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बोन्साई (Bonsai)‚ मूल पारंपरिक चीनी (Chinese) कला पेनजिंग (Penjing) या पेनजई (penzai)
का एक जापानी (Japanese) संस्करण है। जापानी भाषा में बोन्साई का मतलब है “बौने पौधे”।
यह काष्ठीय पौधों को लघु आकार तथा आकर्षक रूप प्रदान करने की एक जापानी कला या
तकनीक है। कोरोना वायरस महामारी के कारण‚ लॅाकडाउन की स्थिती उत्पन्न हुई‚ जिसके
चलते लोगों को घर पर अधिक समय मिला‚ कई लोग विशेष रूप से 40 वर्ष से अधिक उम्र के
लोग‚ बोन्साई की पारंपरिक कला की ओर रूख कर रहे हैं।
पेनजिंग के विपरीत‚ जो वास्तविक जीवन के दृश्यों की भव्यता और आकार की नकल करने
वाले छोटे बर्तनों में संपूर्ण प्राकृतिक दृश्यों का निर्माण करने के लिए पारंपरिक तकनीकों का
उपयोग करता है‚ जापानी “बोन्साई” केवल छोटे पेड़ों का उत्पादन करने का प्रयास करता है
जो वास्तविक जीवन के पेड़ों के आकार की नकल करते हैं।
बोन्साई की कला लंबे समय से जापान(Japan) से जुड़ी हुई है‚ यह वास्तव में पहले चीन
(China)में उत्पन्न हुई‚ और फिर पूर्व की ओर कोरिया (Korea)और फिर जापान(Japan) में
फैल गई। बोन्साई की कला बौद्ध भिक्षुओं दवारा फैलाई गई थी जो अपने मंदिरों के अंदर
“बहार” लाना चाहते थे। प्राचीन चित्रों और पंडुलिपियों से‚ हम जानते हैं कि 600 ईस्वी के आस
पास चीनियों दवारा “कलात्मक” पात्रपेड़ों की खेती की जा रही थी‚ लेकिन कई विद्वानों का
मानना है कि बोन्साई या कम से कम गमले के पेड़‚ चीन में 500 या 1,000 ईसा पूर्व में
उगाए जा रह थे। बोन्साई पहली बार 12 वीं शताब्दी के दौरान जापान में दिखाई दिया।
बोन्साई के उददेश्य मुख्य रूप से दर्शकों के लिए अवलोकन और उत्पादक के लिए प्रयास और
सरलता का सुखद अभ्यास है। अन्य पौधों की खेती प्रथाओं के विपरीत‚बोन्साई भोजन या
दवा के उत्पादन के लिए अभिप्रेरित नहीं है। इसकी बजाय‚ बोन्साई अभ्यास‚ लंबी अवधि की
खेती और एक पात्र में उगने वाले एक या एक से अधिक छोटे पेड़ों को आकार देने पर केंद्रित
है।स्रोत सामग्री के नमूने से शुरूआत करके एक बोन्साई बनाया जाता है। यह बोन्साई विकास
के लिए उपयुक्त प्रजातिका कृत्त‚ अंकुर या छोटा पेड़ हो सकता है।
बोन्साई को लगभग किसी भी चिरस्थायी लकड़ी के तने वाले पेड़ या झाड़ीदार प्रजातियों से
बनाया जा सकता है जो सच्ची शाखाएँ पैदा करता है और शीर्ष और जड़ की छंटाई के साथ
पॅाट कारावास के माध्यम से छोटा रखने के लिए किया जाता है। कुछ प्रजातियां बोन्साई
सामग्री के रूप में लोकप्रिय हैं क्योंकि उनके पास छोटे पत्ते या सुई जैसी विशेषताएँ हैं‚ जो
उन्हें बोन्साई के सघन दृश्य क्षेत्र के लिए उपयुक्त बनाती हैं।
मेरठ शहर मे बसे इस घनिष्ठ शहर–आधारित समूह के लिए‚ बोन्साई केवल लघु पौधों को
उगाने से कहीं अधिक है। एक व्यक्ति के लिए एक मात्र मनोरंजन के रूप में जो शुरू हुआ वह
अब पूरे समूह के लिए एक तरह के ध्यान में विकसित हो गया है‚ जो कि धैर्य का मूल्य और
जीवन की तरलता सिखाता है। चिकित्सकों‚ शिक्षकों और गृहिणियों के इस समूह के लिए‚ यह
