दक्षिण अफ्रीका का डरबन शहर, भारत के बाहर स्थित एक ऐसा क्षेत्र, जहां भारतीय आबादी है सबसे अधिक

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
10-11-2022 11:30 AM
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दक्षिण अफ्रीका का डरबन शहर, भारत के बाहर स्थित एक ऐसा क्षेत्र, जहां भारतीय आबादी है सबसे अधिक

वर्तमान समय में भारतीय मूल के लोग केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेकों देशों में निवास करते हैं, जिनमें से दक्षिण अफ्रीका (South Africa) भी एक है।इन लोगों को भारतीय दक्षिण अफ्रीकी भी कहा जाता है। भारतीय दक्षिण अफ्रीकी, उन भारतीय लोगों के वंशज हैं, जो ब्रिटिश शासन के दौरान 1800 के दशक के अंत और 1900 की शुरुआत में गिरमिटिया मजदूरों और प्रवासियों के तौर पर भारत से दक्षिण अफ्रीका आए थे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों की संख्या सबसे अधिक डरबन (Durban) और उसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करती है।
इस प्रकार यह क्षेत्र भारत के बाहर मौजूद उन क्षेत्रों में से एक बन गया है, जहां सबसे अधिक भारतीय आबादी निवास करती है। हालांकि, यह बहुत ही कम लोग जानते हैं, कि डरबन, भारत के बाहर स्थित एक ऐसा क्षेत्र हैं,जहां भारतीय आबादी सबसे अधिक है। सन् 1936 तक दक्षिण अफ्रीका में 2,19,925 भारतीय रहते थे, जिनमें से आधी आबादी देश में पैदा हुई थी। सन् 1893 में महात्मा गांधी एक वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे तथा उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के राजनीतिक परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह एकीकृत भारतीय पहचान (Unified Indian Identity) के गठन का हिस्सा थे, तथा उन्होंने 1894 में दक्षिण अफ्रीका के पहले भारतीय राजनीतिक संगठन, नेटाल इंडियन कांग्रेस (Natal Indian Congress -NIC) का गठन किया था। आज दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी का लगभग 2.5% हिस्सा भारतीय आबादी से बना है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय आबादी ने न केवल विविधता में बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान दिया है।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगों के आगमन की शुरूआत की बात करें तो, इसकी शुरूआत सबसे पहले डच (Dutch) औपनिवेशिक युग के दौरान 1684 में हुई, जिसके तहत दास या गुलाम के रूप में भारतीय लोगों को दक्षिण अफ्रीका में लाया गया। माना जाता है, कि 16,300 से भी अधिक भारतीयों को गुलाम के रूप में केप (Cape) में लाया गया था। 1690 के दशक से लेकर 1725 तक 80% से अधिक भारतीय गुलाम के रूप में लाए गए। यह प्रथा 1838 में गुलामी के अंत तक जारी रही।19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, भारतीय लोग दो श्रेणियों में दक्षिण अफ्रीका आए, एक श्रेणी में गिरमिटिया श्रमिक तथा दूसरी श्रेणी में 'स्वतंत्र' या 'यात्री' रूप में आए भारतीय लोग शामिल थे।गिरमिटिया भारतीयों को जहां नेटाल के चीनी बागानों पर नेटाल औपनिवेशिक सरकार के लिए काम करना था, वहीं 'स्वतंत्र' श्रेणी के अंतर्गत आने वाले भारतीय व्यापार के नए अवसरों की तलाश में दक्षिण अफ्रीका आए थे। नवंबर 1860 और 1911 के बीच (जब गिरमिटिया श्रमिक व्यवस्था को रोक दिया गया था) पूरे भारत से लगभग 152184 गिरमिटिया मजदूर नेटाल पहुंचे थे। अनुबंध के पूरा होने के बाद, गिरमिटिया भारतीय दक्षिण अफ्रीका में रहने या भारत लौटने के लिए स्वतंत्र थे। 