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मेरठ के पल्लवपुरम मोहल्ले में शुक्रवार की सुबह एक घर में तेंदुआ देखा गया, जिससे लोगों
में दहशत फैल गई। तेंदुए को शांत करने के लिए वन विभाग की टीमों ने घंटों मशक्कत
की, जिसे करीब आठ घंटे बाद शुक्रवार शाम को पकड़ लिया गया। यह तीसरा मौका है जब
तेंदुआ शहर के किसी इलाके में घुसा है। इससे पहले 2018 में सदर की एक लकड़ी की
दुकान में एक तेंदुआ देखा गया था और वह कैंट अस्पताल में घुस गया था। इसी तरह कुछ
साल पहले सदर इलाके के एक घर में एक और तेंदुआ देखा गया था।शहरी क्षेत्रों में तेंदुए का
आगमन आम हो गया है।ऐसा नहीं है, कि शहरी क्षेत्रों में केवल तेंदुए ही प्रवेश कर रहे हैं,इनके अलावा अनेकों जानवर जैसे चीता, भालू, हाथी आदि का प्रवेश भी शहरी क्षेत्रों में दिन
प्रतिदिन आम होता जा रहा है। तो आइए इस लेख के जरिए यह जानते हैं, कि आखिर क्यों
विभिन्न जानवर अपने मूल स्थान को छोड़कर शहरों में प्रवेश कर रहे हैं।
जानवरों द्वारा इस तरह से शहर में प्रवेश करने के अनेकों कारण हैं, जिनमें ग्लोबल वार्मिंग
(Global warming) या पर्यावरणीय विनाश मुख्य कारक हैं। ये कारक जानवरों के भोजन,
आवास आदि को प्रभावित करते हैं, जो उन्हें शहरों की ओर ले जाता है।तेजी से हो रहा
शहरीकरण और शिकार की कमी तेंदुओं को शहरों और मनुष्यों की ओर धकेल रही है।पिछले
कुछ वर्षों तेंदुओं के भ्रमण की खबरें लगातार आती रही हैं।शहरी क्षेत्रों में इनका विस्तार जारी
है, क्यों कि शहरी क्षेत्रों के विस्तार के लिए जंगलों जो तेंदुए का निवास स्थान है,पर अधिक
से अधिक अतिक्रमण किया जाता है।
जंगलों के अतिक्रमण के कारण अफ्रीका (Africa) में
उनकी अनुमानित सीमा का 66 प्रतिशत और यूरेशिया (Eurasia) में उनकी अनुमानित सीमा
का 85 प्रतिशत हिस्सा पिछले पांच दशकों में नष्ट हो गया है।दुनिया भर के कई क्षेत्रों में, इन
बड़ी बिल्लियों के लिए जीवित रहने के लिए मनुष्यों के साथ रहने का प्रयास करना ही
एकमात्र विकल्प बचा है। अतिक्रमण के कारण विशेष रूप से उनके आवास, व्यवहार और
भोजन की आदतों में परिवर्तन हुआ है।एक शीर्ष शिकारी के रूप में, तेंदुआ एक महत्वपूर्ण
पारिस्थितिकी गुणवत्ता नियंत्रण चिह्नक है जो हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रण में रखता
है,हालाँकि, वर्तमान में, इसके अस्तित्व की स्थिति सवालों के घेरे में है।अधिकांश अन्य बड़ी
बिल्लियों के विपरीत, वे स्वभाव से बहुत अनुकूल हैं, इसलिए वे गहरे जंगलों में और मानव
बस्तियों के पास आसानी से पनप सकते हैं।
तेंदुए के अलावा अन्य जानवरों की बात करें तो 2,000 से अधिक कोयोट (Coyotes) आज
शिकागो (Chicago) महानगरीय क्षेत्र में आराम से रह रहे हैं, जिनमें कुछ में उल्लेखनीय
अनुकूलन देखे गए हैं।उपनगरीय कोयोट्स, ने ग्रामीण इलाकों की तुलना में बहुत छोटे क्षेत्रों
में रहना सीख लिया है। ये जानवर अपना और अपने बच्चों का पोषण करने के लिए छोटे
कृन्तकों का शिकार करके शहर में पनप रहे हैं।उन्हें एक मानव की तरह ही व्यस्त यातायात
वाली सड़कों को पार करते देखा गया है,जहां पर्याप्त रोशनी मौजूद है। जो शिकागो में जो हो
रहा है वह दुनिया भर में हो रहा है।
शहरी क्षेत्रों को अब इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि बड़े मांसाहारी जीव भी अब
