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रामायण के लेखक महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य में आदिकवि के रूप में माना जाता है।
आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का
अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'। वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी जो
रामायण के नाम से प्रसिद्ध है। प्रथम संस्कृत महाकाव्य की रचना करने के कारण वाल्मीकि
आदिकवि कहलाये।
मूल रूप से वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में 24,000 श्लोक और सात सर्ग हैं। रामायण
लगभग 480,002 शब्दों से बनी है, जो महाभारत के पूर्ण पाठ की लंबाई का एक चौथाई या इलियड
(Greek Illiad) की लंबाई का लगभग चार गुना है। रामायण कोसल राज्य में अयोध्या शहर के एक
राजकुमार और भगवान विष्णु के अवतार श्री राम की कहानी बताती है, जिनकी पत्नी सीता का
अपहरण लंका के राक्षस-राजा रावण द्वारा किया जाता है।
अपने महाकाव्य "रामायण" में महर्षि ने
अनेक घटनाओं के समय सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों का वर्णन किया है। इससे ज्ञात
होता है कि वे ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी महान ज्ञानी भी थे। वाल्मीकि की रामायण
500 ईसा पूर्व से 100 ईसा पूर्व या महाभारत के प्रारंभिक संस्करणों के साथ सह-विकास के बारे में
विभिन्न प्रकार से दिनांकित है। हालांकि कई पारंपरिक महाकाव्यों की भांति यह भी प्रक्षेप और
संशोधन की प्रक्रिया से भी गुजरी है, जिससे इसकी सटीक रूप से तारीख ज्ञात करना असंभव हो
गया है।
हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, अश्विन महीने में पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है।
एक "भारतीय ज्ञानोदय" अवधि के हिस्से के रूप में, महर्षि वाल्मीकि को राम का समकालीन भी
कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि का जन्म भृगु गोत्र में अग्नि शर्मा नामक एक ब्राह्मण के रूप में
हुआ था, किंवदंती के अनुसार वह एक बार ऋषि नारद से मिले थे और उनके साथ उनके कर्तव्यों पर
प्रवचन किया था। नारद के शब्दों से प्रेरित होकर, अग्नि शर्मा ने तपस्या करना शुरू कर दिया और
"मरा" शब्द का जाप किया, जिसका अर्थ है "मरना"। उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की और यह
शब्द "राम" बन गया। अग्नि शर्मा के चारों ओर विशाल वल्मीक (चींटी की चली हुई मिट्टी का ढेर)
बन गए और इसने उन्हें वाल्मीकि का नाम दिया।
वाल्मीकि के रूप में पुनर्नामांकित अग्नि शर्मा ने नारद से शास्त्रों को सीखा और सभी के लिए
पूजनीय तपस्वियों में अग्रणी बन गए। महर्षि वाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण के अंतिम अध्याय
उत्तरकांड में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पौराणिक कथा के अनुसार, जब राम ने सीता को
जंगल में भेजा था। तो माता सीता ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में उनकी शरण में आती हैं, जहाँ
उन्होंने जुड़वां लड़कों लव और कुश को जन्म दिया। लव और कुश वाल्मीकि के पहले शिष्य थे,
जिन्हें उन्होंने रामायण की शिक्षा दी थी। माना जाता है की अपने वनवास काल के दौरान भगवान
"श्रीराम" भी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गये थे। भगवान वाल्मीकि को "श्रीराम" के जीवन में
घटित प्रत्येक घटना का पूर्ण ज्ञान था।
सतयुग, त्रेता और द्वापर तीनों कालों में वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है इसलिए भगवान
वाल्मीकि को सृष्टिकर्ता भी कहते है। वाल्मीकि महाभारत के समय में मौजूद थे और वह युद्ध के
बाद युधिष्ठिर से मिलने वाले कई संतों में से एक थे। उन्होंने युधिष्ठिर को शिव की आराधना के
लाभ बताए। साथ ही जब पांडव युद्ध जीत जाते हैं तो द्रौपदी ने यज्ञ का आयोजन किया था, जिसके
सफल होने के लिये शंख का बजना जरूरी था परन्तु कृष्ण तथा अन्य के द्वारा प्रयास करने पर भी
पर यज्ञ सफल नहीं होता तो कृष्ण के कहने पर सभी वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि
वहां प्रकट होते हैं तो शंख खुद बज उठता है और द्रौपदी का यज्ञ सम्पूर्ण हो जाता है।
माना जाता है कि चेन्नई में एक क्षेत्र, तिरुवन्मियूर का नाम ऋषि वाल्मीकि, थिरु-वाल्मीकि-ऊर से
लिया गया है। इस स्थान पर वाल्मीकि का एक मंदिर है, जो 1300 वर्ष पुराना माना जाता है।
कर्नाटक के राजनहल्ली में श्री वाल्मीकि माता महा संस्थान भी है। मेरठ-बागपत मार्ग पर बलैनी
गांव में भी एक प्रमुख वाल्मीकि मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यह मंदिर लव-कुश की जन्मस्थली
है और माता सीता भी यही पर धरती माता की गोद में समाई थीं। भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ के
घोड़े की लगाम भी यहीं थामी गई थी। लव-कुश को शस्त्र एवं शास्त्र विद्या महर्षि वाल्मीकि जी
द्वारा बालैनी में दी गई थी।
महर्षि वाल्मीकि का यह आश्रम इतना प्राचीन है,की यहां तीन दशक पूर्व खुदाई में प्रतिमाएं और
चांदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहां खुदाई में नौ इंच चौड़ाई तथा 12 इंच लंबाई की सात से दस किलो
वजन की चपटी ईंटें और पांच हजार साल पुरानी नाधिया मूर्ति भी मिली थीं। आज इस वाल्मीकि
मंदिर में लव-कुश जी की जन्म स्थली, सीता मैया की समाधि स्थल, पंचमुखी महादेव मंदिर, राधा-
कृष्ण जी का मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर, शनि मंदिर और विशाल यज्ञशाला है। मंदिर में विराजमान
कई प्रतिमाएं हजारों साल पुरानी मानी जाती हैं।
सन्दर्भ
https://bit.ly/3SZagaB
https://bit.ly/3ymiuBL
चित्र संदर्भ
1. महर्षि वाल्मीकि व् मेरठ के निकट वाल्मीकि मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. वाल्मीकि तीरथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. द्वारका तिरुमाला, आंध्र प्रदेश में ऋषि वाल्मीकि की प्रतिकृति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. लव और कुश के साथ महर्षि वाल्मीकि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. भगवान वाल्मीकि तीर्थ स्थल, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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