विभिन्न वृक्षों का धर्म संस्कृति और पौराणिक कथाओं में महत्व

पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें
12-10-2021 05:40 PM
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विभिन्न वृक्षों का धर्म  संस्कृति और पौराणिक कथाओं में महत्व

वृक्षों का आदिकाल से ही प्रतीकात्मक अर्थ रहा है‚ और आज भी हमारे जीवन में इनका बहुत महत्व है। दुनिया की कई पौराणिक कथाओं में भी पेड़ महत्वपूर्ण रहे हैं। समृद्ध‚ रंगीन संस्कृति‚ हजारों साल के इतिहास और कई परस्पर जुड़े धर्मों के साथ‚ भारत को देवी-देवताओं की भूमि कहा गया है। इस आध्यात्मिक रूप से आवेशित दुनिया में‚ वृक्ष पवित्र‚ धार्मिक‚ सम्मानित तथा औपचारिक स्थान रखते हैं‚ जिनमें कुछ वृक्षों की पूजा भी की जाती है। मनुष्य‚ पेड़ों की वृद्धि‚ अंत‚ वार्षिक मृत्यु और उनके पत्ते के पुनरुद्धार को देखते हुए‚ अक्सर उन्हें विकास‚ मृत्यु और पुनर्जन्म के शक्तिशाली प्रतीकों के रूप में मानता है। सदाबहार पेड़‚ जो इन चक्रों के दौरान बड़े पैमाने पर हरे रहते हैं‚ कभी-कभी उन्हें सनातन‚ अमरता या उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। ‘जीवन का वृक्ष’ या ‘विश्व वृक्ष’ की छवि भी कई पौराणिक कथाओं में पाई जाती है। उदाहरण के लिए‚ क्रिसमस की छुट्टी एक पेड़ को सजाकर मनाते हैं। बाइबल (Bible) में‚ पेड़ों को जीवन के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता है‚ जो तृप्ति और पोषण दोनों प्रदान करते हैं। हिंदू धर्म‚ बौद्ध धर्म और जैन धर्म में पीपल और पवित्र अंजीर के वृक्ष को ज्ञान के प्रतीक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार बरगद को जीवन का वृक्ष‚ बेल को एक औषधीय पेड़‚ अशोक को दु:ख के खिलाफ एक रक्षक‚ नारियल को औपचारिक भोजन‚ आम के पेड़ को प्यार और उर्वरता‚ केले को साधन संपन्न वृक्ष‚ नीम को उपचार का पेड़ तथा चंदन को पवित्र धूप व सुगंधित पेस्ट के प्रतीकात्‍मक रूप में उपयोग किया जाता है। इसलिए‚ इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि कई महान साहित्यिक कृतियों में वृक्ष की शक्ति का उल्लेख किया गया है। लोक धर्म और लोककथाओं में‚ पेड़ों को अक्सर वृक्ष आत्माओं का घर कहा जाता है। ‘विश्व वृक्ष’ (world tree) कई धर्मों और पौराणिक कथाओं‚ विशेष रूप से भारत- यूरोपीय (Indo-European) धर्मों‚ साइबेरियाई (Siberian) धर्मों और मूल अमेरिकी (Native American) धर्मों में मौजूद एक आदर्श है। विश्व वृक्ष को एक विशाल वृक्ष के रूप में दर्शाया गया है जो स्वर्ग का समर्थन करता है‚ जिससे स्वर्ग‚ स्थलीय दुनिया और इसकी जड़ों के माध्यम से अधोलोक को जोड़ता है। इस वजह से‚ पेड़ को स्वर्ग और पृथ्वी के बीच मध्यस्थ के रूप में पूजा जाता था। इसे अक्सर जीवन के वृक्ष के साथ पहचाना जाता है‚ और यह एक ‘धुरी मुंडी’ (axis mundi) की भूमिका को भी पूरा करता है‚ जो कि दुनिया का केंद्र