एस्ट्रो फोटोग्राफी जब कई आम इंसानों ने भी ब्रह्माण्ड की शानदार तस्वीरें खींची

द्रिश्य 1 लेंस/तस्वीर उतारना
05-05-2022 07:21 AM
एस्ट्रो फोटोग्राफी जब कई आम इंसानों ने भी ब्रह्माण्ड की शानदार तस्वीरें खींची

इंसान हमेशा से ही अपने अस्तित्व की खोज के प्रति जिज्ञासु रहा है और इसे खोजने के लिए उसने हमेशा से ब्रह्मांड की ओर ही देखा है! पिछले कई वर्षों के दौरान ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जब कई आम इंसानों ने भी ब्रह्माण्ड की शानदार तस्वीरें खींचकर ऐसी खोजे की हैं, जिन्हें बड़े से बड़े वैज्ञानिक भी नहीं कर पाए और यह शायद ब्रह्मांड के प्रति हमारी जिज्ञासा ही है। जिसके कारण आम लोगों में भी खगोलीय फोटोग्राफी अर्थात एस्ट्रोफोटोग्राफी (astrophotography) के प्रति रूचि निरंतर बढ़ रही है।
खगोलीय पिंडों के अध्ययन करने हेतू फोटोग्राफी का विशेष स्थान रहा है। इसके महत्वपूर्ण होने का सबसे बड़ा कारण यह है कि, फोटोग्राफ द्वारा लिए गए खगोलीय पिंडों के चित्र स्थायी होते हैं और उन्हें सूक्ष्म अध्ययन के हेतु सुरक्षित रखा जा सकता है। कुछ जानकार मानते हैं की फोटोग्राफी की कला के अभाव में, आधुनिक ज्योतिर्विज्ञान (modern astrology) का विकास इतनी दूर तक कभी संभव न होता। लुई डागेयर (Louis Daguerre) द्वारा सन् 1839 में फोटोग्राफी का आविष्कार होने के उपरांत 23 मार्च 1840 को न्यूयॉर्क के जॉन विलियम ड्रेपर (john W. Draper) ने 20 मिनट का उद्भासन देकर चंद्रमा का फोटो लिया था, जो किसी भी खगोलीय पिंड का प्रथम फोटो चित्र था। इसके लगभग साढ़े नौ वर्ष बाद, 18 दिसम्बर 1849 को, बोस्टन के कुछ उत्साही फोटोग्राफरों ने एक नई विधि का अनुसरण कर चंद्रमा का एक अत्यंत उत्कृष्ट फोटो लिया। इस प्रयास ने खगोलीय फोटोग्राफी के प्रति ज्योतिर्विदों को आकर्षित किया। नक्षत्रों का फोटोचित्र लेने की दिशा में हार्वर्ड विद्यालय का अग्रणी स्थान रहा है। सन 1870 में कैप्टेन ऐब्नी (Capt W. de W. Abney) ने एक विशेष प्रकार के फोटोग्राफिक पायस (emulsion) का आविष्कार किया, जो लाल रंग के प्रकाश के लिये अत्यंत सुग्राही (sensitive) था। उस पायस से युक्त पट्टिका पर उन्होंने वर्णक्रम (spectrum) के अवरक्त (infrared) क्षेत्र में सूर्य का एक स्पष्ट चित्र प्राप्त किया। ऐब्नी का आविष्कार खगोलीय फोटोग्राफी के क्षेत्र में सचमुच एक क्रांति मानी जाती है। इसी के द्वारा सन 1870-74 में डॉ॰ गाउल्ड (Dr. Gould) ने दक्षिणी गोलार्ध के अनेक प्रमुख युग्म (binaries) तारों के चित्र लिए गए। इसके बाद विलियम हिगिंज़ (William Higgins) ने आधुनिक श्लेष पट्टिका (gelatine plates) का आविष्कार किया, जिसने खगोलीय फोटोग्राफी की पद्धति को भी सामान्य फोटोग्राफी की ही भाँति सुगम एवं आडंबरहीन (pompless) बना दिया। फिर तो असंख्य छोटे बड़े नक्षत्रों, धूमकेतुओं एवं उल्काओं के चित्र लेना तुलनात्मक रूप से आसान हो गया। आज, एस्ट्रोफोटोग्राफी ज्यादातर खगोल विज्ञान में एक शौकिया उप-अनुशासन बन चुकी है , जहां आमतौर पर वैज्ञानिक डेटा के बजाय सौंदर्यपूर्ण रूप से मनभावन