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भारत ने प्राचीन काल से ही विश्व शांति का समर्थन किया है। हमारे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में विश्व
शांति (विश्व की शांति) को बहुत अधिक वरीयता दी गई है, किंतु आधुनिक जगत में यदि किसी
व्यक्ति ने वास्तव में सत्य एवं शांति की परिकल्पना को साकार किया है, तो वह और कोई नही देश
के राष्ट्रपिता महात्मां गांधी जी हैं।
इस बात में कोई दोराय नहीं है की महात्मा गांधी अब तक के सबसे असाधारण इंसानों में से एक हैं।
अहिंसक मार्ग को अपनाकर स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई उनकी लड़ाई किंवदंतियों के सामान प्रतीत
होती है। वह व्यक्ति केवल शांति और सच्चाई पर भरोसा करके पूरे देश को मुक्त करने में कामयाब
रहा। गांधी जी के तरीकों ने 20वीं सदी के अन्य प्रमुख नामों जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर और
जेम्स बेवेल (Martin Luther King Jr. and James Bewell) को भी प्रेरित किया है।
महात्मा गांधी ने प्रतिरोध के लिए एक सही तरीका नहीं खोजा, उन्होंने केवल ब्रिटिश औपनिवेशिक
उत्पीड़न को देखा, और एक ऐसा आंदोलन तैयार किया जिसका उपयोग हर वो व्यक्ति कर सकता
है जो अपने नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ना चाहता है। उनका आंदोलन अहिंसक
सविनय अवज्ञा पर आधारित था, और इसे सत्याग्रह कहा गया, जो "सत्य के आग्रह" के लिए
संस्कृत शब्द है। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक अहिंसक प्रतिरोध (सत्याग्रह) में भी बहुत कुछ
लिखा है। सत्य को गांधी आंदोलन का आधार माना जाता है। गांधी जी ने सविनय अवज्ञा में ही
समाधान खोजा। वह मानते थे कि सत्य भारतीय लोगों को स्वतंत्र कर देगा। जब भारतीय लोग
स्वतंत्रता चाहते थे और उनका उद्देश्य न्यायसंगत और सही था, अतः अंग्रेज भारतीय लोगों को
हमेशा के लिए नियंत्रित नहीं कर सकते थे।
हालांकि गांधी जी के बिना भी हम शायद अंततः स्वतंत्रता प्राप्त कर लेते, लेकिन किस कीमत पर?
केवल हिंसा के मार्ग को अपनाकर शेष जीवित लोगों के लिए स्वतंत्रता प्राप्त करने से पहले कितने
लोग मर जाते!
गांधी जी ने सत्य एवं अहिंसा का जिस तरह से इस्तेमाल किया वह लोकतंत्र का सही और एकमात्र
सार्थक तरीका है। यह हमें दिखाता है कि सच्चाई और शांति वास्तव में स्वतंत्रता के मूल में हैं।
उन्होंने अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक “सत्य के साथ मेरे प्रयोगों की कहानी” में अपने पथ के बारे
में लिखा। "विनम्र तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं।"
सत्य के प्रयोग गुजराती भाषा में लिखी महात्मा गांधी की आत्मकथा है। प्रतिवर्ष 27 नवम्बर को
'सत्य का प्रयोग' के आधारित प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं। यह साप्ताहिक किश्तों में
लिखी गई थी और 1925 से 1929 तक उनकी पत्रिका नवजीवन में प्रकाशित हुई। 1998 में, वैश्विक
आध्यात्मिक और धार्मिक अधिकारियों की एक समिति द्वारा पुस्तक को "20वीं शताब्दी की 100
सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक पुस्तकों" में से एक के रूप में नामित किया गया था।
पुस्तक की प्रस्तावना में, गांधी जी कहते हैं: वास्तविक आत्मकथा लिखने का प्रयास करना मेरा
मूल उद्देश्य नहीं है। मैं केवल सत्य के साथ अपने प्रयोगों की कहानी बताना चाहता हूं, और चूंकि
मेरे जीवन में प्रयोगों के अलावा और कुछ नहीं है, इसलिए यह भी सच है कि मेरी कहानी एक
आत्मकथा का रूप ले लेगी। लेकिन मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी अगर इसका हर पृष्ठ केवल मेरे
प्रयोगों की बात करता है। यह पुस्तक बताती है कि कैसे गांधी जी ने सत्य की खोज के लिए स्वयं
पर प्रयोग किया, सत्य उनके लिए ईश्वर का पर्याय है।
उनकी आत्मकथा अपनी स्पष्ट, सरल, मुहावरेदार भाषा और पारदर्शी रूप से ईमानदार वर्णन के
लिए विख्यात है। गांधी के जीवन और विचारों की व्याख्या के लिए आत्मकथा ही एक महत्वपूर्ण
दस्तावेज बन गई है। सत्य विभिन्न समूहों के अनुभवों को प्रकट और मान्य करके विरोधी दलों के
बीच तनाव को कम करने में मदद करता है, इसलिए लंबे समय तक शांति और सामाजिक
परिवर्तन को प्राप्त करने के लिए सत्य बोलना आवश्यक है।
संदर्भ
https://bit.ly/3E030Hq
https://bit.ly/3E2aslq
https://bit.ly/3SkYZSa
https://bit.ly/3SjMwhB
चित्र संदर्भ
1. राष्ट्रीय ध्वजों के साथ विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. दिल्ली में जमनालाल बजाज के साथ गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सत्य के प्रयोग पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. गांधीजी के तीन बंदरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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