कोरोना महामारी के कारण अनेकों चुनौतियों का सामना कर रहा है, बकरी उद्योग

स्तनधारी
05-08-2021 10:03 AM
कोरोना महामारी के कारण अनेकों चुनौतियों का सामना कर रहा है, बकरी उद्योग

भारत में बकरी पालन दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, क्यों कि बकरी एक ऐसा पशु है, जिसका पालन कई उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। बकरी को एक गरीब आदमी की गाय के रूप में भी जाना जाता है। बकरी पालन उन स्थानों में भी किया जा सकता है, जहां फसलें अधिक मात्रा में उगाई नहीं जाती, क्यों कि बकरी वहां मौजूद झाड़ियों और पेड़ के पत्तों को खाकर भी कुशलता से जीवित रह सकती है। इन्हें पालने के लिए आवास की आवश्यकता भी कम होती है। इसके अलावा रोगों के प्रति इनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है।
खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक, बकरी क्षेत्र भारत के पशुधन सकल घरेलू उत्पाद में 38,000 करोड़ (8.41%) रुपये का योगदान देता है। इसकी सहायता से पिछले कुछ वर्षों में वार्षिक ग्रामीण रोजगार में 3.2% से 4.2% की वृद्धि हुई है। बकरी के मांस का उत्पादन 1982 में 0.324 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2012-13 में बढ़कर 0.941 मिलियन मीट्रिक टन हुआ। इसी प्रकार 1982 में बकरी के दूध का उत्पादन 1.07 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2012-13 में बढ़कर 4.95 मिलियन मीट्रिक टन हुआ। भारत में बकरी पालन अब ग्रामीण विकास कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।
बकरी का दूध गाय के दूध की तुलना में पचने में आसान होता है, क्योंकि इसमें छोटे वसा वाले ग्लोब्यूल्स (Globules) होते हैं। कहा जाता है कि बकरी का दूध भूख और पाचन क्षमता में सुधार करने में भूमिका निभाता है। गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध गैर-एलर्जीक (Non-allergic) है और माना जाता है कि इसमें एंटी-फंगल (Anti-fungal) और जीवाणुरोधी गुण होते हैं। बड़े जानवरों के विपरीत, वाणिज्यिक फार्म में, नर और मादा दोनों बकरियों का मूल्य समान होता है। गरीबों के लिए, बकरी पालन आर्थिक संकट के दौरान बीमा के रूप में कार्य करता है। बकरी को गरीब लोगों के लिए एक उपयोगी जानवर माना जाता है, जो कि झाड़ियों को साफ करने और भूमि को योग्य बनाने के लिए भी उत्तरदायी है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में अन्य पशुधन प्रजातियों की तुलना में बकरी पालन का जोखिम बहुत कम होता है।
भारत सरकार बकरी पालन शुरू करने के लिए सब्सिडी भी प्रदान करती है। बकरी के मांस से कई तरह के स्वादिष्ट उत्पाद बनाए जा सकते हैं,जैसे सॉसेज, नगेट्स, अचार, पैटी आदि। बकरी की त्वचा का उपयोग अच्छी गुणवत्ता का चमड़ा बनाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा बकरी से प्राप्त दूध और मांस प्रोटीन से भरपूर होते हैं। बकरियों को पालना बहुत आसान है, क्यों कि बकरियां मिलनसार जानवर हैं और लोगों के साथ रहना पसंद करती हैं। अर्ध-शुष्क परिस्थितियों में फ्री-रेंज चराई पर भेड़ की तुलना में बकरियां 3 गुना अधिक किफायती होती हैं। बकरी पनीर, बकरी के दूध से बना साबुन तथा उर्वरक के रूप में बकरी की खाद की भारी मांग है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बकरी का बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है।
विशेष रूप से भारत के पहाड़ी, अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में।
देश में कुल पशुधन में 25% से अधिक बकरियां हैं।भारत में बकरी की कई नस्लें उपलब्ध हैं। इन बकरियों में जमुनापारी, बीटल, बारबरी, टेलिचेरी, सिरोही, कन्नी आदु आदि शामिल हैं:
1. जमुनापारी नस्लें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य में पाई जाती हैं। इसका आवरण सफेद रंग का होता है, तथा गर्दन और कानों पर काले निशान होते हैं। यह भारत की लंबी टांगों वाली बकरियों में सबसे बड़ी और सबसे सुंदर बकरी है। एक वयस्क नर की ऊंचाई 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है, जबकि मादा बकरी की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर तक होती है। यह नस्ल प्रतिदिन 2 से 2.5 किलोग्राम दूध देने की क्षमता रखती है।