धैर्य पूर्वक और समर्पितरूप से अपने स्वयं के पिछले आंगन में लघु चमत्कार विकसित कर
रहा है। इसमें जेड(Jade)‚ फिकस(Ficus)‚ जामुन(Jamun)‚ कैंडल ट्री(Candle tree) आदि शामिल हैं।
बोन्साई संस्कृति उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।
डॅा शांति स्वरूप(Dr Shanti Swarup)‚ एक अभ्यास करने वाले सर्जन (surgeon)और प्रमाणित
बोन्साई कलाकार‚ जो समूह के पीछे संचालक हैं‚ ने कहा‚ बोन्साई एक जीवित कला है
जिसके लिए आजीवन प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। मेरठ के निवासी डॅा शांति
स्वरूपने कई साल पहले समूह की स्थापना की‚ जिसे वानुली स्टडी ग्रुप (Vanulee Study
Group) के नाम से जाना जाता है और लगभग 20 छात्रों को मुफ्त में बोन्साई पाठ प्रदान
करता है। समूह हर महीने एक बार मिलता है। उन्होंने कहा‚ “मैं अपने छात्रों को सबसे पहली
चीज धैर्य सिखाता हूं। शौक को हर स्तर पर अत्यधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती
है। चूंकि हम पेड़ों को उनके समकक्षों की तुलना में छोटे पात्रों में आकार दे रहे हैं‚ इसलिए
उन्हें विशेष उपचार की आवश्यकता होती है।
यह प्रक्रिया एक छोटे पौधे को विशेष रूप से डिज़ाइन (designed) किये गये मिटटी के मिश्रण को
प्रदान करके उथले ट्रे (shallow trays)में प्रत्यारोपित करने के साथ शुरू होती है। फिर प्राचीन
उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करके शाखाओं को मोड़ना और काटना शुरू होता है। सबसे
महत्वपूर्ण हिस्सा उन्हें बदलने के लिए शाखाओं के चारों ओर तारों को लपेटना होता है।
किन्तु सावधान रहना होगा कि तारों को शाखाओं में न जाने दे क्योंकि यह निशान छोड़ देता
है। उन्हें समय पर हटाना होगा। इस पूरी प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। अंतिम लक्ष्य पेड़ को
उसके सबसे प्राकृतिक लेकिन लघु रूप मे आकार देना होता है।
कोरोना वायरस महामारी के कारण‚ तनावपूर्ण दुनिया में बोन्साई के कारण‚ कुछ हद तक
तनाव से राहत मिल रही है। रवींद्रन दामोधरन (Ravindran Damodharan)‚ एक पूर्व वकील और
भारत के अग्रणी बोन्साई कलाकारों में से एक हैं‚ उनका कहना है‚ जैसे कि महामारी ने लोगों
को घर पर अधिक समय दिया है‚ लोग बोन्साई कला की ओर रूख कर रहे हैं। “पहले के
विपरित‚ जब मेरी कक्षा में 85% महिलाएं शामिल थीं‚ ज़ुम कक्षाओं (Zoom classes) में पुरूषों की
अधिक भागीदारी होने लगी है। मेरी आभासी कक्षाओं (virtual classes) में भाग लेने वाले लगभग
40% लोग पुरष हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/375LTCq
https://bit.ly/3l1lj5B
https://bit.ly/3ximTCF
https://bit.ly/3lfFbSH
https://bit.ly/375HoYg
https://bit.ly/3BLz3qN
चित्र संदर्भ
1. प्रशांत बोनसाई संग्रहालय से बोनसाई वृक्ष का एक चित्रण (Unsplash)
2. सरसों के बीज के बगीचे के मैनुअल में पत्ते का चित्रण जिसका ईदो (Edo) काल के दौरान बोन्साई काम पर बड़ा प्रभाव पड़ा (wikimedia)
3. आधुनिक बोन्साई उपकरणों का एक चित्रण (wikimedia)
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