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1857 के विद्रोह के वक़्त अंग्रेज़ों के टेलीग्राफ़ विभाग की असल परीक्षा हुई, जब विद्रोहियों ने अंग्रेज़ों को जगह-
जगह शिकस्त देनी शुरू कर दी थी। अंग्रेज़ों के लिए टेलीग्राफ (Telegraph) एकमात्र सहारा था जिसके ज़रिए
वो सेना की मौजूदगी, विद्रोह की ख़बरें और अपनी रणनीति मीलों दूर बैठे अपने कमांडरों तक पहुंचा सकते
थे। औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश प्रशासक और सिविल सेवक सर रॉबर्ट मोंटगोमरी (Sir Robert
Montgomery) ने 1857 के विद्रोह के बाद कहा था कि "इलेक्ट्रिक टेलीग्राफ ने भारत को बचा लिया है।" यह
टिप्पणी पुरानी दिल्ली में 20 फुट के ओबिलिस्क (obelisk) पर अंकित है, जो उस घटना का एक ग्रे ग्रेनाइट
(Gray Granite) से बना स्मारक है। यह टेलीग्राफ मेमोरियल, 19 अप्रैल, 1902 को बनाया गया था, जोकि
उन दिल्ली टेलीग्राफ कार्यालय के कर्मचारियों को समर्पित है जिन्होंने विद्रोह की ख़बरें टेलीग्राफ से भेजते हुए
जान गंवाई थी।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि टेलीग्राफ की वजह से बग़ावत दबाने में अंग्रेज़ों को काफ़ी मदद मिली। उस
समय अंग्रेजों के पास बंदूक़ों के अलावा सबसे बड़ा हथियार था- टेलीग्राफ, जो मिनटों में कई मील की दूरी तय
करता था। इस वजह से अंग्रेज़ों का टेलीग्राफ 1857 के विद्रोह के बाग़ियों की हिट लिस्ट में था। नतीजन
बाग़ियों ने मेरठ समेत कई जगहों पर टेलीग्राफ की लाइनें ध्वस्त कर दीं।
उस समय दिल्ली में टेलीग्राफ
कार्यालय के मुख्य चार्ल्स टॉड (Charles Todd) थे, जहां उनकी सहायता के लिए दो यूरेशियन सिग्नलर्स
(Eurasian signalers) तथा दो सहायक, विलियम ब्रेंडिश (William Brendish) और जे.डब्ल्यू पिलकिंगटन (J
W Pilkington) थे। गर्मी के मौसम में रविवार को टेलीग्राफ कार्यालय नौ से चार बजे के बीच बंद रहा। उसके
बाद वे सभी कार्यालय आये, तीनों ही सुबह से काम पर थे और नौ बजे कार्यालय बंद कर आराम करने के लिए
अपने बंगले लौटने वाले ही थे की तभी ब्रेंडिश ने देखा की टेलीग्राफ की सुई हिलने लगी है और मेरठ का एक
अनौपचारिक संदेश आया है जिसमे बताया गया की कई सैनिकों को नए कारतूसों का उपयोग करने से इनकार
करने के लिए अस्सी पुरुषों को कैद किया गया है जिनमे से पचहत्तर पुरुषों को पांच से दस साल तक की सजा
दी गई है और अन्य को मौत की, हालांकि, इस बात का कोई संकेत नहीं था कि विद्रोह होने वाला है। इस बीच,
सिग्नलर्स दिल्ली में होने वाली सभी घटनाओं को अंबाला कार्यालय को अपडेट प्रदान कर रहे थे।
जब टॉड ने अपना कार्यालय फिर से खोला, तो उन्होंने पाया कि मेरठ की लाइन काट दी गई थी। उन्होंने
ब्रेंडिश और पिलकिंगटन को पुल के पार भेजा ताकि जमुना नदी में प्रवेश करने वाली लाइनों की जांच कर
सके। चूंकि अंधेरा हो रहा था, टॉड ने उन्हें वापस आने के लिए कहा। इस बीच, मेरठ में, शाम को विद्रोह भड़क
उठा, लेकिन इसकी सूचना दिल्ली को नहीं दी जा सकी क्योंकि लाइन काम नहीं कर रही थी।
हालाँकि, आधी
रात को मेरठ के पोस्टमास्टर ने आगरा में अपनी मौसी को एक निजी टेलीग्राफ भेजने में कामयाबी हासिल
की; उसमे कहा गया की कई घुड़सवारों ने घरों में आग लगा दी है, जिसमें सभी यूरोपीय मारे गए या घायल हो
गए। यह टेलीग्राफ आगरा के लेफ्टिनेंट-गवर्नर सर जॉन कोल्विन को दिखाया गया था, जिन्होंने तुरंत कलकत्ता
के गवर्नर-जनरल लॉर्ड कैनिंग को जानकारी दी। 11 मई, 1857 की सुबह, टेलीग्राफ मास्टर, चार्ल्स टॉड, जो
