समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
भारत दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है। यदि विश्व कि जनसँख्या को पांच हिस्सों में बाँट लिया
जाए एक पूरे हिस्से पर भारत का कब्ज़ा होगा, अर्थात भारत दुनिया की कुल आबादी का पांचवा हिस्सा है।
संभावित जनसख्या आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में भारत की कुल आबादी 1,352,642,280 थी। 1975 से
2010 के भीतर ही यहां की कुल जनसँख्या दोगनी होकर 1.2 बिलियन तक पहुँच गई। ऐसा अनुमान है कि
भारत 2024 तक चीन को पछाड़ते हुए विश्व कि सर्वाधिक आबादी वाला देश बन जायेगा। वर्तमान में भारत
की जनसँख्या वृद्धी दर 1.13% है।
यदि जनसँख्या वृद्धि इसी औसत से होती रही तो इसकी 2030 तक 1.5 बिलियन और 2050 तक 1.7
बिलियन तक पहुँचने की संभावना है। आंकड़ो के अनुसार विश्व के 2.41% भूमि पर भारत का कब्ज़ा है, जिस
पर विश्व कि 18% से अधिक आबादी को संतुलित रखने कि जिम्मेदारी है।
2001 में की गई जनगणना में
72.2% प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों (638,000 गावों) और शेष 27.8% आबादी (5,100 शहरों) में दर्ज की
गई। यदि लिंगानुपात की बात करें तो, 2016 के दौरान प्रति 1000 पुरुषों में 944 महिलाएं थी, वहीँ यह आंकड़ा
2011 में 1000 पुरुषों पर 940 महिलाओं का था।
किसी भी देश की जनगणना- महिला-पुरुष का लिंगानुपात, व्यक्ति कि उम्र, व्यवसाय जैसे कई पहलुओं को
ध्यान में रखकर की जाती है। भारत में आजादी से पहले ही जनगणना 1865 से 1941 बीच समय-समय पर की
जाती रही है। शुरू से जनगणना कराने का उद्द्येश्य देश की आबादी को उजागर करने के साथ-साथ समाज के
विभिन्न वर्गों कि स्थिति को भी समझना रहा है, जैसे ब्रिटिश काल में भारतीय समाज की "जाति", "धर्म",
"पेशे" और "आयु" से संबंधित आंकड़ों को एकत्र करने पर विशेष ध्यान दिया गया है, क्यों कि इन आंकड़ों से वह
व्यवस्था को संतुलित रखने के लिए ज़रूरी निर्णय ले सकते थे। साथ ही जनसँख्या आंकलन का प्रयोग, कई
बार राजनितिक कूटनीति निर्धारण के लिए भी किया जाता रहा है।
भारत में प्रायः उत्तर-पश्चिम प्रांतों की 1865 की जनगणना को, पहली व्यवस्थित जनगणना कहा जाता है।
इसके बाद 1872 में ब्रिटिश अधिकारीयों को पहली अखिल भारतीय (पूरे भारत में ) जनगणना कराने का श्रेय
जाता है। जिसके बाद सन 1881 से हर दस वर्ष में एक बार जनगणना कराने का लक्ष्य रखा गया। हालाकि यह
काम इतना भी आसान नहीं था, क्यों कि जब पहली बार लोगों की गिनती कराने का प्रयास किया गया तो
गणकों (जनगणना करने वाले अधिकारी) को कई विषम और भयानक परिस्थियों का सामना करना पड़ा।
दरअसल उस समय अधिकांश नागरिक अनपढ़ और अनिच्छुक थे, जनसँख्या आंकलन के परिपेक्ष्य में समाज
में कई भ्रान्तिया भी व्याप्त थी, जैसे- इस गिनती के आधार पर नए कर लागू करना, लोग यह भी सोच रहे थे
कि यह इसाई धर्म का अनुसरण कराने कि एक युक्ति है। इस संदर्भ में कई बार हिंसक झडपें भी हुई, और कुछ
क्षेत्रों में अधिकारियों पर बाघ के हमले होने की भी खबरे आई। 1931 की जनगणना को ब्रिटिश काल की अंतिम
जनगणना माना जाता है। 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य के अस्तित्व समाप्ति के साथ ही इसकी जिम्मेदारी
अस्थायी प्रशासनिक संरचनाओं पर आ गई।
जनगणना कराने के विभिन्न स्तर पर ढेरों फायदे होते हैं, इसके उद्द्येश्यों और आवश्यकताओं को समझना
भी बहुत ज़रूरी होता है। उनमे से कुछ निम्नवत हैं।
1. जनगणना कराने के लिए अनेक संसाधनों तथा ठोस अधिकारों की आवश्यकता होती है, साथ ही एक
व्यापक व्यवस्थित प्रशासनिक तंत्र को संगठित करना होता है।
2. जनगणना कराने के लिए एक निश्चित क्षेत्र को चुनना अति आवश्यक होता है, क्योंकि जनसंख्या के
आंकड़ों का कोई अर्थ नहीं है, जब तक कि वे किसी क्षेत्र की परिस्थियों को स्पष्ट तौर पर उजागर न करें।
