भोज्य पदार्थों के संरक्षण और निर्माण में सहायक होती है. किण्वन प्रक्रिया

स्वाद- खाद्य का इतिहास
26-06-2021 10:14 AM
भोज्य पदार्थों के संरक्षण और निर्माण में सहायक होती है. किण्वन  प्रक्रिया

भारत में खाद्य पदार्थों को उनके स्वाद के साथ-साथ उनकी निर्माण विधि के आधार पर भी जाना जाता है। यहाँ की विविध खाद्य निर्माण विधि में किण्वित (Fermented foods) बेहद लोकप्रिय है और अनेकानेक भोज्य पदार्थ इस प्रक्रिया द्वारा निर्मित किए जाते हैं, जिनमे से दही, इडली, डोसा, गुंड्रुक, सिंक (synik) आदि प्रमुख हैं। किण्वन को खमीरीकरण भी कहा जाता है। यह एक जीव रासायनिक प्रक्रिया है, जिससे लंबे समय तक खाद्य पदार्थों का संरक्षण किया जाना संभव है। इस प्रक्रिया में कार्बनिक योगक नए कार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित हो जाते हैं, साथ ही इस क्रिया में ऑक्सीज़न की आवश्यकता नहीं पड़ती। लैक्टिक एसिड किण्वन (lactic acid fermentation) फलों और सब्जियों के औसत जीवन को बढ़ाता है, साथ ही यह उनके लाभकारी गुणों, पोषक तत्वों तथा स्वाद में भी वृद्धि करता है। किण्वन प्रक्रिया में ज़ाइमेज़ (Zymase) , उत्प्रेरक का काम करते हैं, यह एक प्रकार के जैविक उत्प्रेरक होते है जो जैव रासायनिक अभिक्रियाओं की दर को बढ़ा देते है। अल्कोहॉल बनाने में इस प्रक्रिया का प्रचुरता से प्रयोग किया जाता है। प्राकर्तिक रूप से किण्वन प्रक्रिया का इतिहास बेहद पुराना है, जिसका साक्ष्य 13, 000 BC की एक बियर के अवशेषों से प्राप्त हुआ, ये अवशेष इसराइल (Israel) में हाइफ़ा (Haifa) गुफा में प्राप्त हुए हैं। साथ ही एक प्राचीन चीनी गाँव जियाहू (Jiahu) में भी 7000–6600 BC ईसा पूर्व के मादक पेय प्राप्त हुए हैं, जिन्हे बनाने में फल, चावल और शहद का प्रयोग किया गया था, जिनके अंदर प्रचुर एंजाइम पाए जाते हैं। इस बात के भी पुख्ता सबूत प्राप्त हुए हैं की, प्राचीन और सम्पन्न सभ्यताओं में से एक बेबीलोन (Babylon) के निवासी भी, किण्वन प्रक्रिया से मादक पेय (अल्कोहल युक्त पेय) का निर्माण करते थे।
चूँकि किण्वन प्रक्रिया का ज्ञान मानवों को प्राचीन समय से था, परन्तु आधुनिक सभ्यता में किण्वन की खोज का श्रेय फ्रांसीसी रसायनज्ञ लुई पाश्चर (Louis Pasteur) को जाता हैं।
जब वे शराब में चीनी (sugar) का अध्ययन कर रहे थे, तो उन्होंने यह निष्कर्ष निकIला कि खमीर, कोशिकाओं के भीतर रासयनिक प्रक्रिया को उत्प्रेरित करता है और यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो यीस्ट कोशिकाओं को व्यवस्थित करती है, उन्हें नष्ट या सड़ाती नहीं है। खाद्य पदार्थों के किण्वन में, शर्करा (Sugars) और अन्य कार्बोहाइड्रेट को, अल्कोहल या संरक्षक कार्बनिक अम्ल और कार्बन डाइऑक्साइड में रूपांतरित किया जाता है, कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग रोटी को खमीरीकृत करने के लिए किया जाता है, कार्बनिक अम्लों का उपयोग सब्जियों और डेयरी उत्पादों के संरक्षण और स्वाद में वृद्धि के लिए किया जाता है। खाद्य किण्वन मुख्यतः चार उद्देश्यों को पूरा करता है:
1. खाद्य पदार्थों में स्वाद, सुगंध और बनावट की विविधता का विकास करने के लिए।
2. लैक्टिक एसिड, अल्कोहल, एसिटिक एसिड और क्षारीय किण्वन के माध्यम से भोजन को संरक्षित करने के लिए।
3. प्रोटीन, आवश्यक अमीनो एसिड और विटामिन के साथ खाद्य पदार्थों को समृद्ध करने के लिए।
4. एंटीन्यूट्रिएंट्स (Antinutrients) को ख़त्म करने, तथा खाना पकाने के समय और ईंधन के सम्बंधित उपयोग को कम करने के लिए।
पदार्थों के किण्वन के दौरान आनेवाली कुछ बाधाएँ हानिकारक भी साबित हो सकती हैं, जैसे- समुद्री जहाजों में खाद्य पदार्थों का भण्डारण करते समय यदि रोगाणु पूरी तरह समाप्त न किये गए, तो इसमें बेहद हानिकारक जीव उत्पन्न हो सकते हैं, जो संभावित रूप से बोटुलिज़्म (botulism) जैसी खाद्य जनित बीमारियों का जोखिम बड़ा सकते है, तीव्र गंध और मलिनकिरण को आप इसके संकेत के तौर पर देख सकते हैं जिसका मतलब होता है कि, हानिकारक बैक्टीरिया भोजन में शामिल हो गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization (WHO) ने महामारी विज्ञान के अध्ययन के आधार पर, मसालेदार खाद्य पदार्थों पर किये गए शोध में पाया गया कि किण्वित भोजन में एक कार्सिनोजेनिक उपोत्पाद, एथिल कार्बामेट (यूरेथेन) होता है और नियमित रूप से मसालेदार सब्जियाँ खाने से व्यक्ति के इसोफेजियल स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (Squamous cell carcinoma) * यह एक प्रकार का कैंसर है* का जोखिम और अधिक बढ़ जाता है। किण्वन प्रक्रिया से विभिन्न भोज्य पदार्थों समेत दूध से सम्बंधित विभिन्न उद्पादों का संरक्षण और उद्पादन किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के अरनावली गाँव के निवासी श्री मनीष भारती ने 2012 में 4 गायों के साथ अपना डेयरी व्यवसाय शुरू किया, जिसमें औसतन 35 लीटर प्रतिदिन का उत्पादन होता था। बहुत जल्द उन्होंने महसूस किया कि डेयरी उद्योग जमीनी स्तर पर बिल्कुल भी संगठित नहीं है और किसानों को उनके द्वारा उत्पादित दूध का सही मूल्य नहीं मिल रहा है। अतः उन्होंने कच्चे गाय के दूध को अपने ब्रांड के तहत बेचने का फ़ैसला किया और इसे भारती मिल्क स्पलैश ट्रेड मार्क के साथ पंजीकृत कराया।

