समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
Post Viewership from Post Date to 18- Sep-2021 (30th Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2252 | 101 | 2353 |
मुहर्रम का शोक‚ मुख्य रूप से शिया और सूफी द्वारा मनाया जाने वाला स्मरणोत्सव अनुष्ठानों
का एक पर्व है‚ जो लगभग सभी मुसलमानों तथा कुछ गैर-मुसलमानों द्वारा भी मनाया जाता
है। यह स्मरणोत्सव इस्लामी पंचांग के पहले महीने‚ मुहर्रम में पड़ता है। इस अनुष्ठान से जुड़े
कई कार्यक्रम मण्डली कक्ष में होते हैं‚ जिसे हुसैनिया के नाम से जाना जाता है। यह आयोजन
कर्बला की लड़ाई की वर्षगांठ का प्रतीक है‚ जब पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन इब्न अली‚
इस लड़ाई में उबैद अल्लाह इब्न ज़ियाद की सेनाओं द्वारा शहीद हो गए थे। उसके साथ गए
उनके परिवार के सदस्य तथा बाकी साथी या तो मारे गए या उन्हें अपमानित किया गया।
वार्षिक शोक की अवधि के दौरान इस घटना का स्मरणोत्सव‚ आशुरा के दिन को नाभीय तारीख
के रूप में‚ शिया सांप्रदायिक की पहचान को परिभाषित करने का कार्य करता है। मुहर्रम का
पालन शिया आबादी वाले देशों में किया जाता है। मुहर्रम के दौरान शिया शोक मनाते हैं‚
हालांकि सुन्नी बहुत कम हद तक ऐसा करते हैं। कहानी सुनाना‚ रोना‚ छाती पीटना‚ काले कपड़े
पहनना‚ आंशिक उपवास करना‚ सड़क पर जुलूस निकालना‚ और कर्बला की लड़ाई का पुन:
जागरण‚ इस अनुष्ठान का निचोड़ है।
मुहर्रम का सभी मुसलमानों के लिए बहुत महत्व है‚ चाहे वे किसी भी तरह के सांप्रदायिक
विभाजन के हों‚ जिन्हें इस्लामी आस्था में एक प्रमुख मुद्दा कहा जाता है। हालाँकि‚ आशुरा‚ या
मुहर्रम के महीने के दसवें दिन के पालन की अभिव्यक्ति और गहनता‚ इस्लामी दुनिया के
भीतर भिन्न होती है। पवित्र पैगंबर के समय में मुसलमान‚ मूसा और उसके लोगों को फिरौन के
चंगुल से छुड़ाने के लिए दो दिनों का उपवास करते थे। कर्बला के युद्ध ने इस परंपरा को एक
नया आयाम दिया। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में शिया समुदाय के लिए‚ शोक के कई सांस्कृतिक
पहलुओं को आशूरा के दिन के रीति-रिवाजों में एकीकृत किया गया है। जिस तरह हुसैन का
परिवार अपनों के लिए मातम मनाता है‚ उसी तरह इस अनुष्ठान में पुरुष और महिलाएं भी
बाहरी तौर पर दुख की अभिव्यक्ति का पालन करते हैं। सफ़र के पूरे महीने और खास कर पहले
10 दिनों के लिए‚ परिवार के सभी सदस्य अपने कपड़ों में तेज रंगों से बचते हैं‚ और सादा
भोजन करना पसंद करते हैं‚ वे साधारण चीजों के पक्ष में शानदार वस्तुओं का त्याग करते हैं।
शियाओं के कई संप्रदाय‚ मुहर्रम के लिए केवल काले रंग के वस्त्र ही पहनते हैं। अनेक घरों की
स्त्रियाँ भी अपने आभूषण उतार देती हैं और वस्त्रों के साथ-साथ शृंगार में भी आत्मसंयमता
दिखाती हैं। कुछ संप्रदायों में‚ घर पर खाना बनाना भी कम कर दिया जाता है‚ जहां भक्त
अपना सारा भोजन स्थानीय इमामबाड़े या मंदिर में लेते हैं। धार्मिक पवित्रता और गंभीरता का
माहौल बनाने के लिए घरों को साफ किया जाता है और अक्सर अगरबत्तीयां जलाई जाती हैं।
जोर से संगीत या किसी भी प्रकार की आकस्मिक गतिविधियों से भी बचा जाता है। घर की
महिला सदस्यों की दैनिक सभाओं को याद करने‚ शोक मनाने के साथ-साथ पैगंबर के परिवार
की महिला सदस्यों और हुसैन के बारे में जानने के लिए समारोह आयोजित किया जाता है।
