समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
भारत दुनिया में लीची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। लीची (लीची चिनेंसिस सन - Litchi
chinensis Sonn) बाजार में उच्च मूल्य प्राप्त करने वाले सबसे स्वादिष्ट फलों में से एक है, और
इसकी खेती का क्षेत्रफल अब पहले से कई गुना बढ़ गया है। मेरठ उत्तर प्रदेश में लीची का एक महत्वपूर्ण
उत्पादक है। लीची मूल रूप से दक्षिण पूर्व एशिया (Asia) का फल है, जो सदाबहार पेड़ पर लगता है।
इसका पेड़ सेपिंडिसी (Sapindaceae) परिवार से सम्बंधित है,जिसे आमतौर पर या तो ताज़ा खाया जाता
है या फिर डिब्बाबंद और सूखे फलों के रूप में ग्रहण किया जाता है। यह फल अंडाकार तथा बाहर से
लाल रंग का है, जिसका व्यास लगभग 25 मिलीमीटर (1 इंच) तक हो सकता है। इसका पारभासी भीतरी
गूदा सुगंधित, अम्लीय तथा स्वाद में मीठा होता है। लीची पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में स्थानीय महत्व
रखती है, और इसे चीन और भारत में व्यावसायिक रूप से उगाया जाता है। पश्चिमी दुनिया में इसे
उगाने की शुरूआत तब हुई, जब यह 1775 में जमैका (Jamaica) पहुंची। कहा जाता है कि फ्लोरिडा
(Florida) में लीची का पहला फल 1916 में पका था। इस पेड़ की खेती कुछ हद तक भूमध्य सागर के
आसपास, दक्षिण अफ्रीका (Africa) और हवाई (Hawaii) में भी की गई है। यह फल प्राचीन काल से
कैंटोनीज़ (Cantonese - गुआंगज़ौ (Guangzhou) शहर में रहने वाले चीनी मूल के निवासी) का
पसंदीदा फल रहा है।
लीची को उगाने के लिए उन्हें बहुत कम छंटाई और देखरेख की आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हें
उगाना आसान है,हालांकि ज्यादातर समय इसकी जड़ों के आसपास प्रचुर मात्रा में नमी का होना आवश्यक
है। पेड़ जब तीन से पांच साल का हो जाता है, तब इसमें उत्पादन शुरू होता है।2013-14 के दौरान
भारत में लीची का क्षेत्रफल और उत्पादन क्रमशः 84,170 हेक्टेयर और 585,300 टन था। भारत में,
बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और असम देश के कुल लीची उत्पादन का 64.2% हिस्सा बनाते हैं।इनके
अलावा छत्तीसगढ़,उत्तराखंड, पंजाब, ओडिशा, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर
भी लीची उत्पादन के लिए जाने जाते हैं।
लीची की एक किस्म मुजफ्फरपुर की शाही लीची भी है, जो मुख्य रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर में
उगायी जाती है।मुजफ्फरपुर में लगभग 15,000 हेक्टेयर भूमि में शाही लीची की खेती की जाती है।यहां
स्थित बिहार के लिची ग्रोवर्स एसोसिएशन को 2018 में शाही लीची के लिए भौगोलिक संकेत की मान्यता
दी गई थी। बिहार की शाही लीची राज्य का वह चौथा उत्पाद है, जिसे भौगोलिक संकेत का टैग दिया
गया है। भौगोलिक संकेत के अंतर्गत बिहार के अन्य तीन उत्पादों में जर्दालु (Jardalu) आम, चावल की
कतर्नी (Katarni) किस्म, मगहाई-पान (Magahai-paan) शामिल हैं।भौगोलिक संकेत उस उत्पाद को
दिया जाता है, जो विशिष्ट भौगोलिक मूल के होते हैं, तथा विशिष्ट गुणों को धारण करते हैं।बिहार के
अन्य जिलों, जहां यह फल बहुतायत में बढ़ता है, वैशाली, समस्तीपुर, चंपारण, बेगूसराय आदि हैं। विश्व
प्रसिद्ध लीची ने पहली बार राज्य से 'फाइटोसनेटरी प्रमाण पत्र' (Phytosanitary Certificate)भी प्राप्त
किया है, और अब इसे विश्व स्तर पर बिहार की लीची के नाम से जाना जाएगा।'फाइटोसनेटरी प्रमाण
पत्र’ केवल एक सार्वजनिक अधिकारी द्वारा जारी किया जाता है जो तकनीकी रूप से योग्य और राष्ट्रीय
पादप संरक्षण संगठन (National Plant Protection Organisation) द्वारा अधिकृत हो।मुजफ्फरपुर की
शाही लीची अपने बड़े आकार, अद्वितीय स्वाद और सुगंध के लिए प्रसिद्ध है और इसलिए अनूठी है।
भारत चीन के बाद लीची का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है तथा भारतीय बागवानी अनुसंधान
संस्थान के अनुसार, लीची वर्तमान में देश भर में 83,000 हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जा रही है। बिहार के
लीची फल उद्यान या वाटिकाएं अकेले 35,000 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हैं और देश में उगाए गए
कुल लीची उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। अपनी लोकप्रियता के कारण कोरोना महामारी के
इस कठिन दौर में भी शाही लीची की मांग में कोई कमी नहीं आयी है।हाल ही में बिहार से 523
किलोग्राम लीची यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) भेजी गयी है। यह पहली बार है, जब बिहार और
वास्तव में भारत ने ताजा लीचियों का निर्यात किया है।हालांकि, परिवहन सुविधाओं की कमी के कारण
किसानों को अनेकों बाधाओं का सामना भी करना पड़ रहा है। कोरोना महामारी को रोकने के लिए हुई
तालाबंदी के कारण लीचियों को खरीदने में व्यापारियों ने कम रूचि दिखाई, जिसकी वजह से अपेक्षित
मुनाफे में काफी कमी आयी।उपयुक्त भंडारण सुविधा न होने के कारण उपज को बहुत कम कीमतों पर
बेचा गया। इस प्रकार लीची की खेती से सम्बंधित छोटे और मध्यम श्रेणी के किसानों को आय के
अत्यधिक नुकसान का सामना करना पड़ा। लीची तापमान, वर्षा और आर्द्रता में भिन्नताओं के प्रति बहुत
संवेदनशील होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण किसान पहले से ही लीची की खेती में नुकसान का
सामना कर रहे हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी ने इस नुकसान में और भी वृद्धि कर दी है।
संदर्भ:
https://bit.ly/35ChryU
https://bit.ly/3wFu0Fw
https://bit.ly/3gPux12
https://bit.ly/3gGtykM
https://bit.ly/2SGXCDW
https://bit.ly/3gLStlL
चित्र संदर्भ
1. लीची के फलों का एक चित्रण (flickr)
2. छिले हुए लीची फल का एक चित्रण (wikimedia)
3. लीची के फूल वृक्ष का एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.