3. जनगणना के आंकड़ों की पूर्णता और सटीकता भी ज़रूरी है, बिना किसी चूक अथवा दोहराव के निश्चित
क्षेत्र के भीतर प्रत्येक व्यक्ति की गणना होना आवश्यक है।
4. एकत्र किये गए आंकड़ों को व्यवस्थित रखना भी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है, और यह आवश्यक
भी है।
5. जनगणना निश्चित समयांतराल (भारत में प्रत्येक दस वर्ष) पर कराना ज़रूरी होता है, क्यों की इससे
प्राप्त आंकड़ों से ही राष्ट्र की प्रगति अथवा परिस्थितियों की पिछले सालों से बेहतर तुलना की जा
सकती है।
6. आंकड़ो का बेहतर और स्पष्ट रूप से प्रकाशन सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है, क्यों कि अप्रकाशित
डेटा जनगणना डेटा के संभावित उपयोगकर्ताओं के लिए किसी काम का नहीं है।
जनगणना की उपयोगिता और आवश्यकता।
● जनगणना द्वारा प्राप्त आंकड़ों से आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के अध्ययन और मूल्यांकन
करना आसान हो जाता है, साथ ही यह योग्य व्यक्ति को आरक्षण प्राप्त करने में मदद करती है।
● इसकी सहायता से रोजगार और जनशक्ति कार्यक्रमों, प्रवासन, आवास, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य
और कल्याण, सामाजिक सेवाओं, का आंकलन और उन क्षेत्रों के लिए पर्याप्त धनराशी वितरण तथा
योजना निर्धारण संभव है।
● जनगणना से शहरी-ग्रामीण स्थिति के बदलते पैटर्न, शहरीकृत क्षेत्रों का विकास, व्यवसाय और शिक्षा
के अनुसार जनसंख्या का भौगोलिक वितरण, जनसंख्या की लिंग और आयु संरचना, जनसंख्या की
सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं का आंकलन करना संभव हो जाता है।
● व्यापार और उद्योग में जनगणना के आंकड़ों की विशेष महत्ता होती है, क्यों कि ये आंकड़े आवास,
साज-सज्जा, कपड़े, मनोरंजन सुविधाओं, चिकित्सा आपूर्ति की मांग को बहुत अधिक प्रभावित करते
हैं।
देश में अंतिम बार व्यवस्थित जनगणना 2011 में सम्पन्न हुई थी, और अगली जनगणना 2021 में सम्पन्न
होनी थी। परंतु महामारी ने इस दशको पुराने और बेहद ज़रूरी सिलसिले को भी तोड़ दिया, और इसे बुरी तरह
प्रभावित किया है। कोरोना वायरस महामारी के कारण इसे विलंबित करना पड़ा। हालाँकि सरकार ने 2020-21
के दौरान मोबाइल ऐप और सीएमएमएस पोर्टल की जांच के लिए, जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर
(एनपीआर) का परीक्षण किया गया है। सरकार द्वारा जारी रिपोर्टों के अनुसार जनसँख्या आंकलन का अगला
चरण (फील्ड वर्क) आने वाले वर्षों (2021-22) में संपन्न किया जाएगा।
जनगणना के इस चरण का काम अप्रैल
2020 से सितंबर 2020 तक किया जाना था, और जनसंख्या की गणना 9 फरवरी से 28 फरवरी, 2021 तक
की जानी थी, जिसमें 1 से 5 मार्च, 2021 तक संशोधन का समय तय किया गया था। परंतु महामारी के कारण
ऐसा नहीं हो सका। अब जारी की गई नई रिपोर्ट के अनुसार 2022-23 के दौरान जनसांख्यिकी, धर्म, एससी
और एसटी आबादी, भाषा, साक्षरता और शिक्षा, आर्थिक गतिविधि, प्रवास और प्रजनन क्षमता पर भी
जनगणना कार्य किया जाएगा। जिसके लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 8,754.23 करोड़ रुपये और एनपीआर को
अपडेट करने के लिए 3,941.35 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। हालाकि अभी भी पासा कोरोना वायरस के पक्ष में
हैं और हम सभी जानते है कि यह कितना शक्तिशाली है।
संदर्भ
https://bit.ly/3cAhajQ
https://bit.ly/3iy7uKB
https://bit.ly/3zpPBDB
https://bit.ly/3cCOLtw
https://bit.ly/2SvlolV
https://bit.ly/3zoNsIz
चित्र संदर्भ
1. भारत की जनगणना 2011 का एक चित्रण (flickr)
2. 2020 में भारत का जनसंख्या पिरामिड का एक चित्रण (wikimedia)
3. प्रति दशक भारत की बढ़ती जनसँख्या दर का एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.