कैसे पड़ोसी देशों की गिरती अर्थव्यवस्था प्रभावित कर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था को?

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08-07-2022 08:09 AM
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कैसे पड़ोसी देशों की गिरती अर्थव्यवस्था प्रभावित कर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था को?

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस (Moody’s Investors Service)द्वारा 2022 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के अनुमान को मार्च में पहले 9.1 प्रतिशत बताया था, लेकिन कच्चे तेल, खाद्य और उर्वरक की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए, वित्त वर्ष 2022 के लिए भारत के विकास के अनुमान को 9.1 प्रतिशत से घटाकर 8.8 प्रतिशत कर दिया है,हालांकि कीमतों में वृद्धि का असर आने वाले महीनों में घरेलू वित्तऔर खर्च पर पड़ने की संभावना बनी हुई है।मूडीज को उम्मीद है कि 2022 तक मुद्रास्फीति औसतन 6.8% रहेगी, लेकिन जब तक वैश्विक कच्चे तेल और खाद्य कीमतों में और वृद्धि नहीं होती है, तब तक भारतीय अर्थव्यवस्था ठोस विकास गति को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मजबूत है।
वहीं 2022-23 के लिए अपने ग्लोबल मैक्रो आउटलुक (Global Macro Outlook) के अद्यतनीकरण में, मूडीज ने वैश्विक विकास अनुमानों को कम किया और मुद्रास्फीति के पूर्वानुमानों को बढ़ाया, और कई नकारात्मक कारकों पर धीमी विकास गति को जिम्मेदार ठहराया। दरसल इनमें आ रहे आपूर्ति झटके मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं और उपभोक्ता क्रय शक्ति को कम कर रहे हैं, और वित्तीय बाजार में अस्थिरता, परिसंपत्ति पुनर्मूल्यांकन और सख्त क्रेडिट (Credit) शर्तों के साथ वैश्विक स्तर पर अधिक तेज मौद्रिक नीति की ओर एक बदलाव शामिल है।G-20 देशों के लिए विकास की उम्मीदें इस वर्ष के 3.6 फीसदी से घटकर 3.1 फीसदी रह गई हैं, जो पिछले वर्ष दर्ज की गई 5.9 फीसदी की वृद्धि का लगभग आधा है। साथ ही महामारी के बाद की आर्थिक सुधार चुनौतियों को एक जटिल समूह का सामना करना पड़ रहा है। कई प्रतिकूल प्रवृत्‍ति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक साथ प्रभावित किया है, जिस कारण विकास काफी धीमा हो सकता है।वैश्विक अर्थव्यवस्था दो कारकों, मांग और आपूर्ति से संचालित होती है। मांग को अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं द्वारा मांग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की संख्या के रूप में परिभाषित किया गया है। आपूर्ति उन वस्तुओं और सेवाओं की संख्या है जो उत्पादकों जैसे किसानों द्वारा उपभोक्ताओं को खरीदने के लिए जारी की जाती हैं। अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए मांग और आपूर्ति को एक दूसरे के अनुरूप होना चाहिए।यदि आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक तेजी से बढ़ती है, तो खरीदे जाने के लिए कम उत्पाद उपलब्ध होते हैं। अब उत्पाद खरीदने के लिए, अधिक लोग अधिक राशि का भुगतान करने के लिए तैयार होते हैं। इससे कीमतों के सामान्य स्तर (मुद्रास्फीति) में वृद्धि होती है।दूसरी ओर, यदि आपूर्ति मांग से अधिक बढ़ जाती है, तो अधिक से अधिक विक्रेता उत्पादों को सस्ती दर पर बेचने के लिए तैयार होते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में सामान्य मूल्य स्तरों में गिरावट आती है।एक अन्य प्रकार की मुद्रास्फीति लागत जन्य मुद्रास्फीति है।
यह तब होता है जब कच्चे माल की कीमत कई कारकों के कारण बढ़ती है और इस प्रकार उत्पादन की कुल लागत बढ़ जाती है। अपने मुनाफे को बरकरार रखने के लिए, निर्माता उन्हें अधिक कीमत पर बेचते हैं और इसे अंतिम उपभोक्ता उच्च कीमतों परप्राप्त करते हैं। हालांकि अब भारत मुद्रास्फीति में लागत जन्य मुद्रास्फीति और मांग जन्य मुद्रास्फीति दोनों प्रकार का सामना कर रहा है।कोविड -19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ रही है। आवाजाही पर प्रतिबंध के कारण सुस्त मांग में सुधार होना शुरू हो गया है। हालांकि, कंपनियों को माल की आपूर्ति बढ़ाने में समय लगता है। इससे महंगाई बढ़ी है और हमारी जेब पर दबाव बढ़ा है।आपूर्ति पक्ष पर, विभिन्न कारक इसके लिए जिम्मेदार हैं। कोविड -19 महामारी के प्रकोप के बाद से आपूर्ति श्रृंखला संघर्ष कर रही है। विशेष रूप से अर्धचालकों की भारी कमी हो गई है जिसके कारण मोबाइल फोन (Mobile phones), लैपटॉप (Laptop) और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स (Electronic gadget) की कीमतों में वृद्धि हुई है।