लगभग 1400 साल पहले‚ कर्बला में हुसैन और उनके परिवार के अंतिम दिनों में‚ गहरी और
दर्दनाक प्यास की याद में‚ तीर्थस्थलों और मस्जिदों में आगंतुकों और तीर्थयात्रियों को विभिन्न
प्रकार के ताजा पेय परोसने की संस्कृति भी है। जिनमें केसर‚ दूध या दही और फलों के रस
जैसे विभिन्न स्थानीय शर्बत भी शामिल हो सकते हैं। आशूरा के दिन और अक्सर पहले वाले
दिन‚ शियाओं के भक्त‚ भूख और प्यास को महसूस करने के लिए तथा साथ ही साथ पैगंबर के
पोते के परिवार द्वारा झेली गई मानसिक पीड़ा को महसूस करने के लिए व भोजन से दूर रहने
के लिए एक ‘फाका’ का पालन करते हैं। उपमहाद्वीप के कुछ क्षेत्रों में‚ विशेष कर रातों में‚ शोक
को साझा करने को बढ़ावा देने के लिए भारी मात्रा में हौजपॉज (hodgepodge) (खिचरी) बनाई
जाती है और सभी के बीच वितरित की जाती है। इस भोजन को नियाज कहते हैं। मिस्र
(Egypt) और तुर्की (Turkey) जैसे कुछ देशों में‚ मुसलमान पारंपरिक रूप से नट्स (nuts)‚
किशमिश और गुलाब जल के साथ गेहूं का हलवा खाते हैं। और निश्चित रूप से‚ दुनिया भर के
अधिकांश मुसलमान मुहर्रम के पूरे महीने में शादियों और उद्घाटन जैसे किसी भी उत्सव या
अवसरों से बचते हैं।
कर्बला की लड़ाई के बाद‚ मुहम्मद की पोती ज़ैनब बिन्त अली और इमाम हुसैन की बहन ने
इमाम हुसैन इब्न अली के विरोधियों‚ इब्न ज़ियाद और यज़ीद के खिलाफ भाषण देना व अपनों
के लिए शोक प्रकट करना शुरू कर दिया। इमाम हुसैन इब्न अली की शहादत का समाचार
इमाम ज़ैन-उल-अबिदीन द्वारा फैलाया गया था‚ जिसने पूरे इराक (Iraq)‚ सीरिया (Syria) और
हिजाज़ में उपदेशों और भाषणों के माध्यम से इमाम हुसैन को शिया इमाम के रूप में सफल
बनाया। पैगंबरों और राजाओं के इतिहास के अनुसार‚ जब अली इब्न हुसैन ज़ैन अल-अबिदीन ने
यज़ीद की उपस्थिति में धर्मोपदेश दिया‚ तो उन्होंने‚ उन्हें औपचारिक रूप से तीन दिनों के लिए
हुसैन इब्न अली का शोक मनाने दिया। उमय्यद खलीफा के दौरान‚ हुसैन इब्न अली की हत्या
का शोक शिया इमाम और उनके अनुयायियों के घरों में किया जाता था‚ लेकिन अब्बासिद
खिलाफत के दौरान अब्बासिद शासकों द्वारा लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सार्वजनिक
मस्जिदों में यह शोक मनाया जाने लगा।
मेरठ में मुहर्रम को हजरत मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों को अलविदा
कहने के लिए‚ तथा हजरत इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों की शहादत को याद करने के
लिए शहर क्षेत्र के विभिन्न इलाकों से शोक जुलूस निकाले जाते हैं। हजारों की संख्या में अमाल
अदा कि जाती है। जुलूस में सोगवार‚ छुरियों और जंजीरों से मातम करते हुए अपने आप को
लहूलुहान कर लेते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं मातमी जुलूस को देखने के लिए घरों की छतों पर
जमा होती हैं। इस दौरान मोहल्ले की गली में भीड़ जुट जाती है। देर रात तक इमामबाड़ों में
मजलिसों का दौर जारी रहता है। जुलूस के दौरान पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रहती है।
संदर्भ;
https://bit.ly/3sliC0l
https://bit.ly/3CTQCp9
https://bit.ly/2m2rABm
https://bit.ly/3xRRMOk
https://bit.ly/3CRDwJa
चित्र संदर्भ
1. मुहर्रम के मौके पर मोमबत्ती जलाकर शोक प्रकट करने का एक चित्रण (wikimedia)
2. मुहर्रम के जश्न का एक चित्रण (flickr)
3. कर्बला युद्ध पर आधारित एक चित्रण (freepik)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.