मेरठ और उसके आसपास के क्षेत्रों में फसल नुकसान का कारण बन रही है, अत्यधिक बारिश

साग-सब्जियाँ
13-01-2022 06:55 AM
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मेरठ और उसके आसपास के क्षेत्रों में फसल नुकसान का कारण बन रही है, अत्यधिक बारिश

मेरठ और उसके आसपास पिछले एक सप्ताह से हो रही लगातार बारिश के कारण सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है और कई फसलें जलमग्न हो गई हैं।जब बहुत ज्यादा बारिश होती है, तब उत्पादकों, कृषिविदों और यहां तक कि मीडिया द्वारा यह सवाल पूछा जाता है, कि "भारीबारिश से फसल को कितना नुकसान हुआ है?"दुर्भाग्य से, अतिरिक्त बारिश के तुरंत बाद ऐसे सवालों के सही जवाब उपलब्ध नहीं होते हैं
।अत्यधिक बारिश के कारण क्षेत्र में गेहूं, आलू, सरसों और सब्जियों की फसलों को काफी अधिक नुकसान हुआ है। इसके अलावा आलू और अन्य फसलों में रोगों के बढ़ने की संभावना भी बढ़ गयी है।बारिश के कारण खेतों में पानी भरने से गन्ने की कटाई-छिलाई का काम प्रभावित हुआ है। साथ ही जो गन्ना पहले से ही काटा जा चुका है, उसे ट्राली- बुग्गी में भरने में धंसने की समस्या आती है। ऐसे में चीनी मिलों में गन्ने की आवक बेहद कम हो गई है। बारिश के कारण सब्जी की फसल पर संकट खड़ा हो गया है। बारिश के कारण किसानों की चिंता बढ़ गई है क्योंकि गन्ना कटाई और गेहूं की बुवाई थमी हुई है। गन्ना नहीं आने के कारण चीनी मिलें बंद हो गई है। 2021 के दौरान भारी बारिश के कारण 5 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक कृषि क्षेत्र प्रभावित हुआ था। 50.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र चक्रवाती तूफान,अचानक आयी बाढ़,भूस्खलन,बादल फटने और अन्य कारणों से प्रभावित था।1.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फसल के नुकसान के साथ कर्नाटक सबसे बुरी तरह प्रभावित था। इसके बाद राजस्थान(679,000 हेक्टेयर),पश्चिम बंगाल (690,000 हेक्टेयर), बिहार (580,000 हेक्टेयर), महाराष्ट्र (455,000 हेक्टेयर) का स्थान रहा।भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक, जहां फसल की क्षति अत्यधिक हुई, में अक्टूबर-नवंबर में 102 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। इस समय कर्नाटक में उगायी जा रही फसलों को बारिश के कारण बड़ा नुकसान पहुंचा है, जिससे सब्जियों और खाद्यान्नों की कीमतें बढ़ने का खतरा है और लोगों का जीवन और भी मुश्किल हो गया है।नवीनतम मौसम विज्ञान केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में अक्टूबर-नवंबर में 97 प्रतिशत अधिक संचयी मौसमी वर्षा हुई। यहां वर्षा की सामान्यमात्रा 164.9 मिलीमीटर है, जबकि इस समय वर्षा की मात्रा 324.1 मिलीमीटर आंकी गयी।अतिरिक्त नमी फसलों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है।अंकुरित बीजों और पौधों की जड़ों को श्वसन के लिए मिट्टी में ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।ऑक्सीजन के बिना, जीवित पौधे के ऊतक जड़ और प्ररोह विकास और पोषक तत्वों के अवशोषण जैसे महत्वपूर्ण जीवन निर्वाह कार्य नहीं कर सकते हैं।बाढ़ की स्थिति में, संतृप्त मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
जब मिट्टी में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम हो जाता है, तो पौधों में श्वसन प्रक्रिया किण्वन के समान बदल जाती है।जबकि किण्वन के दौरान कुछ जीवनदायी ऊर्जा का उत्पादन होता है, लेकिन ऊर्जा उत्पादन 95 प्रतिशत तक कम हो जाता है।ऑक्सीजन की कमी से पौधों की चयापचय प्रक्रिया में भारी कमी आ जाती है, जिससे उपज कम हो जाती है।यदि यह अवधि अत्यधिक होती है, तो पूरे पौधे की मृत्यु हो सकती है।फसल की क्षति सीमा कई कारकों पर निर्भर करती है। इन कारकों में पौधे की वृद्धि का चरण, संतृप्त मिट्टी की अवधि, जल और वायु का तापमान, मिट्टी की विशेषताएं आदि शामिल हैं।वे फसलें जिन्हें हाल ही में बोया गया है,लेकिन वे अभी तक उभरे नहीं हैं, उनमें अंकुरित बीज बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं,क्योंकि उन्हें श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अंकुरण के बाद उभरने में जितना अधिक समय लगता है, पौधे के खराब होने की संभावना उतनी ही अधिक होती है। क्योंकि बीज के आसपास ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम होती है, इसलिए संतृप्त मिट्टी की स्थिति भीअंकुरण को मंद कर सकती है या रोक सकती है। यदि बाढ़ या जल-जमाव की स्थिति लंबे समय तक होती है, तब पौधे में नुकसान की संभावना बढ़ जाती है।बाढ़ की अवधि महत्वपूर्ण है,क्योंकि यदि यह अवधि बहुत लंबी नहीं होती है, तो पौधों में ऑक्सीजन की कमी के कई प्रभावप्रतिवर्ती होते हैं।लंबी अवधि ऑक्सीजन की कमी और हानिकारक रसायनों के निर्माण में वृद्धि करती है।तापमान पौधों के श्वसन की गति को प्रभावित करता है। जितनी तेजी से श्वसन होता है, उतनी ही तेजी से ऑक्सीजन समाप्त होती है और किण्वन की प्रक्रिया उतनी जल्दी शुरू होती है।गर्म पानी श्वसन की गति को बढ़ाताहै जबकि ठंडा पानी श्वसन को धीमा करता है।साथ ही, यदि हवा का तापमान गर्म (कम से कम 20 डिग्री सेल्सियस या अधिक) है, तो एक युवा पौधे के जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है।इसी प्रकार ठंडा तापमान पौधे के अस्तित्व को लंबा खींचते हैं और बाढ़ से होने वाले नुकसान की मात्रा को कम करते हैं।मृदा जल निकासी गुण भी बाढ़ के प्रभाव को बढ़ा सकते हैं।आने वाले दिनों में यदि क्षेत्र- दर-क्षेत्र आकलन किया जाता है, तो इस बात का बेहतर अंदाजा लगाया जा सकता है, कि बारिश का फसलों पर क्या प्रभाव पड़ा है। इन प्रभावों को देखते हुए फसलों को संरक्षित करने हेतु उपयुक्त उपाय किए जा सकते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/33hKcTE
https://bit.ly/3HQCXB4
https://bit.ly/3qei7Wd
https://bit.ly/3GgzqM2
https://bit.ly/3JSO3HH

चित्र संदर्भ   
1. बारिश से बर्बाद हुई गेहू की फसल को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. बारिश से बर्बाद हुई मक्का की फसल को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. गन्ना किसानों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)

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