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ओजोन परत धरती का ऐसा कवच है, जो सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन
(ultra-violet radiation) यानी पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करती है, इसलिए हमारे
वायुमंडल में ओज़ोन परत का बहुत महत्त्व है। इन किरणों का पृथ्वी तक पहुँचने का मतलब
है अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना। इसके अलावा यह पेड़-
पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है। पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं
और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है।
लेकिन हाल ही में पता चला है कि ओजोन परत का अवक्षय बहुत तेजी से हो रहा है। इसका
मुख्य कारण मनुष्य द्वरा बनाये गए क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) यौगिक है। इसके अलावा
हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को
नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं। क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यत: अपनी
दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग,
प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं। ये रासायनिक पदार्थ बहुत स्थाई होते है, जिसके कारण ये
वायुमंडल में लंबे समय तक रहकर वायुमंडल के ऊपरी परत अर्थात ओजोन परत तक पहुँच
जाते है। ये सूर्य से आती पराबैंगनी विकिरणों को तोड़कर क्लोरीन बनाते है। क्लोरीन का एक
परमाणु ओजोन के कई परमाणुओं को नष्ट कर सकता है। यह प्रक्रिया ठण्ड के दिनों में
बादलों में स्थित बर्फ के टुकड़ो के कारण और तेजी से होता है। इसी कारण ओजोन परत की
क्षति दक्षिण ध्रुव पर सर्वाधिक है। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि अंटार्कटिका
महाद्वीप के ऊपर ओज़ोन परत में एक बड़ा छिद्र हो गया है और यह लगातार बढ़ रहा है।
इससे अंटार्कटिका के ऊपर वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा 20 से 30 प्रतिशत कम हो गई है।
इसमें छेद होने से धरतीवासियों के लिए खतरा और चुनौतियां बढ़ गई है। जलवायु पर कई
तरह के खतरे उत्पन्न हो गए हैं, इतना ही नहीं ओजोन को भेदकर आने वाली सूर्य की
पराबैंगनी विकिरण के कारण मौसम प्रणाली भी बदल रही है।
परन्तु अच्छी खबर यह है कि कई सरकारों ने पृथ्वी की ओजोन परत पर उत्पन्न हो रहे इस
संकट के निवारण के कदम उठाए है। ओजोन परत के विनाश के विश्वव्यापी खतरे की
समस्या का हल निकालने हेतु 16 सितम्बर, 1987 में कनाडा (Canada) के मांट्रियल शहर
में हुई 47 राष्ट्रों की एक बैठक में विचार किया गया और मांट्रियल प्रोटोकाल नामक एक
समझौते पर हस्ताक्षर हुए। तब से विश्व ओजोन दिवस हर साल 16 सितंबर को मॉन्ट्रियल
प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) पर हस्ताक्षर करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो
ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके
से समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है। यह दिवस हर वर्ष ओजोन
परत को हो रहे नुकसान के बारे में और इसे संरक्षित करने के लिए किए गए और किये जा
रहे उपायों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है।
मॉन्ट्रियल संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने क्लोरो फ्लोरो कार्बन और टेट्रा क्लोराइड
जैसी गैसों के प्रयोग को भी पूरी तरह से बंद करने की शुरुआत की थी। मॉन्ट्रियल प्रोटोकाल
वस्तुतः ओज़ोन परत के संदर्भ में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसमें ओज़ोन परत को नुकसान
पहुँचाने वाले पदार्थों को कम करने पर ज़ोर दिया जाता है। मुख्य पदार्थों में
क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी), हैलोन, कार्बन
टेट्राक्लोराइड, मिथाइल क्लोरोफॉर्म और मिथाइल ब्रोमाइड शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक पदार्थ
के कारण ओजोन परत को होने वाली क्षति को उनकी ओजोन रिक्तीकरण क्षमता (ODP) के
रूप में व्यक्त किया जाता है।
लेकिन अब वैज्ञानिक चिंतित हैं, क्योंकि ओजोन-क्षयकारी रसायनों को हाइड्रो एफ-गैसों (F-
gases) के साथ परिवर्तित कर दिया गया हैं, एफ-गैसों में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी),
पेरफ्लूरोकार्बन (पीएफसी) और सल्फर हेक्साफ्लोराइड (एसएफ6) शामिल हैं। ये गैसें ओजोन
परत को नष्ट नहीं करती हैं। परन्तु देखा गया की ये ग्रीनहाउस गैसें है। इसका मतलब है
कि ये नई गैसें जलवायु परिवर्तन में भी योगदान करती हैं। इन एफ-गैसों का अक्सर कार्बन
डाइऑक्साइड (CO2) जैसी 'पारंपरिक' ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में जलवायु पर कहीं अधिक