2014 में, स्वचालित दूध संग्रहण और प्रबंधन सुविधा के साथ अल्ट्रा मॉर्डन मिल्किंग पाइपलाइन पार्लर की मदद से, आज वह अपनी गायों को सबसे अच्छे तरीके पालने और व्यवसाय करने में सक्षम हैं। दूध निकालने वाली पाइपलाइन और पैकिंग मशीनों से जुड़ा चिलिंग प्लांट दूध को पाश्चुरीकरण के बिना भी सबसे अच्छी स्वच्छता के साथ प्रदान करने में सक्षम है। क्योंकि दूध हवा और पर्यावरण के संपर्क में नहीं है और न ही हाथों का इस्तेमाल होता है, इस कारण CIRC (Central Institute for Research on Cattle) मेरठ के मार्गदर्शन में आज वह सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने में सक्षम हैं।

संदर्भ

https://bit.ly/3zVmA2V
https://bit.ly/3jhIZSb
https://bit.ly/3vXVsgB
https://bit.ly/35RX6WE

चित्र संदर्भ
1. विभन्न भोज्य पदार्थों में किण्वन प्रक्रिया का एक चित्रण (flickr)
2. अपनी प्रयोगशाला में लुईस पाश्चर का एक चित्रण (wikimedia)
3. किण्वित दुग्ध उद्पादों का एक चित्रण (youtube)

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