सभी के लिए शिक्षा का संदेश देती है, महाभारत की गुरूदक्षिणा से सम्बंधित कहानी

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
05-09-2021 01:07 PM
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प्राचीन समय में जब किसी शिष्य की अध्ययन की अवधि या औपचारिक शिक्षा या एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक की अभिस्वीकृति पूरी हो जाती थी, तब उसके द्वारा गुरू को गुरुदक्षिणा भेंट की जाती थी। यह परंपरा एक प्रकार की अभिस्वीकृति, सम्मान और धन्यवाद है, जो शिष्य द्वारा गुरू को दिया जाता है। यह छात्र और शिक्षक के बीच पारस्परिकता और आदान-प्रदान का एक रूप है। विशेष बात यह है, कि गुरुदक्षिणा मौद्रिक रूप में नहीं होती है, यह वो विशेष कार्य हो सकता है जिसे शिक्षक अपने छात्र से पूरा कराना चाहता है। प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में एक प्रतीकात्मक कहानी मौजूद है, जो एकलव्य की उचित और अनुचित गुरुदक्षिणा की व्याख्या करती है। यह कहानी एक आदिवासी लड़के के सीखने की इच्छा और तीरंदाजी में महारत हासिल करने के जुनून को दर्शाती है। यह कहानी, महाभारत की कई अन्य कहानियों की तरह, शिक्षा, सीखने की व्यक्तिगत इच्छा और उचित और अनुचित दक्षिणा पर एक खुला दृष्टांत है। महाकाव्य महाभारत में एकलव्य, गुरू द्रोण को गुरुदक्षिणा के रूप में अपने दाहिने हाथ का अंगूठा भेंट करता है। किंतु इस घटना के बाद गुरू द्रोण यह सोचकर बार-बार परेशान और आश्चर्य चकित होते हैं, कि गुरुदक्षिणा के रूप में क्या अंगूठे की मांग करना उचित था। एकलव्य अपने दाहिने हाथ की चार अंगुलियों और बाएं हाथ के साथ फिर से धनुर्विद्या में महारत हासिल करता है, और एक शक्तिशाली योद्धा बनकर राजा के रूप में स्वीकार किया जाता है। वह अपने बच्चों को बताता है कि शिक्षा सभी के लिए है और कोई भी किसी व्यक्ति की शिक्षा के दरवाजे बंद नहीं कर सकता है। तो चलिए शिक्षक दिवस के अवसर पर इस वीडियो के माध्यम से महाभारत से सम्बंधित गुरुदक्षिणा की इस कहानी पर एक नजर डालें।

संदर्भ:
https://bit.ly/38CWO7k
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