समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
Post Viewership from Post Date to 09- Jul-2022 (30th Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2609 | 39 | 2648 |
अपनी सुगंध से मुग्ध होकर, उसके मूल की खोज में घूमते हुए, इस बात से अनजान कि यह तत्व
उसके स्वयं के भीतर ही मौजूद है, कस्तूरी मृग की यह कहानी हमें आत्मनिरीक्षण करने, अपनी
क्षमता का एहसास करने और हमारे उद्देश्य को समझने के कई पाठ सिखाती है।कस्तूरी की महक
का वर्णन करने के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया गया है। कुछ के लिए, यह एक बहुत ही
'पशुवादी' या 'जंगली' महक है। दूसरे इसे लकड़ी जैसी या मिट्टी वाली मानते हैं। वर्षों से, सुगंध
बनाने वाले इस महंगे पदार्थ का उपयोग महलों, किलों, मस्जिदों और चर्चों के विशाल कक्ष को
सुगंधित करने के लिए करते थे।
इसका उल्लेख प्राचीन चीनी (Chinese) ग्रंथों में जड़ी-बूटी संबंधी औषधि और फारसी (Persian)
कविता में किया गया है। उस समय कस्तूरी महक लगाना प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता था, क्योंकि
केवल वास्तव में अमीर ही दुर्लभ टिंचर (Tincture) युक्त सुगंध खरीद सकते थे।एक समय में चीन
और भारत में एक दवा के रूप में लगभग विशेष रूप से उपयोग किए जाने वाले कस्तूरी,यूरोप में
पुनर्जागरण के दौरान इटली (Italy) और फ्रांस (France) में इत्र के रूप में लोकप्रिय बन गई, जहां
इसे मर्दानगी से जोड़ा गया था। इतने छोटे जानवर से आने के बावजूद (कस्तूरी मृग के नर औसतन
केवल 24 इंच लंबे होते हैं), कस्तूरी मृग का इत्र उद्योग पर बड़ा और स्थायी प्रभाव पड़ा है।
कस्तूरी मृग से एकत्रित प्राकृतिक कस्तूरी का मूल्य एक ग्राम सोने के वजन जितना महंगा होता है।
धन के साथ इसका जुड़ाव छठी शताब्दी का है, जहां चीन और भारत के व्यापारियों ने बायजानतीं
(Byzantine) के साथ कस्तूरी की फली का व्यापार शुरू किया था।प्राचीन काल के अंत तक, कस्तूरी
पश्चिमी सभ्यता के लिए अज्ञात थी, जहां निश्चित रूप से सुगंध-प्रेमी रोमनों द्वारा इसकी सराहना
की जाती। कस्तूरी और अन्य सुगंध प्रारंभिक मध्य युग के दौरान न पसंद किये जाने लगे, इन्हें
अनावश्यक अपव्यय के रूप में देखा जाने लगा।
मध्य पूर्व में इसका उपयोग इत्र और धूप में किया जाता रहा, जहाँ इसने लगभग रहस्यमय गुणों को
ग्रहण किया। सुगंधित और मनभावन सुगंध लंबे समय से देवत्व से जुड़े हुए थे, और एक समय में
कस्तूरी के कच्चे पाउडर को मस्जिदों के निर्माण समग्री में मिश्रित किया जाता था ताकि इमारतों को
इसकी सुखद सुगंध मिल सके।साफ-सफाई और सुखद गंध का होना भी उच्च सामाजिक स्थिति का
प्रतीक था। इसके उत्पादन और व्यापार से जुड़ी उच्च कीमत के कारण कस्तूरी को सुगंध का 'राजा'
माना जाता था।
प्राकृतिक कस्तूरी, कस्तूरी मृग की सात प्रजातियों में से किसी की ग्रंथि से आती है।ग्रंथि से उत्कृष्ट
फैशन तक का सफर लंबा है।ग्रंथि को पहले फंसे हुए हिरण से काटा जाता है।एक बार एकत्र होने के
बाद, ग्रंथियों को सुखाया जाता है, काटा जाता है और मद्यसार के मिश्रण में संग्रहित किया जाता
