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रबीन्द्रनाथ टैगोर इतिहास के उन महान शख्सियतों में से एक हैं जिन्होंने कला के हर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व जमाया है। आज अनेक ऐसे लेखक हैं जो उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, कई लोगों के लिए वे एक महान दार्शनिक हैं। और ऐसे ही न जाने कितने हुनर यह एक इंसान अपने भीतर समाये हुए थे। आज हम उनके कला क्षेत्र से जुड़े तथ्यों को जानेगे और एक चित्रकार के रूप में उनके व्यक्तित्व को समझेंगे।
रबीन्द्रनाथ का जन्म कलकत्ता के एक धनी ब्राह्मण परिवार में हुआ। अपनी रचनात्मक तथा उत्कृष्ट रचनाओं के बलबूते वह अपने समय के सबसे प्रतिष्ठित कवि तथा दार्शनिकों में से एक बन गए। एक रचनात्मक कवि, लेखक, नाटककार और कलाकार के रूप में उनका साहित्य जगत को दिया गया योगदान अभूतपूर्व था। 1913 में वे पहले ऐसे गैर पश्चिमी व्यक्ति बने जिन्हे अपनी रचनात्मक कृतियों के एवज में नोबेल पुरस्कार दिया गया।
परन्तु 1930 के बाद अपनी पाण्डुलिपियों में खुद ही चित्रकारी करना उनका जुनून बन गया। चित्रकारी के क्षेत्र में उनकी शुरुआत अपने लेखों में छोटी-छोटी लाइनों को खींचने से हुई। धीरे-धीरे समय के साथ यह छोटी लाइनें अनूठी चित्रकारियों में परिवर्तित होने लगी। जीवन के अंतिम 17 वर्षों में, रबीन्द्रनाथ टैगोर ने 2,500 से अधिक कलाकृतियां बनाईं। वर्तमान में इनमें से कई कलाकृतियां दिल्ली स्थित नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट(National Gallery of Modern Art) और शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय में देखने को मिल जाएगी। अन्य कई देशों में निजी संग्रहकर्ताओं और संग्रहालयों में सजाई गई हैं।
एक लेखक के रूप में, उन्होंने अपनी कलात्मकता में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उन्होंने भावना और सार के साथ मनुष्य की उपस्थिति को जोड़ दिया। यह इतना खास था कि इसे दुनिया भर में उनके लेखन के साथ प्रसारित किया गया था। टैगोर द्वारा बनाए गए मानवीय चेहरों से मनुष्य के विभिन्न मनोदशाओं जैसे उदासी, रहस्य, खतरनाक, मधुर और प्रेमपूर्ण का पता चलता है । उनकी अधिकांश कृतियों में उदासी को प्रमुखता से चित्रित किया गया है। उनके जीवन में कई व्यक्तिगत हानियाँ हुई, वह अभी एक बालक ही थे की उनकी मां का स्वर्गवास हो गया। उनके बचपन के मित्र, और साहित्य साथी, कादम्बरी देवी ने आत्महत्या कर ली। 1902 और 1907 के बीच के वर्षों में, उनकी पत्नी, बेटी और सबसे छोटे बेटे की मृत्यु ने उन्हें बेहद गहरा आघात दिया। टैगोर गहन रंगों के प्रयोग से देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उनकी प्रत्येक कलाकारी एक तरह की भावना को व्यक्त करती हैं। गुजरते समय के साथ उनके चित्रों की सराहना करने वालों की संख्या बढ़ती गई। और तत्कालीन समाज में उनके कामो को बेहद सराहा गया। इनकी लोकप्रियता इस स्तर तक बड़ी की 1976 में भारत सरकार ने उनके 'कलात्मक और सौंदर्य" पूर्ण कलाकृतियों को राष्ट्रीय खजाना घोषित कर दिया, और देश के बाहर उनकी रचनाओं के निर्यात पर रोक लगा दी। टैगोर ने 63 साल की उम्र में चित्रकारी करना शुरू किया था, वास्तव में, उन्होंने खुद अपनी कला को "बुढ़ापे के प्रसंग" कहा था। दिलचस्प बात यह है कि उनकी कलात्मक रचनात्मकता उनके लेखन के समान ही वास्तविकता प्रदर्शित करती थी। अपनी कलात्मक रचनाओं के पहले चरण में, टैगोर ने जानवरों और काल्पनिक जीवों का निर्माण किया। भले ही टैगोर ने चित्रकारी अपेक्षाकृत देरी से शुरू की फिर भी उन्होंने हजारों कलाकृतियों का निर्माण किया और 1930 में, यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने कामों का प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय कलाकार बने। अन्य कलाकारों के विपरीत, टैगोर ने पेंटिंग के लिए कैनवास के बजाय कागज चुना, दर्शक आज भी उनकी कला को देखने और समझने के लिए उत्साहित रहते हैं। उनकी चित्रकला शैली बहुत ही व्यक्तिगत थी। वे कृतियां लयबद्ध और रहस्यमयी थी, जिन्होंने समय के साथ कितने ही लोगों को प्रेरित किया।
यद्यपि वे एक कलाकार के रूप में अप्रशिक्षित थे। जब वे बच्चे थे तब उन्हें घर में अकेला छोड़ा जाने पर वह अपने घर की खिड़कियों से प्रकर्ति के मूल-मूल को अवशोषित कर लेते। जिसे बाद में उनके द्वारा बनाई गयी तस्वीरों में चित्रित किया गया था। सूर्योदय से पहले उठना और सुबह की धुंध से लिपटी दुनिया को देखना भी उनका पसंदीदा शौक था उनकी अनेक कृतियों में अक्सर शाम की रोशनी में नहाए हुए प्रकृति के दर्शन भी हो जाते हैं। रवींद्रनाथ ने अपनी कई चित्रकलाओं को यह सोचकर कोई नाम न दिया की दर्शक अपने अनुसार चित्र के सन्देश को ग्रहण करें और उसे अपने अनुसार संदर्भित करे।
संदर्भ
● https://bit.ly/3tn8x1F
● https://bit.ly/3eXcUvb
● https://bit.ly/3tvaN7i
चित्र संदर्भ
1. रबीन्द्रनाथ टैगोर का एक चित्रण (Wikimedia)
2. रबीन्द्रनाथ टैगोर चित्रकारी का एक चित्रण (Wikimedia)
2. अभिन्द्रनाथ टैगोर चित्रकारी का एक चित्रण (Wikimedia)
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