साथ ही रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) युद्ध से स्थिति और खराब हो गई है। रूस और यूक्रेन महत्वपूर्ण वस्तुओं के प्रमुख निर्यातक हैं। इसमें तेल, गेहूं, दुर्लभ धातुएं और उर्वरक शामिल हैं। प्रकोप के बाद से तेल की कीमतें आसमान छू गई हैं। और यह विशेष रूप से परेशानी भरा है क्योंकि तेल के बिना कोई परिवहन का चलना संभव नहीं है। इसलिए, यदि तेल बढ़ता है, तो हर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है।रूस और यूक्रेन, जो दुनिया के शीर्ष 4 गेहूं निर्यातकों में से हैं, ने भी अनाज का निर्यात बंद कर दिया है। जिस कारण कंपनियों ने आटा और अन्य संबंधित उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी की है।इसी तरह, दुनिया भर में उर्वरक और दुर्लभ धातुओं जैसी अन्य वस्तुओं की कमी हो गई है। महंगाई के आंकड़े इस बात के गवाह हैं। इससे निवेशकों में हड़कंप मच गया है और शेयर बाजार भी इस पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
इन संकटों का आर्थिक प्रभाव जल्द ही देश में प्रकट होने की उम्मीद है, अगर इन देशों की सरकारें संकटों को जल्दी से दूर करने में विफल रहती हैं।आंतरिक दबावों के अलावा, क्षेत्रीय आर्थिक और राजनीतिक विकास का भारतीय अर्थव्यवस्था पर तत्काल प्रभाव पड़ सकता है।श्रीलंका (Sri Lanka), नेपाल (Nepal) और मालदीव (Maldives) में आर्थिक उथल-पुथल और पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल भारत को कई गुना प्रभावित कर सकती है। इसलिए नई दिल्ली में 12 अप्रैल को आयोजित पहली अंतर-मंत्रालयी समन्वय समूह की बैठक में भारत के पड़ोसियों को उनकी अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं में प्राथमिकता देने पर जोर दिया गया।श्रीलंका में आर्थिक उथल-पुथल को वर्तमान में विदेश मंत्रालय द्वारा राजनयिक और व्यापार प्रभावों के साथ सबसे अधिक अत्यावश्यक विदेशी चुनौती के रूप में देखा जाता है।पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने या अपने निर्यात को फैलाने में विफल रही है, हालांकि यह एक उच्च-मध्यम आय वाले देश में परिवर्तित हो गई है।अधिकांश भाग के लिए, श्रीलंकाई विकास अंतरराष्ट्रीय संप्रभु ऋणपत्र और महंगे अल्पकालिक बाहरी उधार के माध्यम से कायम रहा। इन निधि को वित्तीय तरलता बनाए रखने और बेहतर व्यापक आर्थिक नीति को बढ़ावा देने के अलावा शिक्षा, बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य सेवा में लगाया गया था।
हालांकि, अप्रैल 2021 तक श्रीलंका का विदेशी कर्ज 35 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। मार्च में, मुद्रास्फीति बढ़कर 17.5 प्रतिशत हो गई, जो 2015 के बाद से सबसे अधिक है, और विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 1.9 बिलियन डॉलर हो गई, जो केवल एक महीने के आयात के लिए पर्याप्त है।इसका कर्ज और सकल घरेलू अनुपात 120 फीसदी है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि 12 अप्रैल को सरकार ने अपने सभी बकाया विदेशी बकाए पर चूक कर दी। देश को इस साल 4 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है।जिस कारण यहाँ गहरी राजनीतिक और आर्थिक तबाही को देखा गया है, क्योंकि उनके पास ईंधन के आयात के लिए भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं। वहीं नेपाल भी दशकों में अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और देश में सरकार विरोधी प्रदर्शन भी बढ़ रहा है।नेपाल में, विदेशी श्रमिकों द्वारा प्रेषण, जो कि अर्थव्यवस्था का लगभग एक चौथाई हिस्सा है, बाहरी भुगतान के लिए महत्वपूर्ण हैं, वे जुलाई के मध्य से मार्च के मध्य तक एक साल पहले इसी अवधि में 5 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 3 प्रतिशत गिरकर 5.3 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया।
पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल ने भारत के विदेश मंत्रालय में हलचल मचा दी है, फिर भी कई लोगों का मानना है कि यह एक सकारात्मक विकास साबित हो सकता है।
हालांकि हर देश की स्थिति अलग-अलग लग सकती है, फिर भी निकट भविष्य में उनका भारत पर संचयी असर हो सकता है।हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था समग्र रूप से बाहरी ताकतों के प्रति लचीला है, फिर भी ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ भारतीय राज्यों को सतर्क रहने की आवश्यकता है। इनमें से कुछ राज्यों को अपनी लोकलुभावन नीतियों के कारण संकट का सामना करना पड़ सकता है। एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने लोकलुभावन नीतियों के कारण पंजाब, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे गैर-भाजपा शासित अधिकांश राज्य अपनी अर्थव्यवस्थाओं को खराब कर सकते हैं।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3uSJ9EP
https://bit.ly/3ORC4fr
https://bit.ly/3nL8dtg

चित्र संदर्भ

1. एक श्रीलंकन नागरिक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गिरते-चढ़ते बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. यूक्रेन युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. श्रीलंका के आर्थिक संकट 2022 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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