प्रभाव पड़ता है। सौभाग्य से, एफ-गैसों का उत्सर्जन CO2 की तुलना में बहुत कम है, लेकिन
1990 के दशक से एफ-गैसों का उपयोग और वातावरण में उनकी उपस्थिति में वृद्धि हुई है।
एफ-गैसों को सीमित करने के लिए एफ-गैस उत्सर्जन की निगरानी वैश्विक और यूरोपीय
समझौते "संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (United Nations
Framework Convention on Climate Change-UNFCCC)" और इसके क्योटो
प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) के तहत की जाती है, लेकिन वर्तमान में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
द्वारा इसे संबोधित नहीं किया गया है।
फ्लोरिनेटेड गैसें वर्तमान में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 2% हिस्सा हैं। कई
देशों ने यूरोपीय संघ के नेतृत्व में एफ-गैसों पर उपाय करना शुरू कर दिया है, जिसने 2030
तक एचएफसी, सबसे महत्वपूर्ण एफ-गैसों के उपयोग को आज के स्तर के 80% तक कम
करने के लिए प्रतिबद्ध किया है। चूंकि एफ-गैस जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं,
इसलिए व्यवसाय अब उन्हें अन्य पदार्थों के साथ बदलने की कोशिश कर रहे हैं। विकल्प जो
ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन में भी योगदान
नहीं करते हैं।
कई वैज्ञानिक उम्मीद करते हैं कि समय के साथ ओजोन छिद्र ठीक हो जाएगा। परन्तु
हालात देखकर तो ऐसा नहीं लगता की ओजोन छिद्र ठीक हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के विश्व
मौसम विज्ञान संगठन (The World Meteorological Organization-WMO) ने 'स्टेट ऑफ
द ग्लोबल क्लाइमेट इन 2021 (State of the Global Climate in 2021)' रिपोर्ट जारी
की है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की यह रिपोर्ट ऐसे समय में प्रकाशित हुई है जब मौसम
में होने वाले गंभीर बदलावों से हाल के दिनों में करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। रिपोर्ट में कहा
गया है कि वर्ष 2021 के दौरान, जलवायु परिवर्तन के प्रमुख संकेतकों – ग्रीनहाउस गैस की
सघनता, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, महासागर का बढ़ता तापमान और समुद्री अम्लीकरण ने
नया रिकॉर्ड बनाया है। रिपोर्ट के अनुसार, वास्तविक समय के आंकड़ों से पता चला है कि
ग्रीनहाउस गैस सघनता का स्तर वर्ष 2020 में 413.2 पार्ट्स प्रति मिलियन पहुंच गया। यह
अब तक का सर्वाधिक स्तर है। यह पूर्व-औद्योगिक काल (1850-1900) के स्तर की तुलना
में 149% अधिक है। महासागर ताप रिकॉर्ड स्तर पर है। महासागर के ऊपरी 2000 मीटर
की गहराई तक तापमान का वर्ष 2021 में बढ़ना जारी रहा।
यह भविष्य में भी जारी रहने
की सम्भावना है। डेटा दिखाता है कि पिछले दो दशकों में महासागरों के गर्म होने की स्पीड
बढ़ी है। 2021 में ओजोन छिद्र का आकार अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है। 2021 में
अंटार्कटिक ओजोन छिद्र अपने अधिकतम क्षेत्र (70 प्रतिशत से अधिक बड़ा और गहरा) में
पहुंच गया और 1979 के बाद से यह सबसे बड़ा छिद्र है, जिस कारण जलवायु पर कई तरह
के खतरे उत्पन्न हो गए हैं। साल के आरम्भ और अन्त में ला नीना के शीतलन प्रभाव के
कारण यह अन्य वर्षों की तुलना में कम है। वर्ष 2015 से 2021, पिछले सात वर्षों ने अब
तक के सर्वाधिक गर्म साल होने का रिकॉर्ड बनाया है। यूएन एजेंसी के अनुसार यह दिखाता
है कि मानव गतिविधियों के कारण धरती, महासागर व वातावरण में व्यापक बदलाव आ रहा
है। इससे विकास व पारिस्थितिकी तंत्रों पर लंबे समय में दुष्परिणाम होंगे। इस समस्या को
देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (António Guterres) कहते है की
नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy), वास्तविक ऊर्जा सुरक्षा, स्थिर बिजली की कीमतों
और स्थायी रोजगार के अवसरों का एकमात्र मार्ग है। यदि हम एक साथ कार्य करते हैं, तो
अक्षय ऊर्जा परिवर्तन 21 वीं सदी की शांति परियोजना हो सकती है और वैश्विक जलवायु
परिवर्तन रोकने ने एक ठोस कदम साबित हो सकती है।
संदर्भ:
https://go.nasa.gov/2MJFyo3
https://bit.ly/3Bb0X0d
https://bit.ly/3eFHX2i
https://bit.ly/3L1ZCNH
चित्र संदर्भ
1. ग्रीनहाउस प्रभाव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अंटार्कटिका में विशाल हिमखंड को दर्शाता एक चित्रण (
European Wilderness Society)
3. ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987 में अपनाया गया) की सदस्यता वाले देशों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अंटार्कटिका में विशाल ओज़ोन छिद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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