शहरों में पर्यावरण प्रदूषण आबादी के लिए कैंसर का खतरा पैदा कर सकता है

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
04-02-2022 02:20 PM
Post Viewership from Post Date to 04- Mar-2022
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
280 4 284
शहरों में पर्यावरण प्रदूषण आबादी के लिए कैंसर का खतरा पैदा कर सकता है
शहरों पर धुंध,प्रदूषित पेयजल,भोजन में मिला रसायन,खराब वायु गुणवत्ता आदि ऐसे कुछ पर्यावरणीय कारक हैं, जो कैंसर का कारण बन सकते हैं। पिछले एक सप्ताह में मेरठ के लिए औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 150 रहा, जिसे यहां की आबादी के लिए अस्वास्थ्यकर के रूप में वर्गीकृत किया गया है।हालांकि इस मामले में हमारे शहर का स्थान अब तक देखे गए सबसे खराब स्थिति वाले शहरों के आसपास कहीं भी नहीं है। यदि इन स्थितियों के साथ लंबे समय तक संपर्क में रहा जाता है, तो इसका वास्तव में फेफड़ों पर असर पड़ता है। कमजोर आबादी के लिए पर्यावरण प्रदूषण कैंसर का खतरा पैदा करता है। अधिक से अधिक औद्योगीकरण और शहरों में लोगों के प्रवास के साथ, बड़ी संख्या में भारतीय लोगों को कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। देश भर में कई जगहों और शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। इस प्रकार, देश में कैंसर की बढ़ती घटनाओं, बदलते कैंसर के चलन और पर्यावरण प्रदूषण की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

