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केरल के पालक्काड, तृश्शूर और वायनाड जिले में प्रचलित कुम्माट्टिक्कली एक
लोक कला है जिसका आयोजन मकरम और कुंभम के मलयालम महीने में
किया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे मनोरंजर कार्यक्रम के रूप में माना जाता है
खासकर ओणम के दिनों में। कुम्मत्तिकली की उत्पत्ति भगवान शिव और उनके
भूत गणों से जुड़ी हुई है। यह मुखौटा-नृत्य भगवान शिव की पूजा के बाद प्रारंभ
किया जाता है। हरी घास से बनी वेशभूषा और सर पर लकड़ी के मुखौटों के
साथ, कुम्मत्तियां (Kummattis) त्रिशूर, ओणम समारोह में रंग भर देती हैं। ढोल
की थाप के साथ वे शानदार ओणम साद्या (एक विशेष भोजन) के बाद लोगों
का मनोरंजन करने के लिए सड़कों पर उतरते हैं। इस नृत्य से कई
ऐतिहासिक कहानियां जुड़ी हैं:
महाभारत में पांडवों के 13 साल के वनवास के दौरान एक बार भगवान शिव
अर्जुन के समक्ष एक किरात के रूप में प्रकट हुए। शिव और अर्जुन ने एक ही
सूअर का शिकार किया था।अर्जुन और शिव (जो की किरात के रूप में प्रकट हुए
थे) दोनों ने वराह के पैर पर तीर चलाया। उसमें से एक तीर सूअर को लग
गया और वह मर गया। दोनों ही शिकार पर अपना अधिकार जमाने लगे; देखते
ही देखते दोनों में शब्दों की लड़ाई छिड़ गई और फिर बहस ने भयंकर लड़ाई
का रूप ले लिया।
इस लड़ाइ में किरात (शिव) ने अर्जुन के सभी प्रयासों को
विफल कर दिया; जल्द ही अर्जुन को एहसास हुआ कि किरात कोई इंसान नहीं
है।अर्जुन ने तुरंत कुछ मिट्टी एकत्र की, और उस मिट्टी से एक शिवलिंग
बनाया और उस पर वन के फूलों की वर्षा करने लगे। किरात के सिर पर फूलों
की वर्षा होने लगी। अर्जुन, शिव (किरात) के चरणों में गिर पड़े। शिव और
पार्वती उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें दिव्य अस्त्र प्राप्त करने का
आशीर्वाद दिया। इस दिव्य घटना पर शिव के सभी भूत गण नाचने और गाने
लगे। और इस नृत्य को बाद में कुम्मत्तिकली के नाम से जाना जाने लगा।
एक अन्य लोकप्रिय कथा यह है कि राजा बलि (महाबली या मवेली) शिव के
प्रबल भक्त थे। ओणम राजा बलि की वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
इसलिए, लोगों के कल्याण के बारे में जानने के लिए शिव भूत गण भी इस
अवधि के दौरान आते हैं। वे कुम्मत्तिकली के माध्यम से राजा बलि का स्वागत
भी करते हैं। नृत्य का मुख्य आकर्षण लकड़ी का मुखौटा और नर्तकियों द्वारा
पहनी जाने वाली हरी घास की पोशाक है। नर्तकियों द्वारा एक लंबी छड़ी धारण
की जाती है। मुखौटों में शिव को किरात के रूप में, बूढ़ी औरत, हनुमान, देवी
काली, नरसिंह, तिरुपति के भगवान बालाजी आदि को दर्शाया जाता है।किंवदंती
है कि इसलिए, कुम्मत्तिकली को भगवान शिव के 'भूतों' का नृत्य माना जाता
है। इस कला के साथ और भी कई कहानियाँ जुड़ी हुई हैं।
ओणम के त्योहार के दौरान, कुम्मत्तिकली के कलाकार घर-घर जाकर छोटे-छोटे
उपहार इकट्ठा करते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं। ओणम के दौरान
तृश्शूर जिले में कुम्मत्तिकली नृत्य बड़े पैमाने पर होता है। पलक्कड़ जिले के
भद्रकाली मंदिर में कुम्मत्तिकली का प्राचीन या मूल रूप देखा जा सकता है।
कुम्मत्ती नर्तकियों को नृत्य करते देखना बहुत सुन्दर दृश्य होता है वे घर-घर
घूमती हैं और गुड़, चावल, या थोड़ी मात्रा में नकदी इकट्ठा करती हैं। दर्शक,
विशेष रूप से बच्चे उनके प्रदर्शन से बहुत प्रसन्न होते हैं। औषधीय गुणों वाली
घास कुम्मत्ती पुल्लू का उपयोग वेशभूषा बनाने के लिए किया जाता है पहले,
सुपारी के पत्तों से मुखौटे बनाए जाते थे और बाद में उन्हें लकड़ी, धातु और
फाइबर से बदल दिया गया।
नृत्य की वेशभूषा कुम्मत्तिकली का सबसे दिलचस्प तथ्य है। नर्तक कृष्ण, नारद,
किरथ, दरिका या शिकारियों के चेहरों को चित्रण करके एक भारी रंग का रंगीन
लकड़ी का मुखौटा पहनते हैं। ये मास्क आमतौर पर सैप्रोफाइट (saprophyte),
जैक फ्रूट ट्री (jack fruit tree), एलस्टोनिया स्कॉलरिस (Alstonia Scolaris),
हॉग प्लम ट्री (hog plum tree) या कोरल ट्री (coral tree) से बनाए जाते हैं।
नर्तक घास से बनी हुई स्कर्ट पहनते हैं। कुछ अधिक झाड़ीदार दिखने के लिए
अपने पूरे शरीर को घास के गुच्छों से ढक लेते हैं। बिना दांत के खुले मुंह का
आभास देते हुए मास्क को अधिक आनंदमय बना दिया जाता है। नर्तक
'कुम्मत्तिकली' नामक एक फसल की लंबी छड़ियों को भी पकड़ते हैं और उनमें
हेरफेर करते हैं: इसी से इस नृत्य का नाम मिलता है।
उनका नृत्य शैव मिथ्या से संबंधित है। 'थम्मा' (एक बूढ़ी औरत) एक छड़ी के
सहारे आगे चलती है। थम्मा हर प्राणी और हर चीज की मां का प्रतीक है।
कुम्मट्टिकली के विषय ज्यादातर रामायण की कहानियों, दारिका व धाम, शिव
की कहानी और मंजन नायरे पट्टू जैसी लोक कथाओं से लिए गए हैं। यह
ध्यान देने योग्य है कि केरल की लोक कला को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत
किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3RlhNzI
https://bit.ly/3Q5KQq5
https://bit.ly/3wKrsrN
चित्र संदर्भ
1. ऐतिहासिक कुम्मत्तिकली नृत्य, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कथकली प्रदर्शन ओणम परंपरा का एक हिस्सा हैं, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ओणम के त्योहार के दौरान, कुम्मत्तिकली के कलाकार घर-घर जाकर छोटे-छोटे उपहार इकट्ठा करते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं। जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पारंपरिक वेशभूषा में ओनापोटन उत्तरी केरल में एक रिवाज, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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