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राजा रवि वर्मा को आधुनिक भारतीय चित्रकला का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने चित्रकला को आधुनिक
प्रौद्योगिकी से जोड़ा और भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक नये अध्याय का प्रारंभ किया। आज हम घर-घर
में देवी-देवताओं की तस्वीरें देखते हैं, लेकिन पुराने समय में उनका स्थान केवल मंदिरों में था। तस्वीरों, कैलेंडरों
में जो देवी-देवता आज दिखते हैं वे असल में राजा रवि वर्मा की कल्पना शीलता की देन हैं। वे एक प्रसिद्ध
भारतीय चित्रकार थे जिन्हें भारतीय कला के इतिहास में महानतम चित्रकारों में गिना जाता है। उन्होंने सिर्फ
देवी-देवताओं के ही नहीं बल्कि भारतीय साहित्य, संस्कृति और पौराणिक कथाओं (जैसे महाभारत और रामायण)
और उनके पात्रों का जीवन चित्रण भी किया।
राजा रवि वर्मा की मुख्य कलाकृतियों में से कुछ हैं विचारमग्न युवती, दमयंती-हंस संवाद, अर्जुन व सुभद्रा,
शकुन्तला, हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देवी गंगा, सत्यवती और शान्तनु आदि है।परंतु इनमें से सबसे
प्रमुख कृति थी हस्तिनापुर के कुरु राजा शांतनु और उनसे जुड़े कई पात्रों की है। उन्होनें इस पेंटिंग के माध्यम
से हस्तिनापुर के समय की पौराणिक कहानी को अंतर्दृष्टि दी है।महाभारत हिन्दू धर्म का एक प्रसिद्ध महाकाव्य
है, तथा आज भी यह लोगों में उतनी ही प्रसिद्ध है जितनी की कई वर्षों पूर्व थी। यही कारण है कि इसके
विभिन्न प्रसंगों को विभिन्न कलाकारों ने अपने कृत्यों के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
राजा रवि वर्मा द्वारा
चित्रित एक पेंटिंग (painting) में महाभारत के एक पात्र शांतनु को गंगा को अपने आठवें पुत्र को नदी में डुबाने
से रोकते हुये दिखाया गया हैं, यही पुत्र बाद में भीष्म पितामहा के रूप में जाने गए।वारविक गोब्ले ने भी
महाभारत के एक प्रसंग को चित्रित किया है जिसमें शांतनु की मुलाकात देवी गंगा से होती है।
महाकाव्य महाभारत में, शांतनु हस्तिनापुर के एक कुरु राजा थे। वे चंद्र वंश के भरत जाति के वंशज थे, और
पांडवों और कौरवों के परदादा थे। वह हस्तिनापुर के तत्कालीन राजा प्रतीप के सबसे छोटे पुत्र थे और उनका
जन्म उत्तरार्द्ध काल में हुआ था। सबसे बड़े पुत्र देवापी को कुष्ठ रोग होने की वजह से उसने अपना
उत्तराधिकार छोड़ दिया, जबकि मध्य पुत्र बहलिका (या वाहालिका) ने अपने पैतृक राज्य को त्याग कर अपने
मामा का राज्य विरासत के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार शांतनु हस्तिनापुर साम्राज्य का राजा बन गया।
उन्हें भीष्म पितामह के पिता के रूप में भी जाना जाता है, जो अब तक के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से
एक हैं।माना जाता है कि एक बार शांतनु ने नदी के तट पर एक सुंदर स्त्री (देवी गंगा) को देखा और उससे
विवाह करने के लिए कहा। वह मान गई लेकिन उसने यह शर्त रखी कि शांतनु उसके कार्यों के बारे में कोई भी
सवाल नहीं पूछेंगे यदि उसने ऐसा किया तो वह उसे छोड़ कर चली जाएगी। उन्होंने शादी की और बाद में
उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। लेकिन गंगा ने उस बेटे को नदी में डूबा दिया। चूंकि शांतनु ने उसे वचन दिया
था इसलिए उन्होने गंगा से कोई सवाल नहीं पूछा। एक के बाद एक, सात पुत्रों को जन्म देने के बाद देवी गंगा
ने सभी के साथ ऐसा ही किया। जब गंगा आठवें पुत्र को डूबाने वाली थीं, तब शांतनु खुद को रोक नहीं पाए
और गंगा से इसका कारण पूछने लगे। अंत में, गंगा ने राजा शांतनु को ब्रह्मा द्वारा दिए गए उस श्राप के बारे
में समझाया जोकि शांतनु के पूर्व रूप महाभिषा को और गंगा को मिला था। उसने उससे कहा कि उनके आठ
बच्चों को पृथ्वी पर नश्वर मनुष्य के रूप में जन्म लेने का श्राप दिया गया था। उन्होनें आगे बताया कि ये
सभी मनुष्य रूप में इस श्राप से अपनी मृत्यु के एक वर्ष के भीतर मुक्त हो जाएंगे।
इसलिए उसने उन सभी
को इस जीवन से मुक्त कर दिया। चूंकि आठवें पुत्र को वह नहीं डूबा पायी इसलिए वह कभी भी पत्नी या
बच्चों का सुख प्राप्त नहीं कर पायेगा और उसे एक लंबा नीरस जीवन जीना पड़ेगा। हालांकि उसे यह वरदान
