क्यों गुरु रविदास आज के धर्मनिरपेक्ष समन्वय का एक बड़ा हिस्सा नहीं हैं?

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
16-02-2022 08:15 AM
Post Viewership from Post Date to 18- Mar-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3929 241 4170
क्यों गुरु रविदास आज के धर्मनिरपेक्ष समन्वय का एक बड़ा हिस्सा नहीं हैं?

भारत ने चौदहवीं, पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में एक परिवर्तन काल को देखा, जिसे आज हम भारत के भक्ति विकास के रूप में जानते हैं। पुराने काल में, उपनिषदों के काल में और छठी शताब्दी ईसा पूर्व में बौद्ध और जैन धर्म के उदय के साथ एक नवीनीकरण विकास को देखा गया।यह विकास उस काल की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति के विरुद्ध एक जवाब था।भक्ति के विकास को सामान्य परंपराओं की प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है। यदि देखा जाएं तो वैदिक युग से आज तक चली आ रही भारतीय जाती प्रथा व्यवस्था ने मानव जाति के भीतर भेद भाव की भावना को काफी घनिष्ट रूप से बनाए रखा है। छोटे बड़े के नाम पर विभिन्न तरह के सिद्धांतों को लागू किया गया और उनका पालन करना शुरू किया, हालांकि इन सिद्धांतों के कारण सवर्ण और अवर्ण लोगों के बीच की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक दूरियाँ इतनी अधिक हो गई कि उसे कम कर पाना अत्यंत ही कठिन हो गया। जिसको देखते हुए भक्तिकालीन के कवियों ने इस अमानवीय व्यवस्था के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाई।
राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक दृष्टि से निस्तेज मध्ययुग को स्वर्ण युग बनाने का श्रेय निःसन्देह भक्तिकालीन संत कवियों और मुख्य रूप से उनकी लोक चेतना को जाता है। जिनमें गुरु रविदास जी और संत कबीर दास जी शामिल हैं। संत कबीर जी (1440 - 1518 ईस्वी) रामानंद जी के अनुयायी एक हिंदू राजमाता के घर में पैदा हुए और एक मुस्लिम बुनकर द्वारा उनका पालन-पोषण किया गया था। कबीर जी के निर्देश आंतरिक आध्यात्मिकता और बाहरी कर्मकांड और हिंदू और मुस्लिम के बीच एकजुटता की दिशा में समन्वित थे।उन्होंने एक भगवान की भक्ति करने पर जोर दिया और सबको एक समान बताया, उनका मानना था कि हिन्दू और इस्लाम एक ही हैं और इनके द्वारा पूजा किए जाने वाले भगवान भी एक ही हैं। संत कबीर ने राम, रहीम, कृष्ण, करीम, मक्का और काशी के लिए ईश्वर की विविध अभिव्यक्ति को एक समग्र शक्ति के रूप में माना। वे 'ईश्वर' को एक ही शक्ति मानते थे।उन्होंने ईश्वर की एकता और स्नेह, भक्ति के माध्यम से उनमें एकरूप होने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भक्ति के बिना कोई धर्म नहीं हो सकता। संत कबीर द्वारा विभिन्न गीतों को लिखा गया, जो कुल मिलाकर खास ग्रंथ के रूप में संचित हैं। उन्होंने विश्वास किया कि ईश्वर अपरिभाषित हैं और यदि उन्हें कोई नाम देने की आवश्यकता है, तो उन्हें राम कहा जा सकता है। वहीं रामानंद के एक अन्य भक्त गुरु रविदास जी चमड़े के विशेषज्ञ थे। उन्होंने एक और संगठन की स्थापना की, जिसमें उन्होंने परमात्मा की भक्ति करने पर ध्यान केंद्रित किया और बताया कि उनके नाम की भक्ति करने से आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति की जा सकती है। उन्होंने व्याख्यान दिया कि परमात्मा भक्तों के मूल में रहते हैं और कोई भी अनुष्ठान और कार्यों के माध्यम से उनसे मिलन नहीं किया जा सकता है।