Post Viewership from Post Date to 28- Dec-2022 (5th Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1867 | 719 | 2586 |
भारत दुनिया में चीनी का ब्राजील के बाद दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा उपभोक्ता है। चीनी उद्योग भारत में एक बड़ा व्यवसाय है। चीनी बनाने के लिए गन्ना बहुत महत्वपूर्ण सामग्री है। गन्ना उष्णकटिबंधीय भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में मूलतः उत्पन्न किया जाता है। भारत में, देश के हिस्से के आधार पर अक्टूबर, मार्च और जुलाई में साल में तीन बार गन्ना लगाया जाता है।। जब गन्ने का उत्पादन बढ़ता है तो चीनी का उत्पादन भी बढ़ता है।
गन्ने का उत्पादन वर्ष 1961 में 110 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2019 में 405 मिलियन टन और गन्ना उत्पादन क्षेत्र वर्ष 1961 में 2413 हजार हेक्टेयर से बढ़कर वर्ष 2019 में 5061 हजार हेक्टेयर हो गया है। गन्ने के लिए उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि हुई है। उत्पादन मात्रा 45 टन/हेक्टेयर से बढ़कर 80 टन/हेक्टेयर हो गई।
भारत में अधिकांश चीनी उत्पादन स्थानीय सहकारी चीनी मिलों में होता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (Indian Sugar Mills Association (ISMA)के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर, 2019 और मई, 2020 के बीच देश की चीनी मिलों द्वारा 268.21 लाख टन (26,821,000) चीनी उत्पादन किया गया।यदि 2022-23 के विपणन सत्र की बात की जाए, तो देश में चीनी का उत्पादन 36.5 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिसमें बीते कई वर्षों की समान अवधि की तुलना में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। चीनी के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में भारत 5000 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गन्ना के उत्पादन द्वारा दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और चीनी के उपभोक्ता के रूप में उभरा है। कुल उपज में से, 3574 एलएमटी गन्ना को चीनी मिलों द्वारा लगभग 394 एलएमटी चीनी (सुक्रोज) का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया गया । इनमें से 35 एलएमटी चीनी को इथेनॉल उत्पादन में बदल दिया गया और चीनी मिलों द्वारा 359 एलएमटी चीनी का उत्पादन किया गया ।
2021 एवं 2022 में भारत ने 11 मिलियन टन से अधिक चीनी का सर्वकालिक उच्च निर्यात किया और चीनी उद्योग इस वर्ष सरकार द्वारा दो किश्तों में 8 से 9 मिलियन टन के निर्यात की अनुमति देने की उम्मीद कर रहेहै। उद्योग निकाय का निर्यात पर कहना है कि इस वर्ष भारतीय चीनी के लिए निर्यात की समय सीमा काफी कम प्रतीत होती है क्योंकि ब्राजील की चीनी मई 2023 तक वैश्विक बाजार में आ जाएगी। इसके साथ ही उनका मानना है कि अधिकांश मिलों ने पहले ही चालू सीजन में निर्यात आपूर्ति के लिए चीनी का अनुबंध कर लिया है। इस कारण सरकार द्वारा चीनी निर्यात नीति की जल्द घोषणा की अत्यधिक सराहना की जानी चाहिए। बात चीनी उत्पादन की करें तो घरेलू चीनी मूल्य के रूझान में सुधार लाने को दृष्टिगत रखते हुए सरकार ने प्रत्येक मिल के लिए उसके चीनी उत्पादन के अनुपात में निर्देशात्मक निर्यात लक्ष्यों को निर्धारित किया ताकि 4मिलियन मैट्रिक टन का चीनी स्टाक खाली किया जा सके। कोई निर्यात सब्सिडी या प्रोत्साहन प्रस्तावित नहीं कराया गया और उद्योग से प्रचालित अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों पर निर्यात करने और जो क्षति हुई उसे पूरा करने की उम्मीद की जा रही हैा यह भी उम्मीद की जा रही है कि स्टाक की निकासी से घरेलू चीनी मूल्यों में बढ़ोत्तरी होगी और गन्ना मूल्यों के अधिक समर्थित मूल्य स्तर तक पहुंच जाएगा। यह न्यूनतम निर्देशात्मक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) है। उद्योग अधिक