या धुरी है। यह दुनिया के केंद्र में भी स्थित है और ब्रह्मांड की व्यवस्था और सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करता है। यह वृक्ष युगों के ज्ञान का स्रोत भी रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष के ऊपरी भाग पर चील के घोंसले के साथ-साथ चमकदार तारे और स्वर्गीय पिंड भी स्थित हैं‚ इसकी शाखाओं के बीच पक्षियों की कई प्रजातियाँ बसती हैं‚ उसकी डालियों के नीचे सब प्रकार के मनुष्य और पशु रहते हैं‚ और उसकी जड़ के पास सांपों और सब प्रकार के रेंगनेवाले जंतुओं का निवास स्थान है। विश्व वृक्ष की कल्पना कभी-कभी अमरता प्रदान करने से जुड़ी होती है‚ या तो उस पर उगने वाले फल से या पास में स्थित किसी झरने से। एक विशिंग ट्री (Wishing trees)‚ एक व्यक्तिगत पेड़ है‚ जो आमतौर पर प्रजातियों‚ स्थिति या उपस्थिति से अलग होता है‚ जिसका उपयोग इच्छाओं और प्रसाद की वस्तु के रूप में किया जाता है।
ऐसे पेड़ों की पहचान एक विशेष धार्मिक या आध्यात्मिक रूप में की जाती है। स्थानीय परंपराओं के आधार पर‚ प्रकृति की आत्मा से‚ संत या देवी से दी गई इच्छा‚ या प्रार्थना का उत्तर देने की उम्मीद में प्रार्थक मन्नत की पेशकश करते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में यात्रियों ने अपने और पेड़ के बीच किसी तरह का संबंध स्थापित करने के लिए पेड़ों पर वस्तुओं को लटकाने की प्रथा का पालन किया है। पूरे यूरोप में‚ पेड़ों को तीर्थस्थलों‚ अनुष्ठानिक महत्वाकांक्षाओं और प्रार्थनाओं के पाठ के रूप में जाना जाता है। बीमार मनुष्य या पशुधन के पक्ष में‚ या केवल सौभाग्य के लिए‚ फूलों की माला‚ रिबन या लत्ता को पेड़ों पर लटका दिया जाता है। दक्षिण अमेरिका (South America) में डार्विन (Darwin) ने कई भेंटों से सम्मानित एक पेड़ को रिकॉर्ड किया‚ जिसमें भेंट के रूप में लत्ता‚ मांस‚ सिगार‚ पेय पदार्थ और घोड़ों की बलि आदि शामिल थे। कल्पवृक्ष (Kalpavriksha)‚ जिसे कल्पतरु (kalpataru)‚ कल्पद्रुम (kalpadruma) या कल्पपादपा (kalpapadapa) के नाम से भी जाना जाता है‚ भारतीय मूल के धर्मों‚ अर्थात् हिंदू धर्म‚ जैन धर्म और बौद्ध धर्म में एक इच्छा-पूर्ति करने वाला दिव्य वृक्ष है। इसका उल्लेख संस्कृत साहित्य में‚ प्राचीनतम स्रोतों से मिलता है। यह जैन ब्रह्मांड विज्ञान और बौद्ध धर्म में भी एक लोकप्रिय विषय है। कल्पवृक्ष की उत्पत्ति “समुद्र मंथन” के दौरान‚ सभी जरूरतों को पूरा करने वाली दिव्य गाय‚ “कामधेनु” के साथ हुई थी। देवताओं के राजा‚ इंद्र‚ इस पेड़ के साथ अपने स्वर्ग में लौट आए। कल्पवृक्ष की पहचान कई पेड़ों जैसे पारिजात (parijata)‚ फिकस बेंगालेंसिस (Ficus benghalensis)‚ बबूल (Acacia)‚ मधुका लोंगिफोलिया (Madhuca longifolia)‚ प्रोसोपिस सिनेरिया (Prosopis cineraria)‚ डिप्लोकनेमा ब्यूटिरेशिया (Diploknema butyracea) और शहतूत के पेड़ (mulberry tree) से