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पीले-पीले सरसो के खेत मानो ऐसी छवी प्रस्तुत कर रहे हैं जैसे की कोई पीले रंग का समंदर हो। सरसों अपनी इस मनमोहक अदाओं से किसी को भी खींचने में सफल हैं। इस पीले समंदर में नीलगायों का ये झूँड ऐसा लग रहा है जैसे अथाह सागर में कोई नौका हो। वसंत ऋतु और ये खेत और ये जानवर ऐसे दिख रहे हैं जैसे प्रकृति और संस्कृति का मिलन हो गया हो। कितने ही कवियों ने इस ऋतु के बारे में अद्भुत कविताओं का निर्माण किया। नीलगाय एक अत्यन्त सुन्दर और चंचल किस्म के प्राणी हैं ये अपनी खूबसूरती से किसी को भी आकर्षित करने का माद्दा रखते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2013 में इस प्राणी को मारने का आदेश दिया गया था, सन् 2015 में मध्यप्रदेश की सरकार ने भी इस प्राणी को मारने का आदेश जारी किया कारण था कि ये जानवर फसलों को नष्ट करने का कार्य करते हैं। कितने ही प्राणी आज वर्तमान काल में विलुप्त हो चुके हैं और कितने ही आज विलुप्तता के श्रेणी में हैं जैसे हाँथी, बाघ, शेर काला हिरण आदि। एक ऐसा भी समय था जब ये सारे जानवर बड़ी संख्या में भ्रमण किया करते थें पर आज ये या तो कई स्थानों से विलुप्त हो चुके हैं या फिर विलुप्तता के कगार पर हैं। कभी हिमालय की तराई से लेकर गंगा यमुना के दोआब तक सघन जंगल हुआ करता था जहाँ पर इन सभी जानवरों का निवास हुआ करता था, पर फिर जनसंख्या विस्फोट और नगरीकरण की शुरुआत हुई तथा जानवरों के शिकार की शुरुआत भी हुई। इस पूरे प्रकरण में जंगलों की अंधाधुन्ध कटाई हुई और शिकार भी कि बचे-खुचे जानवरों को अपना वास्तविक स्थान छोड़कर छोटे-छोटे जंगलों में जाना पड़ा जो की मानवों के रहमो करम पर बच गये थें। जानवरों के प्राकृतिक निवास खेत में और बड़ी-बड़ी चमचमाती इमारते खड़ी हो गयीं। ज्यादा जानवरों के एक छोटे जंगल में आजाने के कारण जानवरों के मध्य कई भिड़न्त होने लगी जिसका प्रमाण यह हुआ की जानवर और ज्यादा हिंसक हो गये। नीलगाय जंगलों से बाहर अपने प्राकृतिक आवास में आ गये अब इनका सामना मानवों से होने लगा, जैसा की उनके प्राकृतिक स्थान पर खेत आ गये तो ये खेतों में फसल खाने लगे जिससे इनको किसान एक अभिषाप के रूप में देखने लगे। इसी के तहत सरकार का ये आदेश कि इनकी हत्या कर दी जाये तथा मात्र 30 प्रतिशत नीलगायों की आबादी को छोड़ा जाये, जैसा की यह कहा गया है की पूरे प्रदेश में 2.3 लाख नीलगाय रहती हैं। यह कथन कि नीलगाय मानव आबादी में आने लगी है जबकी सत्यता यह है कि मानव नीलगायों के प्राकृतिक आवास में घुसपैठ कर लिये हैं पेटा द्वारा जारी किया यह कथन कई स्थानों पर सत्य प्रतीत होता है। प्राकृतिक संतुलन जरूरी है तथा मानवों का जंगलों की तरफ जाना प्राकृतिक संतुलन के लिये हानिकारक है। वर्तमान काल के मेरठ के हस्तिनापुर जीव अभ्यारण से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार से एक जंगल अाज छोटे से क्षेत्र में सीमित हो गया है जिसका विवरण महाभारत में एक सघन जंगल के रूप में लिखा गया है।
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