियन लोगों में से लगभग 40% लोगों को भोजन उपलब्ध कराता है। लेकिन हाल के वर्षों में यह क्षेत्र भी तेजी से बढ़ते शहरीकरण, गरीबी और जलवायु परिवर्तन के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है।
आईजीपी ( IGP), मानसून की परिवर्तनशीलता में वृद्धि और गर्मी की लहरों तथा बेमौसम वर्षा जैसी चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का अनुभव कर रहा है, जो कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं और परिणाम स्वरूप छोटे और सीमांत किसानों की खाद्य सुरक्षा और आजीविका को खतरे में डाल रहे हैं।
उत्तरी भारत में स्थित हमारा मेरठ जिला भी इन परिवर्तनों से विशेष रूप से प्रभावित एक क्षेत्र है, जहां चावल-गेहूं प्रणाली एक प्रमुख फसल है। यहां पर चावल आमतौर पर नमी वालेखरीफ मौसम (जून-अक्टूबर) के दौरान उगाया जाता है और गेहूं की खेती शुष्क रबी मौसम (नवंबर-अप्रैल) के दौरान की जाती है। हालांकि, निरंतर खेती और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी का भी भारी क्षरण हुआ है, जिसके कारण पैदावार में ठहराव आया है, इसके साथ ही बढ़ते तापमान और असंगत वर्षा ने फसल उत्पादन को और भी अधिक प्रभावित किया है। मेरठ में उगाई जाने वाली फसलों की कई वर्तमान किस्में कीट और रोगों के लिए भी अतिसंवेदनशील मानी जाती हैं। भारत-गंगा के मैदान का मेरठ जिला अपने चावल-गेहूं और गन्ना-गेहूं की खेती प्रणालियों के लिए प्रसिद्ध है। क्षेत्र के कई परिवार गायों और भैंसों को भी अपनी कृषि प्रणाली के हिस्से के रूप में रखते हैं।
वर्षा की अनियमित शुरुआत के साथ-साथ अधिकतम और न्यूनतम तापमान में वृद्धि ने इस क्षेत्र में चावल और गेहूं की पैदावार पर काफी प्रभाव डाला है।
हालांकि, इन मुद्दों को हल करने के लिए, कृषि मॉडल अंतर तुलना और सुधार परियोजना (Agriculture Model Intercomparison and Improvement Project (AGMIP) के वैज्ञानिक क्षेत्र में नए अनुकूलन उपायों का परीक्षण करने के लिए क्षेत्रीय हितधारकों के साथ काम कर रहे हैं। इन उपायों में गेहूं की बुवाई की अवधि को 5 नवंबर से 25 नवंबर की सामान्य अवधि में वापस स्थानांतरित करना और नई उच्च उपज वाली किस्मों को शामिल करना शामिल है, जो कीटों और रोगों के लिए अधिक प्रतिरोधी माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, नई उच्च उपज वाली किस्मों, जो कीट और रोगों के प्रति कम संवेदनशील हैं, तक किसानों की पहुंच का विस्तार करना भी महत्वपूर्ण है । यह अनुमान लगाया गया है कि इन सुधारों के साथ इस क्षेत्र में चावल और गेहूं की पैदावार में सुधार संभव है। बुवाई के समय को बदलने और मौजूदा कृषि प्रणाली के लिए बेहतर फसल किस्मों तक पहुंच प्राप्त करने से चावल की पैदावार में 6%-14% और गेहूं की पैदावार में 11% से 18% की वृद्धि हो सकती है । उत्पादन प्रणाली में बदलाव के परिणामस्वरूप शुद्ध कृषि आय में 9% से 12% की वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में 6% से 9% की वृद्धि हो सकती है।
इसके अलावा संभावित रूप से गरीबी दर में 3% से 4% की गिरावट हो सकती है। यह अनुमान लगाया गया है कि इन उपायों को 53% से 60% कृषक आबादी द्वारा अपनाया जा सकता है ।
किंतु यदि किसान बदली हुई जलवायु परिस्थितियों में वर्तमान प्रथाओं का उपयोग करना जारी रखते हैं, तो किसानों को जलवायु परिवर्तन से नकारात्मक प्रभाव और चावल की पैदावार में गिरावट का अनुभव होगा। हालांकि यह क्षेत्र काफी हद तक सिंचित है और सिंचाई शुष्क परिस्थितियों के कुछ नकारात्मक प्रभावों की भरपाई कर सकती है, फिर भी पैदावार में गिरावट का अनुमान है। उदाहरण के लिए, गर्म/शुष्क परिदृश्य में चावल की उपज 6% और गेहूं की उपज 6% से 19% तक घटने का अनुमान है। जलवायु परिवर्तन के तहत दूध उत्पादन में भी 10% की गिरावट आने की संभावना है ।
