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स्कूल में हम सभी ने लाल, हरी और पीली लाइट के बारे में पढ़ा है, लेकिन हमें
ये नहीं बताया की इसकी शुरुआत कहां से हुई, शायद इसकी शुरुआत के बारे में
कम ही लोगों को जानकारी होगी। यह जानना दिलचस्प होगा कि इसकी
शुरूआत कब हुई। दरअसल पहली इलैक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट 1914 में पांच
अगस्त के ही दिन अमेरिका (USA) के ओहियो (Ohio) के क्लीवलैंड
(Cleveland) में यूक्लिड एवेन्यू (Euclid Avenue) में लगाई गई थी, आज 5
अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक लाइट दिवस (International Traffic Light
Day) के रूप में जाना जाता है।
मेरठ जैसे शहरों में यातायात की समस्या काफी गंभीर है। सड़कें वाहनों से भरी
हुई हैं, जिसका अर्थ है कि शहर की अधिकांश सड़कें पैदल चलने वालों के
अनुकूल नहीं हैं। सड़कें ज्यादातर वाहनों से भरी रहती हैं जो एक-दूसरे से आगे
निकलने की होड़ में लगे रहते हैं। यहां आम शहरी चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल
की रेड लाइट देख कर भी ब्रेक लगाने की ज़हमत नहीं उठता। ऐसे में वो कट
मारकर चौराहे से निकलने की कोशिश में रहते हैं। यह स्थिति तब और गंभीर
हो जाती है जब छोटे दोपहिया वाहनों के साथ-साथ बड़े वाहन भी ट्रैफिक लाइट
का पालन नहीं करते हैं। वर्तमान में हालात ऐसे बन चुके है कि यहां ट्रैफिक
लाइट के पोल केवल शोपीस बन कर खड़े हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी की
मेरठ के ज्यादातर चौराहों पर ट्रैफिक लाइट खराब पड़ी हुई है। शहर के सबसे
व्यस्त चौराहे (बेगमपुल चौराहा) पर ट्रैफिक सिग्नल खराब पड़े हैं। लोगो की
माने तो ये सिग्नल ज्यादातर खराब ही रहते हैं जिससे ट्रैफिक की आवाजाही
प्रभावित होती है। कमिश्नर आवास चौराहे, तेजगढ़ी चौराहे, जीरो माइल चौराहे
और ईव्ज चौराहे का भी यही हाल है, यहाँ पर भी ट्रैफिक सिग्नल शोपीस बने
खड़े हैं। एक-दो ट्रैफिक लाइट काम करती है किंतु वे सिर्फ देखने के लिए है
क्योंकि उनका पालन कोई नहीं
करता है। सिर्फ इतना ही नहीं , ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए चौराहों पर
तैनात पुलिसकर्मी अप्रशिक्षित हैं। रेलवे रोड, बेगमपुल, घंटाघर समेत शहर के
कई चौराहों पर तैनात पुलिसकर्मी स्वयं ट्रैफिक लाइट्स को फॉलो नहीं कर रहे
हैं। शहर में एक बड़ी समस्या यह भी है कि कई लोग चौराहों पर आगे निकलने
की होड़ में फुटपॉथ तक को घेरकर खड़े हो जाते हैं। जिससे ट्रैफिक संचालक में
खासी परेशानी होती है तो वहीं आए दिन कई हादसे भी हो रहे हैं। शहर केज्यादातर चौराहों पर ट्रैफिक लाइट्स तो हैं किंतु वाहन चालक उनका पालननहीं करते हैं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहर में यातायात अधिक अनुकूल और पैदल
चलने वालों के लिए उपयुक्त हो, मेरठ नगर निगम (एमएमसी) जल्द ही शहर
में एक एकीकृत यातायात प्रबंधन प्रणाली (आईटीएमएस (Integrated Traffic
Management System (ITMS) शुरू करने के लिए तैयार है।
स्मार्ट सिटी
परियोजना (Smart City project) के तहत राज्य सरकार द्वारा 9.51 करोड़
रुपये की पहली किस्त जारी करने के साथ ही जल्द ही इस परियोजना का काम
शुरू हो जाएगा, इस परियोजना में करीब 38.05 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
इस चरण के बाद, मेरठ नगर निगम यातायात पुलिस विभाग के साथ कार्य
करेगी और शहर के नौ प्रमुख चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाएगी। ये
सीसीटीवी कैमरे यातायात उल्लंघनकर्ताओं की छवियों को कैप्चर कर के इसे
कमांड सेंटर तक पहुंचा देते है ताकि ई-चालान जारी किया जा सके। ये कैमरे
