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मेरठ शहर को पुराने समय से ही इसकी प्रगतिशील विचारधारा और विनिर्माण क्षेत्र में अभूतपूर्व
तरक्की के दम पर, पूरे देश में एक विशिष्ट पहचान हासिल है! लेकिन दुर्भाग्य से हमारे शानदार
मेरठ शहर की कई शानदार धरोहरों को अतिक्रमणकरियों की बुरी नज़र लग चुकी है, और मुगल
सल्तनत के नवाबों के लिए मशहूर यहां की जमीन पर ऐतिहासिक महत्व की इमारतेंअतिक्रमणकारियों से जूझ रही हैं। जिनमें से एक मेरठ में अबू का मकबरा भी है।
अबू का मकबरा मेरठ के नवाब अबू मोहम्मद खान और औरंगजेब के दरबार में एक "वजीर" का
मकबरा है। 1688 में निर्मित, अबू का मकबरा मेरठ के नवाब अबू मोहम्मद खान का 334 साल
पुराना लाल बलुआ पत्थर का मकबरा है। अबू मोहम्मद खान एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक
व्यक्ति थे। अबू मोहम्मद खान कंबोह ने 1658 में मेरठ में काली नदी से ताजे पानी की आपूर्ति के
लिए एक नहर शुरू की थी, जिसे आज अबू नाला के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अबु लेन नाम
का एक बाजार भी बनाया जो आज मेरठ के सबसे बड़े बाजारों में से एक है। मेरठ और उसके
इतिहास में उनके महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अबू लेन और अबू का
नाला जैसे कुछ सबसे प्रमुख शहर के स्थल उनके नाम पर रखे गये है। उनका मकबरा 1688 में
बनाया गया था और यह उनका अंतिम विश्राम स्थल है, हालांकि, दुर्भाग्य से आज यह मकबरा एक
दयनीय स्थिति में है। उनके समय में मेरठ, अवध से शाही राजधानी तक की यात्रा का केंद्र बिंदु बन
गया था। मकबरे के अन्य चार गढ़ मकबरे से दूर थे, लेकिन अवैध निर्माण के कारण उनका
अस्तित्व बहुत पहले ही समाप्त हो गया है।
मकबरे में मैदान हुआ करता था, जो आज तबेला बन गया है। मकबरे में कई अन्य कब्रें भी हैं,
जिनमें से एक नवाब अबू की, दूसरी उनके पिता की और तीसरी किसी अन्य सदस्य की है।
334 साल पुरानी लाल बलुआ पत्थर की यह शानदार संरचना आज भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
द्वारा संरक्षित स्मारक नहीं है, इसलिए 100 मीटर के भीतर निर्माण पर रोक लगाने वाला कानून,
इस शानदार इमारत पर लागू नहीं होता है।
यहां पर अतिक्रमण इतना बढ़ गया है कि अब मकबरे के ऊपर ही टिन की झोपड़ियां बना दी गई हैं।
यहां के आम लोगों ने इस ऐतिहासिक स्मारक के आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है, और
बहुमंजिला घर बना दिए हैं। कच्चे घरों के अलावा यह मकबरा स्थानीय बकरियों के लिए खुले में
शौच का मैदान भी बन गया है। यहां एक स्थानीय बुजुर्ग, असलम अहमद का कहना है की “हमने
सुना है कि जब मकबरा बनाया गया था, तब यह 400-450 बीघा में फैला हुआ था। अब, मकबरे के
पास मात्र 2 बीघा जमीन ही बची है। यहां तक कि वह जगह भी धीरे-धीरे कम होती जा रही है।"
एक अन्य स्थानीय शाहरुख के अनुसार "यहां की दीवारों पर खतरनाक दरारें बन गई हैं और यह
किसी भी दिन गिर सकती हैं। इसके कॉलम लंबे समय तक टिके नहीं रहेंगे। रात को इसकी सुध
लेने वाला कोई नहीं होता, और यह बेघरों का ठिकाना बन जाता है। लोग कब्रों के ऊपर भी सोते हैं।”
एक अन्य जागरूक स्थानीय व्यक्ति मोहम्मद तौसीफ के अनुसार, अतिक्रमण स्मारक को खा रहा
है। "बहाली तो दूर यहां सफाई करने के लिए भी कोई नहीं आता। पूरे मेरठ शहर में, भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई (ASI) ने केवल शाहपीर मकबरे को संरक्षित स्मारक घोषित किया है।
इसके अलावा इस सूची में न तो औघड़नाथ मंदिर, है जो 1857 के सिपाही विद्रोह का केंद्र बिंदु था,
और न ही सेंट जॉन चर्च (St. John's Church), जो विद्रोह के दौरान एक और महत्वपूर्ण स्थान था।
मुगल इतिहास के प्रख्यात इतिहासकार और अधिकारी इरफान हबीब के अनुसार, "मेरठ
ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण शहर है और इसके इतिहास को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि इसके संरक्षण और ऐतहासिक महत्ता को ध्यान में रखते हुए, मेरठ विकास प्राधिकरण ने
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को 334 साल पुरानी लाल बलुआ पत्थर की संरचना को एएसआई-
संरक्षित साइट के रूप में सूचीबद्ध करने की सिफारिश करने की बात भी कही थी। इस संदर्भ में
तत्कालीन एमडीए के अधीक्षण अभियंता शबीह हैदर का कहना था की, यह स्मारक कई सदियों
पुरानी है और हम इसे इसके पूर्व गौरव को बहाल करने की कोशिश में गलती से स्मारक को
नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं। हम एएसआई से इसकी बहाली प्रक्रिया में हमारा मार्गदर्शन करने
के लिए कहेंगे। हम स्मारक को नष्ट किए बिना संरचना का नवीनीकरण करना चाहते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3Njo6RZ
https://bit.ly/3OHwPi8
https://bit.ly/3xVecjH
https://bit.ly/3blcjFn
चित्र संदर्भ
1. अबू के मकबरे, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मेरठ के 300 साल पुराने शानदार अबू के मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
3. अबू के मकबरे के पुराने दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
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