मात्रा में निर्यात कर सकती है और उसे वैश्विक बाजार की मांग पर आधारित कच्ची, श्वेत या परिष्कृत चीनी निर्यात करने के लिए स्वतंत्र है। आपको बता दें कि भारत में चीनी उद्योग कपास के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है। यहां के अनेक राज्यों ने सर्वाधिक चीनी उत्पादन कर देश का चीनी उद्योग के क्षेत्र में विकास किया है। महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश, तथा कर्नाटक की देश में कुल चीनी उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। देश के अन्य प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, बिहार, हरियाणा तथा पंजाब शामिल हैं। आपको बता दें की भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और ब्राज़ील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। चीनी मिलों से लगभग 82 लाख मीट्रिक टन चीनी निर्यात के लिये भेजी गई है और लगभग 78 लाख मीट्रिक टन निर्यात किया जा चुका है।
वर्ष (2021-22) में चीनी का निर्यात अब तक के उच्चतम स्तर पर है।वर्ष के अंत में चीनी का क्लोजिंग स्टॉक 60-65 लाख मीट्रिक टन रहता है जो घरेलू उपयोग के लिये आवश्यक लगभग तीन महीने के स्टॉक के बराबर है।चीनी निर्यात कोटा में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 68.92 फीसदी पहुंच जाती है। गन्ना उत्पादक तीसरे सबसे बड़े राज्य कर्नाटक की 73 मिलों से 8,79,920 टन चीनी का निर्यात होगा। इस प्रकार इन तीन राज्यों से कुल निर्यात का करीब 84 फीसदी चीनी निर्यात की जाएगी। खाद्य मंत्रालय ने देश के विभिन्न राज्यों की कुल 537 चीनी मिलो को अपने निर्यात कोटे की सूची में शामिल किया है।चीनी उद्योग संगठन का कहना है कि एक अक्टूबर से शुरु हुए चीनी वर्ष 2022-23 में चीनी का उत्पादन 365 लाख टन रह सकता है, जो कि पिछले साल के उत्पादन के मुकाबले दो फीसदी अधिक है। ISMA के मुताबिक इस सीजन में उत्तर प्रदेश में 123 लाख टन, महाराष्ट्र में 150 लाख टन और कर्नाटक में 70 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले वित्त वर्ष में (2021- 22) देश का चीनी निर्यात बढ़कर अपने सबसे उच्चतम स्तर 110 लाख टन पर पहुंच गया था। वहीं, चीनी उद्योग के विशेषज्ञों का अनुमान है कि सरकार दो किस्तों में 80 से 90 लाख टन चीनी निर्यात करने को लेकर मंजूरी दे सकती है। पहली किस्त में सरकार ने 60 लाख टन निर्यात की अनुमति दे दी है और दूसरी किस्त में 20-30 लाख टन निर्यात की अनुमति मिल सकती है।गौरतलब है कि उद्योग जगत को उम्मीद थी सरकार कम से कम 80 से 90 लाख टन चीनी निर्यात की छूट देगी। लेकिन, घरेलू बाजार की मांग को देखते हुए सरकार ने 60 लाख टन चीनी निर्यात का कोटा तय किया हैचीनी सत्र की शुरुआत अक्टूबर से होती है और अगले साल सितंबर तक यह चलता है।
सरकार ने चीनी सत्र 2021-22 के अंत में चीनी निर्यात पर रोक लगा दी थी। इस पाबंदी के बावजूद बीते चीनी सत्र में करीब 1.1 करोड़ टन चीनी का निर्यात हुआ है। विश्लेषकों का कहना है कि ब्राजील में सूखे की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में चीनी की कीमतें आसमान छू रही हैं। दुनिया उम्मीद कर रही थी कि भारत, जो चीनी का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, इस कमी को दूर करेगा । इसी उम्मीद के साथ भारत में सभी चीनी निर्यात कंपनियों के मार्जिन में भी वृद्धि हुई । लेकिन, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि अब सरकार की निर्यात पर रोक लगाने की कार्रवाई खेल बिगाड़ सकती है। 1 जून, 2022 को निर्यात प्रतिबंध लागू होने के बाद, इन कंपनियों को मार्जिन दबाव का सामना करना पड़ सकता है, यही वजह है कि चीनी शेयरों में गिरावट आ रही है।, हालांकि, कुछ विश्लेषकों को ज्यादा असर नहीं दिख रहा है क्योंकि उनका मानना है कि साल के लिए निर्यात की उम्मीद वैसे भी सरकार द्वारा तय की गई सीमा से कम थी। उद्योग के अधिकारियों ने भी इस तथ्य को रेखांकित किया है और कहा है कि प्रभाव बहुत अधिक नहीं होगा।