शहरों में मौजूद होंगे। एक बार लंदन (London) में, बिल्डिंग स्टाफ ने एक लोमड़ी को अधूरी
गगनचुंबी इमारत की 72वीं मंजिल पर पाया जहां वह इमारत के निर्माण कार्य में लगे
श्रमिकों के त्यागे हुए खाद्य पदार्थों का सेवन कर रही थी। नया क्षेत्र जानवरों के व्यवहार को
भी बदल रहा है, जैसे ताहो (Tahoe) झील में कुछ भालू, पूरे साल भर कचरा खाकर जीवित
हैं, तथा वे अब सर्दियों में निष्क्रिय अवस्था में रहने से परहेज करते हैं,जैसा वे पहले किया
करते थे।यह मान लेना उचित है कि ये जानवर शहर में जा रहे हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन
और आवास विनाश उनके आवास और भोजन उपलब्धता को प्रभावित कर रहा है। एक
कारण यह भी है कि अब पहले की तुलना में कई अधिक बड़े मांसाहारी धरती पर मौजूद हैं।
ऐसा इसलिए है, कि क्यों कि उन्हें लुप्त होने से बचाने के लिए सफल संरक्षण प्रयास किए
गए हैं।इसके अलावा जैसे-जैसे हम अपने शहरों को हरा-भरा बना रहे हैं, वे मनुष्यों के साथ-
साथ जानवरों के लिए समान रूप से आकर्षक हो रहे हैं! शहरों में जानवरों के प्रवेश का एक
अन्य कारण यह भी है कि मनुष्यों और बड़े शिकारियों के बीच संबंध बदल रहे हैं। अब हम
कुछ मांसाहारियों की पीढ़ियों को देख रहे हैं, जिनका लोगों द्वारा उत्पीड़न काफी हल्का हो
गया है।वे 50 साल पहले अपने पूर्वजों की तुलना में शहरों को काफी अलग तरीके से देख रहे
हैं। पहले यदि कोई इंसान उन्हें देखता तो यह सम्भावना होती कि उन्हें गोली मार दी
जाएगी, लेकिन अब ऐसा बहुत ही कम हो गया है।जबकि शहरों में प्रवेश करने वाले जानवर
ज्यादातर समय लोगों से दूरी बनाए रखते हैं, लेकिन जब ये जानवर और इंसान एक जगह
साझा करते हैं तो संघर्ष अपरिहार्य होता है।कभी-कभी संघर्ष हमलावर शिकारियों और हमारे
अपने पालतू जानवरों के बीच भी होता है, जिसमें दोनों को नुकसान होने की संभावना है।
भोजन की आसान उपलब्धता किसी भी प्रजाति के मुद्दों को नियंत्रित करने में मदद कर
सकता है।नेवादा (Nevada) में, उदाहरण के लिए, भालू-प्रूफ (Bear-proofing) कचरा डिब्बे और
डंपस्टर (Dumpsters) ने 2008 से शिकायतों को दो तिहाई कम करने में मदद की है।शहरों में
मांसाहारी जीवों के प्रवेश को रोकने के लिए मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच उस पुराने और
अधिक प्राकृतिक संबंध को जीवित करना होगा, जिसमें जानवर वास्तव में मानव से डरते
हैं।जब एक बड़ा शिकारी इंसानों के प्रति अपने सहज भय को खो देता है, तो आखिरकार, उस
जानवर द्वारा मानव पर हमला करने की संभावना अधिक हो जाती है। इसके अलावा
शहरीकरण के कारण जंगलों को होने वाले नुकसान तथा जलवायु परिवर्तन के कारकों को
नियंत्रित करके जानवरों को बिना नुकसान पहुंचाए उनके शहरों में आगमन को रोका जा
सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/362RRXr
https://bit.ly/3vO8TTL
https://bit.ly/3Kpg8FL
चित्र संदर्भ
1. हाथ में चीते को पकडे हुए चीनी नागरिकों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. शहर की गलियों में चीते के शावक को दर्शाता चित्रण (flickr)
3. घर के आँगन में खड़ी लोमड़ी को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. सड़क में खड़ी लोमड़ी को दर्शाता चित्रण (Pasadena Humane)
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