वे निर्गुण परंपरा से ताल्लुक रखते थे और उन्होंने "बेगमपुरा (एक ऐसी दुनिया जिसमें दुख और असमानता नहीं है)" का समर्थन किया। अपने सौम्य लेकिन गहन समतावादी दर्शन के कारण वे अपने समय में अत्यधिक लोकप्रिय थे।पंजाब के दोआब (जो औपनिवेशिक काल में चमड़ा और बूट उद्योग का केंद्र था) में गुरु रविदास जी का एक बड़ा संकेंद्रण है। यहाँ चमड़े पर आधारित इस काम से जीविकोपार्जन करने वाले बड़ी संख्या में लोग यूरोप (Europe), कनाडा (Canada) और अमेरिका (America) के कई हिस्सों में चले गए। लेकिन फिर भी वे संत रविदास जी को मानते हैं और उनके डेरे को सुचारु रखने के लिए बड़ी मात्रा में योगदान करते हैं।रविदास जी के भक्त वर्तमान समय में देश विदेश तक फैले हुए हैं और अपने डेरे के विकास के लिए हमेशा योगदान करते हैं। लेकिन भक्तों के बीच एक सवाल यह उठता है कि गुरु रविदास अन्य गुरुओं के भांति ही प्रबुद्ध थे, लेकिन फिर भी वे लोगों के समक्ष इतने लोकप्रिय क्यों नहीं हैं? क्या इसके पीछे का कारण यह हो सकता है कि लोग अभी भी अस्पृश्यता का पालन करते हैं?गुरु रविदास के कई शिष्य राजकुमारियाँ थीं,जिनमें राजपूत राजकुमारी मीराबाई भी शामिल थीं। उस समय उनके भक्त सभी रंग, रूपों तथा अमीर और गरीब थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हम संत कबीर जी के बारे में गुरु रविदास जी से अधिक जानते हैं? इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि भारत परंपरागत रूप से एक जाति-उन्मुख समाज रहा है, यह एक असमान समाज है और शायद इसीलिए संत रविदास जी को इतनी लोकप्रियता हासिल नहीं हुई है।
राजस्थान और उत्तर प्रदेश में18वीं और 19वीं शताब्दी की पाई गई कई पांडुलिपियोंमें संत कबीर जी और संत रविदास जी के बीच निरपेक्ष की प्रकृति पर एक ब्रह्मविद्या से संबंधित बहस पाई गई है, विशेष रूप से कि क्या ब्रह्माण अद्वैतवादी एकता हैं या एक अलग मानवरूपी अवतार हैं। जहां संत कबीर जी पूर्व का समर्थन करते हैं। वहीं इसके विपरीत, गुरुरविदास जी का मानना था कि दोनों एक ही हैं। हालांकि इन पांडुलिपियों से पता चलता है कि, शुरुआत में कबीर जी ने रविदास जी को आश्वस्त किया कि ब्रह्माण अद्वैतवादी हैं, लेकिन अंत तक उन्होंने एक दिव्य अवतार (सगुण संकल्पना)की पूजा करने का समर्थन नहीं किया। अपनी कविता में, रविदास जी ने जाति के अधिकार और विभिन्न प्रकार के सम्मानित कार्यों को संबोधित किया, और साथ ही सीधेपन और नैतिक गुणवत्ता के अस्तित्वको भी संबोधित किया। उन्होंने एक लोक लुभावन समाज की कल्पना की जहां कोई भेदभाव या दुरुपयोग न हो। वहीं संत कबीरदास जी, संत रविदास जी, गुरु नानक जी, दादूदयाल जी, मलूकदास जी, सुंदर दास जी भक्ति काल के अनिवार्य निर्गुण द्रष्टा कवि थे। उन्होंने भेदभाव, अन्याय और मानवता के दोहन के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने में काफी अहम भूमिका निभाई और उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से प्रेम, भक्ति, सहानुभूति और मानव जाति के संदेश को सभी तक फैलाने का प्रयास किया। जीवन के विभिन्न हिस्सों पर उनके संदेशों ने जाति, पंथ, धर्म, लिंग और राष्ट्र के सभी अवरोधों को कम कर दिया।

संदर्भ :-

https://bit.ly/3oOu83A
https://bit.ly/3sKGhYm
https://bit.ly/3sGfyMS GfyMS

चित्र संदर्भ   
1. गुरु रविदास भवन को दर्शाता एक चित्रण (Geograph)
2. संत कबीरदास को दर्शाता चित्रण (Victoria and Albert Museum, London)
3. रविदास स्टैम्प को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.