कोई भी पदार्थ जो कैंसर का कारण बनता है उसे कार्सिनोजेन (Carcinogen) कहा जाता है। यदि इसे लंबे समय तक शरीर में जमा होने दिया जाता है, तो आपकी कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने की अधिक संभावना होती है, जिसके परिणामस्वरूप कैंसर कोशिकाओं का विकास होता है।हमारी कोशिकाओं में इनमें से कुछ परिवर्तन आनुवंशिकी के कारण हो सकते हैं, जबकि अन्य पर्यावरणीय कारकों की वजह से होते हैं। पर्यावरणीय कारकों में जीवनशैली कारक (जैसे पोषण, तंबाकू का उपयोग, शारीरिक गतिविधि),प्राकृतिक कारक (जैसे पराबैंगनी प्रकाश, रेडॉन (Radon)गैस, संक्रामक एजेंट),चिकित्सा उपचार (विकिरण और दवा),कार्यस्थल और घरेलू जोखिम,प्रदूषण आदि शामिल हैं।जबकि पर्यावरण के सभी रसायन और पदार्थ हानिकारक नहीं होते हैं, इनमें से कुछ रसायनों के संपर्क में आने से हमारे डीएनए (DNA)को नुकसान हो सकता है और यह हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। इन रसायनों में एस्बिस्टोस (Asbestos), फॉर्मएल्डिहाइड (Formaldehyde),रेडोन,तंबाकू का धुआं, वुड डस्ट (Wood dust) आदि शामिल हैं।एक कार्सिनोजेन के संपर्क में आने का मतलब यह नहीं है कि आपको कैंसर हो जाएगा,कैंसर के विकास का जोखिम इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस चीज के संपर्क में थे और आप कितनी बार इसके संपर्क में आए थे।प्रदूषण के कारण डीएनए के मरम्मत कार्य में दोष पैदा होता है, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में परिवर्तन, या सूजन उत्पन्न होती है। यह एंजियोजेनेसिस (Angiogenesis) को बढ़ावा देता है, जिसमें ट्यूमर फैलाने वाली नई रक्त वाहिकाओं का विकास होता है।वायु प्रदूषण के कण कोशिकाओं में डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और फेफड़ों के कैंसर का कारण बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, छोटे कण फेफड़ों में जमा हो सकते हैं और कोशिकाओं की प्रतिकृति प्रक्रिया को बदल सकते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, 2019 में भारत में लगभग 1.7 मिलियन असामयिक मृत्यु, या सभी मौतों का 18% प्रदूषण के कारण हुआ।
लैंसेट (Lancet) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रदूषण के कारण फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक (Stroke), मधुमेह, नवजात संबंधी विकार और सांस की बीमारियों जैसे रोगों में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों और मौतें हुई हैं।डेटा से पता चलता है कि भारत में प्रदूषण से संबंधित मौतें बढ़ रही हैं, 2017 में यह 1.24 मिलियन थी, जो 2019 में बढ़कर 1.67 मिलियन हुई।भारत की राजधानी, दिल्ली, अक्सर सर्दियों के दौरान दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन जाता है, क्योंकि यह शहर घने धुंध और जहरीले वायु कणों से घिरा हुआ है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वस्थ स्तर से 500% अधिक है। हाल ही में विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, भारत के छह शहर दुनिया के शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। जैसा कि 2019 लैंसेट लेख में उल्लेख किया गया था, प्रदूषण अमीर और गरीब के बीच भारत के सबसे बड़े विभाजकों में से एक बन गया है। जबकि समृद्ध भारतीय निवासी अपनी कारों और घरों में एयर प्यूरीफायर (Air purifiers) के साथ प्रदूषण को दूर करने में सक्षम हैं, वहीं गरीब लोग, अक्सर बिना सील (Seal) वाले घरों में रहते हैं, तथा जहरीली हवा और इसके दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों का सामना करते हैं।भारत के कमजोर व्यक्तियों के लिए कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे को जल्द से जल्द संबोधित किया जाना चाहिए।हाल ही में, एक राष्ट्रीय कैंसर बोझ अध्ययन ने 1990 से 2016 तक भारत में बदलते कैंसर के बोझ पर प्रकाश डाला है।1990 से 2016 तक भारत के प्रत्येक राज्य में 28 प्रकार के कैंसर की घटनाएं हुईं। देश में धूम्रपान करने वाली आबादी में गिरावट के बावजूद, 2016 में पुरुषों और महिलाओं दोनों में फेफड़ों के कैंसर के कारण विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्ष का अनुपात 7.5 था।कोरोना महामारी ने देश के लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित किया है तथा कैंसर देखभाल वितरण प्रणाली स्वास्थ्य क्षेत्र में सबसे बुरी तरह प्रभावित प्रणालियों में से एक है, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों में। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश कैंसर रोगियों को आम तौर पर उचित कैंसर उपचार प्राप्त करने के लिए बड़े शहरों में जाने की आवश्यकता होती है। लेकिन संक्रमण के प्रसार को रोकने के प्रयासों ने कैंसर देखभाल वितरण सेवाओं को बुरी तरह बाधित किया है, जिसके कारण निदान या उपचार की शुरुआत और उपचार में रुकावट या पुनर्निर्धारण में देरी हुई, और बीमारी का विकास हुआ। इस महामारी ने अपर्याप्त कैंसर देखभाल बुनियादी ढांचे से जुड़े देखभाल वितरण में मौजूद असमानता के अंतराल को और भी अधिक बढ़ा दिया है।ऐसी स्थिति में कैंसर रोगियों को न केवल विलंबित कैंसर उपचार के खतरों का सामना करना पड़ेगा, बल्कि इससे संबंधित रुग्णता और मृत्यु दर का भी सामना करना पड़ेगा। कोरोना महामारी के प्रबंधन पर अन्य देशों के उपलब्ध डेटा और रणनीतियों को भारत में कोरोना महामारी के दौरान और उससे आगे कैंसर देखभाल प्रणाली में सुधार के लिए अपनाया जाना चाहिए।एक नए अध्ययन से पता चलता है कि प्रदूषण स्तन, यकृत और अग्नाशय के कैंसर सहित कई अन्य प्रकार के कैंसर के लिए मृत्यु दर के बढ़ते जोखिम से भी जुड़ा है।इसके अनुसार एम्बिएंट फाइन पार्टिकुलेट मैटर (Ambient fine particulate matter), परिवहन और बिजली उत्पादन से उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषकों के मिश्रण से मनुष्य का संपर्क दीर्घकालिक जोखिम को बढ़ाता है।
एम्बिएंट फाइन पार्टिकुलेट मैटर का वायुगतिकीय व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है और इसे PM2.5 के रूप में जाना जाता है।PM2.5 के बढ़े हुए जोखिम के प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg/m3) के लिएकिसी भी प्रकार के कैंसर से मरने का जोखिम 22 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इससे ऊपरी पाचन तंत्र के कैंसर,सहायक पाचन अंगों (जैसे - यकृत, पित्त नलिकाएं, पित्ताशय और अग्न्याशय) के कैंसर,स्तन कैंसर,फेफड़ों के कैंसर से मरने का जोखिम और भी अधिक हो जाता है।कैंसर होने से बचने का सबसे अच्छा तरीका है स्वस्थ जीवन शैली अपनाना और जितना हो सके हानिकारक पर्यावरणीय कारकों के संपर्क को कम करना है। प्रदूषण पर रोकथाम द्वारा कैंसर को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3ohwGHa
https://bit.ly/3IW206l
https://bit.ly/3ogUB9I
https://bit.ly/3L4NA5C
https://bit.ly/3APMGoZ
https://bit.ly/3IVjXC6

चित्र संदर्भ:

1.पर्यावरण प्रदूषण को दर्शाने वाला एक दृश्य(youtube)
2.एक कैंसर कोशिका(youtube)
पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.