भी प्राप्त है कि वह सभी धर्मग्रंथों का ज्ञाता होने के साथ-साथ गुणी, पराक्रमी और पिता का आज्ञाकारी पुत्र
होगा। इसलिए वह उसे राज सिंहासन के योग्य बनाने हेतु प्रशिक्षित करने के लिए स्वर्ग में ले जा रही है। इन
शब्दों के साथ, वह बच्चे के साथ गायब हो गई। इसके उपरांत शांतनु कई वर्षों बाद एक बार जब गंगा नदी के
किनारे टहल रहे थे तो उन्होंने पाया कि एक सुंदर युवा लड़का उनके सामने खड़ा है। लड़के की पहचान की
पुष्टि करने के लिए गंगा प्रकट हुई और शांतनु को उसके पुत्र से परिचित करवाया। यह दृश्य भी पेंटिंग के
माध्यम से चित्रित किया गया है।इस लड़के का नाम देवव्रत था और उसे परशुराम और ऋषि वशिष्ठ द्वारा
युद्ध कलाओं द्वारा पवित्र शास्त्रों का ज्ञान दिया गया था। देवव्रत के बारे में सच्चाई का खुलासा करने के बाद
गंगा ने शांतनु को हस्तिनापुर ले जाने के लिए कहा। राजधानी पहुंचने पर शांतनु ने सिंहासन के उत्तराधिकारी
के रूप में देवव्रत को ताज पहनाया।
इसके कुछ साल बाद, शांतनु जब यमुना नदी पर यात्रा कर रहे थे तब उसने एक अज्ञात दिशा से आने वाली
एक सुगंध को सूंघा। गंध का कारण खोजते हुए, वह सत्यवती के पास जा पहुंचा। सत्यवती ब्रह्मा के श्राप से
मछली बनी अद्रिका नामक अप्सरा और चेदी राजा उपरिचर वसु की कन्या थी। इसका ही नाम बाद में
सत्यवती हुआ। मछली का पेट फाड़कर मल्लाहों ने एक बालक और एक कन्या को निकाला और राजा को
सूचना दी। बालक को तो राजा ने पुत्र रूप से स्वीकार कर लिया किंतु बालिका के शरीर से मत्स्य की गंध आने
के कारण राजा ने मल्लाह को दे दिया। पिता की सेवा के लिये वह यमुना में नाव चलाया करती थी।
सहस्त्रार्जुन द्वारा पराशर मुनि को मृत मान कर मृतप्रायः छोड़ दिया गया। माता सत्यवती ने मुनिराज की सेवा
की व जीवन दान दिया। महर्षि ने प्रसन्न होकर उनका मत्स्यभाव नष्ट किया तथा शरीर से उत्तम गंध निकलने
का वरदान दिया अत: वह 'गंधवती' नाम से भी प्रसिद्ध हुई। उसका नाम 'योजनगंधा' भी था। उससे महर्षि
वेदव्यास का जन्म हुआ। बाद में राजा शांतनु से उसका विवाह हुआ।
उसने शांतनु से इस शर्त पर शादी की कि उनका पुत्र ही सिंहासन का उत्तराधिकारी होगा, जो कि वास्तव में
शांतनु के सबसे बड़े बेटे (और ताज राजकुमार) भीष्म का जन्मसिद्ध अधिकार था। सत्यवती से शांतनु के दो
बच्चे हुए, चित्रांगदा और विचित्रवीर्य। शांतनु की मृत्यु के बाद, सत्यवती और उसके राजकुमारों ने राज्य पर
शासन किया। हालाँकि उनके दोनों बेटे निःसंतान मर गए, उन्होंने विचित्रवीर्य की दो विधवाओं के बच्चों के
पिता के लिए अपने पहले पुत्र व्यास की व्यवस्था नियोग के माध्यम से की। यह बच्चे (धृतराष्ट्र और पांडु)
आगे चलकर क्रमशः कौरवों और पांडवों के पिता बने। पांडु की मृत्यु के बाद, सत्यवती तपस्या के लिए वन में
गई और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। जहां सत्यवती की बुद्धि, दूरदृष्टि और वास्तविक राजनीति में निपुणता की
प्रशंसा की जाती है, वहीं उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने के उनके गलत साधनों और उनकी अंधी महत्वाकांक्षा की
आलोचना की जाती है।
इस कहानी से प्रेरित होकर राजा रवि वर्मा ने कई दृश्यों और पात्रों को चित्रण किया। उन्होंने भीष्म
प्रतिज्ञा,शांतनु और सत्यवती की प्रेम कहानी आदि विषयों पर कई कला कृतियां बनाई। उस समय आधुनिक
चित्रकारों के मध्य पारंपरिक तथा पारंपरिक कलाकारों के मध्य आधुनिक माने जाने वाले राजा रवि वर्मा भारत
की पारंपरिक और आधुनिक कला के मध्य एक उत्कृष्ट संतुलन सेतु थे।
संदर्भ:
https://bit.ly/2UfOk25
https://bit.ly/3jv3tXG
https://bit.ly/3yb650W
https://bit.ly/3qz4rUs
https://bit.ly/3duWlH5
चित्र संदर्भ
1. हस्तिनापुर में यधिष्ठिर के आगमन का एक चित्रण (wikimedia)
2. पेंटिंग में महाभारत के एक पात्र शांतनु को गंगा को अपने आठवें पुत्र को नदी में डुबाने से रोकते हुये दिखाया गया हैं (wikimedia)
3. श्रीकृष्ण, कौरव दरबार में पांडवों के दूत के रूप में अपनी भूमिका का एक चित्रण एक चित्रण (wikimedia)
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