ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है मेरठ के पूर्वी बाहरी इलाके में बसा अब्दुल्लापुर सादात क्षेत्र

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ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है मेरठ के पूर्वी बाहरी इलाके में बसा अब्दुल्लापुर सादात क्षेत्र

मेरठ भारत का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षेत्र है।प्राचीन समय से लेकर वर्तमान समय तक यह विभिन्न कारणों से प्रसिद्ध रहा है।इसके निकट स्थित क्षेत्र भी किसी न किसी विशेषता की वजह से महत्वपूर्ण रहे हैं।अब्दुल्लापुर सादात भी एक ऐसा ही क्षेत्र है।यह मेरठ के पूर्वी बाहरी इलाके में मौजूद एक ऐतिहासिक बस्ती है, जो गंगा नगर के दक्षिण में स्थित है।इस क्षेत्र की स्थापना तथा इसके किले का निर्माण मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में सैयद अब्दुल्ला नकवी ने किया था।
यह नकवी बुखारी सादात का निर्वाचन क्षेत्र है। यहां बसने वाले पहले लोगों में सैयद अली नकवी के वंशज शामिल थे जो कन्नौज जिले से यहां आए थे।कन्नौज में उनके कई साक्ष्य देखने को मिलते हैं। जैसे प्रसिद्ध परफ्यूमरी (Perfumery)सबसे पहले उनके द्वारा ही कन्नौज में पेश की गई थी। इसके अलावा प्रसिद्ध 450 साल पुरानी मखदूम जहांनिया जहांगश्त मस्जिद भी कन्नौज में वर्तमान समय में मौजूद है। सैयद अली नकवी के वंशज पहले कन्नौज से मुस्तफाबाद-बुखारपुरा और फिर बाद में अब्दुल्लापुर मेरठ चले आए। बाद में वे सैयद सदरुद्दीन मोहम्मद गौस के वंशजों में शामिल हो गए। दोनों 12वीं सदी के मशहूर संत सैयद जलाल हैदर सुर्ख बुखारी के बेटे थे। अब्दुल्लापुर में एक ही वंश की कुछ शाखाएँ मौजूद हैं, जो गंगा और जमुना नदी के बीच दोआब क्षेत्र में सबसे बड़े जागीरदार हुआ करते थे। जैसे सैयद अजमत अली के पास दरवेशपुर, बहादरपुर, बाटनोर, नंगला ताशी-कासिमपुर आदि गाँव थे, वैसे ही सैयद शाकिर अली के पास नसीरपुर, इस्लामाबाद-चिलोरा, खुर्रमपुर-कंकरखेड़ा, सोफीपुर, मैदपुर, राली चौहान आदि गाँव थे। सैयद शमशेर अली के पास इसापुर जैसे कुछ अन्य गांव थे। इस दौरान अब्दुल्लापुर में बेर की खेती (जो कि यहां पहले से ही बहुत प्रसिद्ध थी),की जाती थी।
वर्तमान समय में पूरा गंगानगर अब्दुल्लापुर की जमीन पर ही बना हुआ है। सैयद बुनियाद अली और सैयद बादशाह अली की जीवन शैली बहुत भव्य थी तथा दोनों को अब्दुल्लापुर की सबसे मशहूर हस्तियों के रूप में जाना जाता था। वास्तव में देखा जाए तो,अब्दुल्लापुर मुख्य रूप से इन्हीं दोनों व्यक्तियों की वजह से प्रसिद्ध था। यहां 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान कई प्रसिद्ध इमारतों का निर्माण हुआ। सबसे पुरानी इमारत को सैयद शाकिर अली द्वारा 1839 में बनाया गया था,जिसे दीवान-खाना शाकिर अली के नाम से जाना जाता है।उनके पोते जिन्हें सैयद शाकिर अली के नाम से जाना जाता है, ने वर्ष 1912 में शाकिर महल का निर्माण किया था।यहां 1916 में सैयद अजमत अली द्वारा निर्मित एक अज़मत मंजिल भी है।इसके अलावा सैयद शमशेर अली द्वारा यहां 52 दारी (52 प्रवेश द्वार) का निर्माण भी किया गया था। अब्दुल्लापुर का कोट किला या कोटगढ़ भी यहां काफी प्रसिद्ध है, जिसे 16वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। यह किला सैयद मीर अब्दुल्ला नकवी अल बुखारी का मुख्य निवास था। इसके अलावा यहां के उल्लेखनीय स्थलों में बड़ा दरवाजा (कोट किले का मुख्य प्रवेश द्वार), सैयद असगर हुसैन का इमामबाड़ा, कोट मस्जिद, सैय्यद मकबरा, सैयद बरकत अली नकवी की 300 साल पुरानी पक्की बैठक, प्राचीन शिव मंदिर आदि शामिल हैं।
मेरठ की जिला जेल अब्दुल्लापुर में ही स्थित है।इस जेल के साथ एक शानदार इतिहास जुड़ा हुआ है क्योंकि इसकी स्थापना 1857 की शुरुआत में हुई थी।इसे श्री चौधरी चरण सिंह जेल भी कहा जाता है, जिसका नाम भारत के 5 वें प्रधान मंत्री के नाम पर रखा गया है। इस्लाम की दृष्टि से भी यह स्थान महत्वपूर्ण है,क्यों कि यहां का 9वां मोहर्रम काफी प्रसिद्ध है।सैयद कुदरत नकवी, जो कि प्रसिद्ध पाकिस्तानी लेखक, भाषाविद्, आलोचक थे,अब्दुल्लापुर के ही नागरिक थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण रचनाएं लिखीं, जिनमें “गालिब कौन है”, “आस-ए-उर्दू”, “ग़ालिब-ए-साद रंग”, “सीरत-उन-नबी”, “हिंदी-उर्दू लुघाट”, “मुतल्ला-ए-अब्दुल हक”, “लिसानी मक़ालात”आदि शामिल हैं। हालांकि जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तब वे पाकिस्तान जा बसे।

संदर्भ:
https://bit.ly/3S7VbDQ
https://bit.ly/3BAnZxB
https://bit.ly/3S5SDG5

चित्र संदर्भ
1. जमींदार सैय्यद मोहम्मद नकवी का मकबरा और मस्जिद, अब्दुल्लापुर मेरठ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. जमींदार सैय्यद हुसैन अहमद नकवी को अपने बेटों (सैयद अली अब्बास नकवी और सैयद मिरसाहिब बादशाह अली नकवी) के साथ नसरपुर, हवेली में दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. शाकिर महल अब्दुल्लापुर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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