भी की जाती है। इस पेड़ का गुणगान शास्त्र और साहित्य में भी किया जाता है। जैन ब्रह्माण्ड विज्ञान में कल्पवृक्ष इच्छा देने वाले पेड़ हैं जो एक विश्व चक्र के प्रारंभिक चरणों में लोगों की इच्छाओं को पूरा करते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में कुछ पेड़ों को विशेष रूप से कल्पवृक्ष के रूप में जाना जाता है‚ जैसे; वट वृक्ष‚ नारियल का पेड़‚ अश्वथा वृक्ष‚ महुआ का पेड़‚ शमी वृक्ष‚ च्युर का पेड़ आदि। अश्वत्थ: (Ashvattha)‚ हिंदुओं के लिए एक पवित्र वृक्ष है‚ जिसका उल्लेख हिंदू धर्म से संबंधित ग्रंथों में व्यापक रूप से किया गया है। माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था‚ इसलिए बौद्ध भी इस पेड़ का सम्मान करते हैं। इसे बोधि वृक्ष या ज्ञान का वृक्ष भी कहा जाता है। अश्वत्थ‚ शिव और विष्णु का एक नाम है‚ यह नाम श्वा (कल) और स्थ (जो रहता है) शब्दों से लिया गया है। पद्म पुराण (Padma Purana) और स्कंद पुराण (Skanda Purana) जैसे पुराणों में अश्वत्थ के पेड़ के पास श्रद्धापूर्वक आने और उसकी पूजा करने से प्राप्त होने वाले बहुत से लाभों की गणना की गई है। बोधगया में बोधि वृक्ष की पूजा के संबंध में नामित पहला ऐतिहासिक व्यक्ति अशोक है‚ जिसका बौद्ध नाम पियादसी (Piyadasi) था।
अग्निहोत्र (agnihotra) की तरह हिंदू यज्ञ में इस्तेमाल की जाने वाली आग की छड़ों में अश्वत्थ वृक्ष की सूखी लकड़ी भी होती है। यह पेड़‚ जिसे “पीपल” (Peepul) के नाम से भी जाना जाता है‚ कथित तौर पर भारत में सबसे ज्यादा पूजा जाने वाला पेड़ है। पीपल या अश्वत्थ अंजीर परिवार में से है‚ जिसमें दिल के आकार के पत्ते होते हैं जो एक छोटी पूंछ में बिंदु पर बंद हो जाते हैं। इस पेड़ की पत्तियाँ रहस्यमय तरीके से‚ तब भी सरसराहट करती हैं‚ जब उन्हें हिलाने के लिए हवा नहीं होती है‚ जिसका श्रेय लंबे पत्तों के डंठल और चौड़ी पत्ती की संरचना को दिया जाता है। पूजा के लिए अक्सर पेड़ के चारों ओर एक लाल धागा या कपड़ा बांधा जाता है और इसे काटना बहुत अशुभ माना जाता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3FtNSQJ
https://bit.ly/3FsXFXj
https://bit.ly/3DEZhM7
https://bit.ly/3DrDib4
https://bit.ly/3FwHNTF
https://bit.ly/3DhaO3U

चित्र संदर्भ

1. वृक्ष की पूजा करते बौद्ध भिक्षु का एक चित्रण (psecn.photoshelte)
2. क्रिसमस के वृक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. विशिंग ट्री (Wishing trees)‚ एक व्यक्तिगत पेड़ है‚ जो आमतौर परप्रजातियों‚ स्थिति या उपस्थिति से अलग होता है‚ जिसका उपयोग इच्छाओं और प्रसाद की वस्तु के रूप में किया जाता है, जिसको दर्शाता एक चित्रण (istock)
4. अश्वत्थ: (Ashvattha)‚ हिंदुओं के लिए एक पवित्र वृक्ष है‚ जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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