मोहित निगम, प्रमुख, पीएमएस, हेम सिक्योरिटीज, (Head - PMS, Hem Securities) के अनुसार, “चीनी क्षेत्र बड़े पैमाने पर परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और एक शक्तिशाली स्वच्छ ऊर्जा चालक के रूप में उभरा है, जो भारत के नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन को गति दे रहा है। इथेनॉल के लिए गन्ने का अधिक उपयोग अतिरिक्त चीनी आविष्कारों की समस्या को कम करेगा और कंपनी की अस्थिरता को कम करेगा, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर लाभप्रदता, कम कार्यशील पूंजी और मजबूत दीर्घकालिक नकदी प्रवाह होगा। अतिरिक्त चीनी की समस्या को हल करने के लिए, सरकार चीनी मिलों को अतिरिक्त गन्ने को इथेनॉल उत्पादन में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।भारत का इस तरह चीनी निर्यात करना देश की अर्थव्यवस्था को विकास की और ही अग्रसर कर रही है इससे अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्बन्ध सुधरेंगें साथ ही चीनी निर्यात से श्रमिकों को रोजगार प्राप्त होगा जिससे वह जीविकोपार्जन कर सकेंगें।
पिछले वर्ष मेरठ में बहु-हितधारक बैठक में उपस्थित छोटे गन्ना किसानों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। यह बैठक चीनी आपूर्ति श्रृंखला से संबंधित व्यापार और मानव अधिकारों के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पहली बैठक थी जिसमें 54 से अधिक किसानों (महिला किसानों सहित), स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) की महिलाओं और मेरठ, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर के नागरिक समाज के सदस्यों ने भाग लिया। बैठक के दौरान जिन अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई उनमें खेतिहर मजदूरों को मजदूरी के भुगतान का बढ़ता बोझ और उपचारात्मक उपाय के रूप में उत्तर प्रदेश में खेतिहर मजदूरों को मजदूरी के भुगतान के साथ सरकार की मनरेगा योजना को जोड़ने की संभावना थी। वर्तमान बाजार दरों के अनुसार, एक गन्ना किसान को एक खेत मजदूर को 300-400 रुपये के बीच मजदूरी का भुगतान करना होता है। यदि मनरेगा को गन्ने की खेती से जोड़ा जाता है, तो इस योजना से खेतिहर मजदूरों को लगभग 202 रुपये प्राप्त होंगे, जबकि शेष राशि छोटे किसान द्वारा वहन की जाएगी। मनरेगा को जोड़ने से (आंशिक रूप से) छोटे गन्ना किसानों को मजदूरी भुगतान के बोझ से राहत मिलेगी। प्रतिभागियों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि 5 लाख रुपये के निश्चित मुआवजे का प्रावधान, जो राज्य सरकार द्वारा खेत मालिकों को किसी भी प्राकृतिक आपदा के समय वितरित किया जाता है, अक्सर खेत मजदूरों (जो एक संविदात्मक व्यवस्था पर काम कर रहे हैं) को बाहर कर देता है। बैठक के दौरान लिंग आधारित वेतन असमानता के मुद्दे को भी एक महत्वपूर्ण चिंता के रूप में साझा किया गया। यह भी स्वीकार किया गया कि महिला खेतिहर मजदूरों को यौन उत्पीड़न अधिनियम के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और अन्य सुरक्षा और उपचारात्मक उपायों/प्रावधानों के बारे में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए जो वर्तमान में उनके लिए उपलब्ध हैं।
संदर्भ:-
https://bit.ly/3WaPVkM
https://reut.rs/3G6l977
https://bit.ly/3WuWYEB
shorturl.at/oAKRS
चित्र संदर्भ
1. भारतीय गन्ना किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. हाथ से गन्ने के रस को निकालते व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. शुगर मिल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत में गन्ने के उत्पादन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारतीय महिला किसान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.