विद्रोहियों द्वारा काटी गई लाइनों की जांच करने के लिए दिल्ली से निकले थे, उनकी हत्या कर दी गई थी।
हालाँकि, उनके दो सहायक, विलियम ब्रेंडिश और जे.डब्ल्यू पिलकिंगटन, दोपहर 2 बजे तक कार्यालय में ही
बैठ कर मेरठ से संदेश मिलने का इंतजार कर रहे थे लेकिन उन्हें सेना से कोई संदेश नहीं मिला। अगली सुबह
जब टॉड कई घंटों तक नहीं लौटे, तो उसके सहायकों को कुछ बुरा अंदेशा होने लगा। टेलीग्राफ कार्यालय से जुड़े
दूतों द्वारा प्राप्त सूचना से पुष्टि हुई कि टॉड की हत्या कर दी गई, और विद्रोहियों ने नावों के सहारे पुल को पार
करके दिल्ली में प्रवेश कर लिया है, यह सूचना दिल्ली से अंबाला भेज दी गई। यह दिल्ली का आखिरी संदेश
था। कुछ ही घंटों में यह संदेश पंजाब की हर बड़ी ब्रिटिश छावनी और चौकी तक पहुंच गया। उस समय
शिमला तक टेलीग्राफ की सुविधा नहीं थी इसलिए सरहिंद डिवीजन के कमांडर मेजर जनरल सर हेनरी
बर्नार्ड (Henry Bernard) ने अपने बेटे कैप्टन बर्नार्ड को घोड़े पर सवार होकर अंबाला से शिमला तक ये संदेश
पहुंचाने की जिम्मेदारी दी।
दिल्ली से भेजे गए टेलीग्राफ संदेश के प्रभाव को उस काल के अधिकांश ब्रिटिश खातों में उजागर किया गया है।
1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास में एक प्रमुख मोड़ था, जिसमे टेलीग्राफ ने प्रमुख भूमिका
निभाई। सबसे पहले लॉर्ड डलहौजी (Lord Dalhousie ) ने 1850 में इंपीरियल टेलीग्राफ विभाग (Imperial
Telegraph Department) के लिए मार्ग प्रशस्त किया था। 1854 में भारत में अंग्रेजों ने कलकत्ता और आगरा
के बीच 800 मील की टेलीग्राफ लाइन बिछाई थी और बाद में बॉम्बे और मद्रास को भी से जुड़ा गया।
यह
प्रणाली सर विलियम ओ'शॉघनेसी (Sir William O’Shaughnessy) नामक एक दूरदर्शी आविष्कारक के
दिमाग की उपज थी, और इसने भारत पर इंग्लैंड के नियंत्रण को बनाये रखने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई। 1857 के भारतीय विद्रोह के बाद भारत में त्वरित टेलीग्राफ (swift telegraph) संचार प्रणाली का
विस्तार सरकार के लिए महत्वपूर्ण कार्य बन गया। पहले टेलीग्राफ केवल भारत के तट तक ही सिमित था वहाँ
से जहाज द्वारा संदेश भेजा जाता था। सहायता का अनुरोध करने वाले सन्देश को लंदन (London) पहुंचने में
भी चालीस दिन लग जाते थे।
परन्तु विद्रोह के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत में 4,555 मील लम्बे तार
बिछा कर 1859 तक उपमहाद्वीप को लंदन से जोड़ने की योजना बनाई। ब्रिटिश सरकार का मानना था कि
टेलीग्राफ से अधिक से अधिक केंद्रीय नियंत्रण के साधन प्रदान हो सकते है। इसी प्रकार आगे चल कर टेलीग्राफ
उद्योग में विकास हुआ और माल्टा (Malta) 1868 में अलेक्जेंड्रिया (Alexandria ) से जोड़ा गया, 1869 में
फ्रांस (France) से न्यूफ़ाउंडलैंड (Newfoundland), 1870 तक भारत को हांगकांग, चीन और जापान और
बाहरी दुनिया से जोड़ा गया।
संदर्भ:
https://bit.ly/3CqX7lM
https://bit.ly/3Cwi3aR
https://bit.ly/3R6mFZq
चित्र संदर्भ
1. 1857 के ग़दर एवं टेलीग्राफ विभाग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1857 के भारतीय विद्रोह को दर्शाता एक चित्रण (Store norske leksikon)
3. चार अलग-अलग आविष्कारकों की टेलीग्राफ मशीनों को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
4. केंद्रीय टेलीग्राफ कार्यालय को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
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