सिग्नल तोड़ना, बिना हेलमेट के सवारी करना, दो पहिया वाहनों में ट्रिपल
सवारी आदि जैसे उल्लंघनों को आसानी से कैप्चर कर देते है। कहा जा रहा है
की आने वाले समय में इस व्यवस्था से यातायात का सुचारू प्रबंधन सुनिश्चित
होगा, सड़क दुर्घटनाओं में गिरावट आएगी, लोगों में यातायात के नियमों के
प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
गाजियाबाद नगर निगम ने भी शहर में यातायात प्रवाह को नियंत्रित करने के
लिए राज्य स्मार्ट सिटी मिशन के तहत एकीकृत यातायात प्रबंधन प्रणाली
(आईटीएमएस) को लागू करने का निर्णय लिया है, जिसकी अनुमानित लागत
₹48 करोड़ है, और राज्य सरकार से मंजूरी मिलते ही इस परियोजना पर काम
फिर से शुरू होगा। इस परियोजना के तहत शहर भर में 58 प्रमुख यातायात
चौराहों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है जहां यातायात के सुचारू
प्रवाह को सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है। वर्तमान में मेरठ और
गाजियाबाद में एकीकृत यातायात प्रबंधन प्रणाली यातायात पुलिस कार्यान्वयन
में एक प्रमुख विशेषता बन गई है, परन्तु इसमें पेलिकन क्रॉसिंग सिस्टम
(Pelican Crossing system) कार्यान्वयन की कमी है। हालांकि ट्रैफिक कंट्रोल
सिस्टम, ट्रैफिक इंफोर्समेंट सिस्टम, रेड-लाइट उल्लंघन डिटेक्शन सिस्टम, नो-
हेलमेट डिटेक्शन सिस्टम और ट्रिपल राइडिंग डिटेक्शन सिस्टम जैसी विभिन्न
प्रणालियां मेरठ और गाजियाबाद खंड दोनों में स्थापित की गई हैं।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि मेरठ में बेगम ब्रिज क्रॉसिंग और
अन्य किसी क्रॉसिंग पर कार और बाइक के जाम के बिना कुशलतापूर्वक सड़क
पार कर जाए तो कैसे रहेगा?
ऐसा पेलिकन क्रॉसिंग सिस्टम से संभव है, ट्रैफिक
सिग्नलों पर पैदल चलने वालों के क्रॉस करने के लिए प्रत्येक पेलिकन क्रॉसिंग
में सामान्य ट्रैफिक लाइट के साथ एक पोल होता है, यदि पैदल यात्री आने वाले
वाहन को रोकना चाहते हैं, तो वे बटन दबा सकते हैं और सिग्नल लाल हो
जाता है। फिर वे, सड़क पार कर सकते हैं और दूसरी तरफ जाकर अंत में बटन
को एक बार फिर से दबा कर सिग्नल को हरा करके वाहनों के यातायात को
फिर से शुरू कर सकते हैं। पेलिकन लाइट जलने पर पैदल सड़क क्रॉस करने
वाले जेब्रा क्रॉसिंग के माध्यम से सड़क क्रॉस कर सकते हैं। पेलिकन क्रॉसिंग
कई देशों में सर्वव्यापी हैं, पेलिकन क्रॉसिंग नाम पेलिकॉन (PELICON) से
लिया गया है, जिसका अर्थ एक बंदरगाह से सम्बंधित है जो पैदल यात्री के
लिए प्रकाश नियंत्रित करता है। पेलिकन क्रॉसिंग शब्द की उत्पत्ति यूनाइटेड
किंगडम (United Kingdom), क्राउन डिपेंडेंसी (Crown Dependencies )
और ब्रिटिश ओवरसीज टेरिटरीज (British Overseas Territories) में हुई थी,
लेकिन आज
इसी तरह के ट्रैफिक कंट्रोल डिवाइस दुनिया भर में उपयोग की जा रही हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3bqfqMV
https://bit.ly/3zTLsKC
https://bit.ly/3SopnLi
https://bit.ly/3SrZQAK
चित्र संदर्भ
1. मेरठ के घंटाघर प्रांगण को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. मेरठ के एक बाजार को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. रात में काम करते पुलिस कर्मी को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
4. खराब यातायात प्रबंधन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मेरठ की एक व्यस्ततम सड़क को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
6. पेलिकन क्रॉसिंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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