भविष्य की प्रणालियों की जांच करते हुए, मॉडल सुझाव देते हैं कि 2050 तक चावल की उपज में 12% तक और गेहूं की उपज में 24% तक की कमी हो सकती है।भविष्य की कृषि भेद्यता का आकलन करने के लिए कृषि विकास और उत्सर्जन के दो भावी परिदृश्य विकसित किए गए है । पहले हरित मार्ग (Green Road) परिदृश्य के अंतर्गत भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र में सरकार को बुनियादी ढांचे के निवेश को प्राथमिकता देना और स्थायी प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय और स्थानीय संस्थानों को मजबूत करना भी कृषि उत्पादन में वृद्धि के महत्वपूर्ण उपायों में शामिल हो सकता है।
इससे कृषि उत्पादन में धीमी लेकिन सतत वृद्धि हो सकती है और प्राकृतिक संसाधनों की गिरावट में कमी आ सकती है, क्योंकि किसानों द्वारा अधिक कुशल संसाधन उपयोग के कारण फसल उत्पादन की लागत थोड़ी कम हो सकती है, जबकि खेत और घरेलू आकार में भी थोड़ी गिरावट आ सकती है।
पशुधन दक्षता और दुग्ध उत्पादन में भी कमी आ सकती है, लेकिन गैर-कृषि रोजगार के अवसरों से गैर-कृषि आय में वृद्धि हो सकती है। दूसरी ओर, ग्रे रोड (Grey Road) परिदृश्य के अंतर्गत बढ़ती आबादी और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन में घटते निवेश के जवाब में कृषि उत्पादन को तेज करना शामिल हो सकता है, जिससे संसाधनों का शोषण बढ़ सकता है और भूमि की उत्पादकता में गिरावट आ सकती है। इसका परिणाम फसल उत्पादन लागत में वृद्धि और खेत, घरेलू और झुंड के आकार में गिरावट के साथ-साथ पशुधन दक्षता और दूध उत्पादन में कमी के रूप में हो सकता है। हालांकि, इससे गैर-कृषि रोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं।
बुवाई के समय को बदलना और बेहतर फसल किस्मों का उपयोग करना, चावल और गेहूं की पैदावार बढ़ाने जैसी अनुकूलन रणनीति अपनाना, शुद्ध कृषि आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ क्षेत्रीय गरीबी में कमी ला सकता है। शोध में पाया गया है कि मेरठ जिले में जलवायु परिवर्तन का चावल और गेहूं की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके लिए अधिकतम और न्यूनतम तापमान में वृद्धि के साथ-साथ अनियमित वर्षा पैटर्न को जिम्मेदार ठहराया गया है, जिसने फसल की वृद्धि को प्रभावित किया है। अतः किसानों की सहायता के उद्देश्य से मेरठ जिले में चावल और गेहूं की पैदावार पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करने वाली एक अनुकूलन रणनीति पर चर्चा करके अध्ययन का निष्कर्ष निकाला गया।
संदर्भ
https://bit.ly/3hOxpQg
https://bit.ly/3VjP2oL
https://bit.ly/3FTvl1v
https://bit.ly/3BZidXf
चित्र संदर्भ
1. खेत में काम करते किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. इंडो-गंगा का मैदान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हल जोतते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. खेत में काम करती महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. ग्रामीण भारत की कृषि मण्डी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. धान रोपते किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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