2. बीटल नस्ल को मुख्य रूप से दूध और मांस के लिए पाला जाता है। यह जमुनापारी नस्ल से छोटी होती है। इसका बाह्य आवरण मुख्य रूप से काले या भूरे रंग का होता है, जिस पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं। यह प्रतिदिन एक से दो किलोग्राम दूध देने की क्षमता रखती है।
3. बारबरी किस्म मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पाई जाती है। इस नस्ल को भी मुख्य रूप से दूध और मांस के लिए पाला जाता है। इस नस्ल का रंग सफेद होता है, जिस पर हल्के भूरे रंग के धब्बे होते हैं। यह किस्म प्रतिदिन 1.5 किलो दूध देने की क्षमता रखती है। इस नस्ल की प्रजनन क्षमता बेहतर होती है।
4. टेलिचेरी नस्ल को मालाबरी नस्ल भी कहा जाता है। यह आमतौर पर सफेद, बैंगनी और काले रंग की होती है। इस किस्म को मुख्य रूप से इसके मांस के लिए पाला जाता है। यह किस्म प्रति दिन एक किलोग्राम से दो किलोग्राम दूध का उत्पादन कर सकती है।
5. सिरोही नस्ल मोटे और छोटे बालों वाली नस्ल है, जिसका रंग भूरा, सफ़ेद और मिश्रित धब्बों वाला होता है। साथ ही इनका औसत दूध का उत्पादन 71 किलोग्राम होता है।
6.कन्नी आदु किस्म का रंग काला होता है, जिस पर सफेद धब्बे होते हैं। उन्हें आमतौर पर मांस के उद्देश्य से पाला जाता है। यह किस्म सूखे क्षेत्र में अच्छी तरह से विकसित होती है। हालांकि ये सभी किस्में उन्नत मानी जाती हैं, लेकिन सभी बकरियां व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं हैं। कुछ बकरी की नस्लें अत्यधिक उत्पादक हैं और भारत में व्यावसायिक खेती के लिए बहुत उपयुक्त हैं।
वर्तमान समय में पूरे विश्व में कोरोना महामारी फैली हुई है। महामारी को रोकने के लिए लगी तालाबंदी के कारण डेयरी और पोल्ट्री उद्योग पहले से ही घाटे में चल रहा था। इनके अलावा, बकरी पालन से जुड़ा एक बड़ा कार्यबल भी कोविड संकट की चपेट में आ गया है। अब तक, बकरी किसान न तो अपनी बकरियां बेच पा रहे हैं और न ही उनके लिए चारे का प्रबंध कर पा रहे हैं। भारत में बकरी पालन छोटे किसानों से लेकर बड़े किसान तक किया जाता है।
देश में करीब तीन करोड़ लोग बकरी पालन से जुड़े हैं। बकरियां मुख्य मांस उत्पादक जानवर हैं। केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (Central Goat Research Institute - CIRG) के मुताबिक देश में एक साल में करीब 942,930 टन बकरी के मांस का उत्पादन होता है। किंतु महामारी के इस कठिन समय में बकरी उद्योग अनेकों समस्याओं से जूझ रहा है।मार्च में होली और मई में बकरा-ईद दो ऐसे प्रमुख अवसर हैं जिनमें बकरी किसान अच्छा पैसा कमाते हैं। लेकिन कोरोना महामारी और लॉकडाउन के चलते देश के कई राज्यों में मीट की बिक्री ठप पड़ी, जिससे इस धंधे से जुड़े लोगों को भारी नुकसान हुआ है। भारत दुनिया में बकरी के मांस का सबसे बड़ा निर्यातक है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात के अनुसार, भारत ने 2018-19 में 790.65 करोड़ रुपये मूल्य के 18,425 मीट्रिक टन मांस का निर्यात किया था। लेकिन इस वर्ष बकरी पालकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।कोरोना महामारी के दौर में बकरियों की बिक्री के सम्बंध में एक बात जो नई सामने आई है, वो है बकरियों की ऑनलाइन बिक्री। लेकिन इससे भी वह लाभ नहीं हो पाया है, जो महामारी से पहले होता था तथा लोगों को बकरियों की ऑनलाइन बिक्री के साथ अनेकों दिक्कतों का सामना करना पड़ा।बकरियों के लिए चारे की कमी, कम बिक्री आदि समस्याओं ने बकरी पालकों के लिए अनेकों चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

संदर्भ:

https://bit.ly/3A4PYD0
https://bit.ly/3xlm9fI
https://bit.ly/3ympvAq
https://bit.ly/3yqxXPu
https://bit.ly/3yno1WE

चित्र संदर्भ
1. बकरियां उल्लेखनीय रूप से चुस्त होती हैं और चरने करने के लिए पेड़ों पर भी चढ़ सकती है, जिसका एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय महिला बकरी पालकों का एक चित्रण (flickr)
3. उत्तराखंड के बकरी पालक का एक चित्रण (flickr)
4. चट्टान पर चढ़ी हुई बकरी का एक चित्रण (flickr)

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