है।वहाँ कटी हुई ग्रंथियाँ महीनों, यहाँ तक कि वर्षों तक रहती हैं, क्योंकि कस्तूरी सुगंध और परिपक्व
होती है।कस्तूरी महक के साथ मद्यसार, फिर इत्र और कोलोन (Colognes) के आधार के रूप में
उपयोग किया जाता है।हालांकि जैसे-जैसे लोग पशु कल्याण के बारे में अधिक चिंतित होते गए, इत्र
में पशु-व्युत्पन्न कस्तूरी का उपयोग करना क्रूरता मानी जाने लगी।हाल के दशकों में, सुगंध उद्योग
में हिरण कस्तूरी का उपयोग बंद हो गया है।इसके स्थान पर, कृत्रिम कस्तूरी(बाजार पर 99% से
अधिक इत्र में अनुमानित) का अत्यधिक व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।लेकिन कृत्रिम कस्तूरी
भी व्यापक रूप से मनुष्यों और पर्यावरण के लिए एक काफी नुकसानदायक मानी गई है। अधिकांश
पेट्रो-रासायनिक (Petro-chemical)व्युत्पन्न (उर्फ प्लास्टिक) की तरह यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र
या निकायों में नहीं टूटती है।
वहीं कस्तूरी के सुगंध का एक अन्य स्रोत प्राकृतिक कस्तूरी यौगिक,जिसे हिबिस्कस (Hibiscus) फूल
के अंदर एम्बरेट (Amberette) बीज से प्राप्त किया जाता है। इस पौधे से व्युत्पन्न कस्तूरी यौगिक
सुगंध के मामले और पर्यावरण और व्यक्तिगत प्रभाव दोनों में कृत्रिम कस्तूरी से बेहतर है। लेकिन
इसकी उच्च लागत की वजह से इसका बहुत ही कम कंपनियों द्वारा उपयोग किया जाता है।
कस्तूरी के औषधीय व प्रसाधन महत्व के कारण बड़े पैमाने पर इन मृगों का अवैध शिकार हुआ है,
जिसके परिणामस्वरूप ये विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं।अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक
संसाधन संरक्षण संघ के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक किलोग्राम कस्तूरी से 45,000
अमेरिकी डॉलर मिल सकते हैं। एक कस्तूरी की फली से लगभग 25 ग्राम भूरे रंग का मोमी पदार्थ
निकलता है।यह मांग पारिस्थितिकी के लिए एक बड़ी कीमत पर आती है। अंधाधुंध अवैध शिकार का
मतलब है कि मादा और युवा सहित तीन से पांच कस्तूरी मृग,हर नर के कस्तूरी की फली के लिए
मारे जाते हैं। जिस वजह से जानवर विलुप्त होने के कगार पर आ चुके हैं।
केदारनाथ अभयारण्य में दो-तीन दशक पहले 600-1,000 कस्तूरी मृगों का निवास था, लेकिन अब
वहाँ 100 से कम कस्तूरी मृग बचे हैं।अब तक, जानवर को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की लाल
सूची विवरण में एक लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और वन्यजीव संरक्षण
अधिनियम, 1972 की लुप्तप्राय और दुर्लभ प्रजाति के तहत अनुसूची 1में रखा गया है।हालांकि कई
अथक प्रयासों के बावजूद, कोष की कमी के कारण और सरकार से उचित मदद न मिलने की वजह
से कस्तूरी मृग के संरक्षण में वन्य विभाग विफल हो रहे हैं।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3NW4CUo
https://bit.ly/3tjXhG7
https://bit.ly/3mgnSjx
चित्र संदर्भ
1. कस्तूरी मृग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कस्तूरी मृग की एक छवि, को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. शिकार करके पकड़े गए मृग को दर्शाता एक चित्रण (PIXNIOa)
4. हिमालयन कस्तूरी मृग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.