छवियों को वरीयता दी जाती है। एस्ट्रो फोटोग्राफी के शौकिया लोग विशेष उपकरण और तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग करते हैं। एस्ट्रो फोटोग्राफी, फोटोग्राफरों और शौकिया खगोलविदों के बीच एक लोकप्रिय शौक है। इस शौक को पूरा करने के लिए आवश्यक तकनीक, बुनियादी फिल्म और तिपाई पर डिजिटल कैमरों से लेकर उन्नत इमेजिंग (advanced imaging) के लिए तैयार किए गए तरीकों और उपकरणों तक होती है।
शौकिया खगोलविद और शौकिया दूरबीन निर्माता भी घरेलू उपकरणों और संशोधित उपकरणों का उपयोग करते हैं। इस दौरान छवियां, कई प्रकार के मीडिया और इमेजिंग उपकरणों पर रिकॉर्ड की जाती हैं, जिनमें सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (single-lens reflex camera) , 35 मिमी फिल्म , डिजिटल सिंगल-लेंस रिफ्लेक्स कैमरा (digital single-lens reflex camera) ,और व्यावसायिक स्तर पर व्यावसायिक रूप से निर्मित खगोलीय सीसीडी कैमरा, वीडियो कैमरा शामिल हैं।
पारंपरिक ओवर-द-काउंटर फिल्म (over-the-counter film) लंबे समय से एस्ट्रोफोटोग्राफी के लिए उपयोग की जाती रही है। हजारों किलोमीटर दूर के सितारों, आकाशगंगाओं और नीहारिकाओं की शानदार छवियां प्राप्त करने के लिए डीप-स्काई एस्ट्रोफोटोग्राफर (deep-sky astrophotographer), सतीश पोन्नाला पांच साल से डीप-स्काई फोटोग्राफी (एस्ट्रोफोटोग्राफी का एक डिवीजन) कर रहे हैं। उनके अनुसार "इसके लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है," क्योंकि वह हमें एंड्रोमेडा और नेबुला (Andromeda and Nebula) जैसी दूर की आकाशगंगाओं की छवियां दिखाते हैं। आमतौर पर लोग एस्ट्रोफोटोग्राफी के शुरुआती एक नियमित डीएसएलआर (DSLR) का उपयोग करते हैं, और फिर अधिक परिष्कृत उपकरणों में स्थानांतरित हो जाते हैं। सतीश के पास एक छोटा Alt-azimuth माउंट के साथ-साथ बड़ा EQ या इक्वेटोरियल माउंट (जो 25kg वजन ले सकता है) विशेष फिल्टर (जिसकी कीमत $ 600 प्रत्येक तक होती है) और 600 से 1000mm के टेलीस्कोपिक लेंस भी है। उनका एस्ट्रो कैमरा एक कूलिंग कंपोनेंट (cooling component) के साथ आता है, जो डिवाइस को गर्म होने से रोकता है।
हालांकि उनके घर की छत से एस्ट्रोफोटोग्राफी की संभावना सीमित है। इसलिए अधिक चुनौतीपूर्ण डीप- स्काई फोटोग्राफी, जिसमें गहरे अंधेरे की आवश्यकता होती है, के लिए सतीश और कुछ समान विचारधारा वाले दोस्त , विकाराबाद, पोचारम, श्रीशैलम और मारेदुमिली के वन भंडार के आसपास के क्षेत्र में जाते हैं। बाहरी इलाके उल्का वर्षा, नक्षत्रों और स्टार डस्ट रिंग्स (star dust rings) को कैप्चर करने के लिए आदर्श माने जाते हैं। वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय डार्क स्काई वीक कार्यक्रम का उद्देश्य, प्रकाश प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रात के आकाश का जश्न मनाना है।