1910 तक, लगभग 26.85% गिरमिटिया पुरुष भारत लौट आए, लेकिन ज्यादातर लोगों ने वहीं रहना पसंद किया और इस तरह से उनके वंशज आज भी वहां रहते हैं। 1994 के साथ दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान का आगमन हुआ तथा आव्रजन नीति प्रतिबंध को खत्म कर दिया गया, जिससे भारत, पाकिस्तान (Pakistan), श्रीलंका (Sri Lanka) और बांग्लादेश (Bangladesh) के लोग नए प्रवासियों के रूप में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। हालाँकि, इन नए समूहों और भारतीय दक्षिण अफ्रीकियों के बीच एक प्रमुख सांस्कृतिक विभाजन देखने को मिलता है।
अधिकांश भारतीय दक्षिण अफ्रीकी लोगों द्वारा पहली भाषा के रूप में अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है, हालांकि कुछ समूह या लोग विशेष रूप से बुजुर्ग, अभी भी कुछ भारतीय भाषाओं का उपयोग करते हैं। इन भाषाओं में हिंदी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, पंजाबी और गुजराती शामिल हैं। भारतीय दक्षिण अफ्रीकी मुख्य रूप से हिंदू हैं, लेकिन 1860 की शुरुआत में मुस्लिम, ईसाई और सिख भी भारत से दक्षिण अफ्रीका आए थे, तथा उनके वंशज अभी भी दक्षिण अफ्रीका में रहते हैं।यहां के भारतीय लोग आज भी दिवाली जैसे मुख्य पर्व मनाते हैं, इसके अलावा तमिल मूल के लोग थाई पोसम कवाडी (Thai Poosam Kavady) नामक वार्षिक उत्सव का आयोजन भी करते हैं।दक्षिण अफ्रीका में इस्लामिक प्रभाव की बात करें, तो इस प्रभाव की शुरूआत भारत के पश्चिमी और दक्षिणी तट के गिरमिटिया श्रमिकों के आगमन के साथ हुई। इन श्रमिकों में केवल 7-10% मुस्लिम थे।मुस्लिम लोग हिंदू धर्म से प्रभावित न हों, इसलिए दक्षिण अफ्रीका में मुस्लिम समुदायों द्वारा इस्लामी त्योहार मनाए जाने लगे तथा मुस्लिम स्कूलों या मदरसों की स्थापना की गयी। ईद और रमजान जैसे पर्व भारतीय मूल के मुस्लिमों द्वारा यहां मनाए जाते हैं।
इसी प्रकार से दक्षिण अफ्रीका में भारत की सिख धर्म से सम्बंधित आबादी भी मौजूद है, हालांकि इनकी संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है।एक संपूर्ण भारतीय आबादी के रूप में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के 10 लाख से भी अधिक लोग निवास करते हैं।इसलिए, भारतीय प्रभावों ने दक्षिण अफ्रीका की बहु- सांस्कृतिक विविधता में विशेष योगदान दिया है। उन्नीसवीं सदी में दक्षिण अफ्रीका लाए गए हजारों भारतीय मजदूरों के साथ कई भारतीय व्यंजनों का आगमन भी दक्षिण अफ्रीका में हुआ अर्थात भारतीय व्यंजनों का प्रभाव यहां के व्यंजनों पर भी पड़ने लगा। करी, रोटियां, मिठाइयां, चटनी, तले हुए स्नैक्स जैसे, समोसा आदि यहां के व्यंजनों का मुख्य हिस्सा बन गए। डरबन के भारतीय व्यंजन बनी चाउ (Bunny chow) को यहां बहुत अधिक पसंद किया जाता है। इसके अलावा भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकियों पर भी वहां के समाज और संस्कृति का व्यापक प्रभाव हुआ है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3uLHKO7
https://bit.ly/3eKEP2L
https://bit.ly/2SGsOCE

चित्र संदर्भ
1. पोसम कवाडी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मेलबर्न में गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गिरमिटिया भारतीयों को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
4. पोसम कवाडी (Thai Poosam Kavady) नामक वार्षिक उत्सव को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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