खगोलविदों और ब्रह्मांड के प्रति उत्साही लोगों द्वारा 22-30 अप्रैल 2022 तक, एक पूरे हफ्ते को अंतर्राष्ट्रीय डार्क स्काई वीक (International Dark Sky Week) के रूप में चिह्नित किया गया है। इस दौरान दुनिया भर में सैकड़ों कार्यक्रम आयोजित किए गए, जहां प्रतिभागी खगोल फोटोग्राफी सीखने, रात के आसमान की सैर करने और प्रकाश प्रदूषण के बिना रात के आकाश का निरीक्षण करने और तथा यह जानने के लिए एक साथ आए कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
दरसल इंटरनेशनल डार्क स्काई वीक, इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन (International Dark-Sky Association (IDA) द्वारा आयोजित एक वार्षिक कार्यक्रम होता है। इस कार्यक्रम को मनाने की परंपरा 2003 में शुरू हुई, जिसका उद्देश्य रात के आकाश और पृथ्वी पर अंधेरे में पनपने वाले ब्रह्मांड जो हमारे ग्रह से परे मौजूद पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। आईडीए का मानना है की रात में बाहरी कृत्रिम प्रकाश वन्यजीवों को बाधित कर सकता है, मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है, धन और ऊर्जा की बर्बादी कर सकता है और जलवायु परिवर्तन में योगदान कर सकता है। संगठन ने कहा कि प्रकाश प्रदूषण जनसंख्या वृद्धि की दर से भी दोगुनी दर से बढ़ रहा है, और दुनिया की 83% आबादी प्रकाश प्रदूषित आकाश के नीचे रह रही है। इंटरनेशनल डार्क स्काई वीक के एक भाग के रूप में , भारत की प्रमुख खगोल पर्यटन कंपनियां, स्टारस्केप्स (starscapes), खगोल विज्ञान से संबंधित कई गतिविधियों जैसे कि ग्रह परेड, एस्ट्रो फोटोग्राफी सत्र और मेसियर मैराथन (Messier Marathon) की मेजबानी करती हैं।
इस वर्ष यह कार्यक्रम 22 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच कौसानी, भीमताल में स्टारस्केप की वेधशालाओं और मदिकेरी, विराजपेट, पुडुचेरी, गोवा और मुन्नार में उनकी मोबाइल वेधशालाओं में आयोजित किया गया। दुनिया भर के खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही लोग इस सप्ताह को कुछ गतिविधियों जैसे स्टारगेजिंग सत्र, प्रकाश प्रदूषण को कम करने के लिए लाइट बंद करना और स्त्री फोटोग्राफी कार्यशालाओं (Woman Photography Workshops) के साथ मनाते हैं। स्टारस्केप्स ने हाल ही में उत्तराखंड पर्यटन बोर्ड के साथ मिलकर बेनीताल को भारत के पहले एस्ट्रो विलेज (Astro Village) के रूप में विकसित किया है। भारत में कई स्थानों पर प्रकाश प्रदूषण का स्तर कम है, और वे रात के आकाश का एक अबाधित दृश्य प्रदान करते हैं, जिससे वे डार्क स्काई पार्क के लिए आदर्श बन जाते हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/37XgFS1
https://bit.ly/3s6GLc3
https://bit.ly/3OYWsMg
https://bit.ly/3y9Bi88

चित्र संदर्भ
1  एस्ट्रोफोटोग्राफी (astrophotography) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एस्ट्रो दूरबीन कैमरे को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. डार्क स्काई प्रोजेक्ट जोसेफ पी द्वारा लिए गए फोटो को दर्शाता एक चित्रण flickr)
4. ग्रांड कैन्यन नेशनल पार्क- 2019 इंटरनेशनल डार्क स्काई पार्क प्लाक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. एस्ट्रोफोटोग्राफी सेटअप को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.