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जैसा की हम जानते ही हैं कि भारत, तीन तरफ से समुद्र से घिरा एक विशाल प्रायद्वीप है। भारत के कुल व्यापार में एक प्रमुख हिस्सा समुद्री मार्ग के जरिए होता है। समुद्री रास्तों, नए बंदरगाहों और समुद्री सामरिक नीति के जरिये अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना ही ब्लू इकोनॉमी (Blue Economy) कहलाता है। तो चलिये जानते हैं इसके बारे में और भी रोचक जानकारी।
जैसा की हम जानते है कि दुनिया में पाए जाने वाले 120 स्तनपायी जीवों की 30 प्रजातियाँ भारतीय उपमहाद्वीप के जल में पायी जाती हैं। समुद्री स्तनधारी मुख्य रूप से जलीय स्तनधारी होते हैं। ये समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र या जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहने वाले होते हैं। इनमें यदि देखा जाए तो सील, व्हेल, समुद्री ऊदबिलाव और ध्रुवीय भालू आदि हैं। समुद्री स्तनपायी प्रजातियों के बीच एक जलीय जीवन शैली काफी भिन्न होती है। इनमें से कई स्तनधारी समय जल में ही बिताते हैं परन्तु मैटिंग और ब्रीडिंग (mating and breeding) के समय वे जमीन पर लौट जाते हैं जैसे कि सील (seal) और सी लायन (sea lion)। वहीँ ऊदबिलाव और ध्रुवीय भालू पूर्ण रूप से जल पर आश्रित होते हैं लेकिन वे जमीन पर रहना पसंद करते हैं और कई पूरी तरह से जलीय हैं। जमीन पर पाए जाने वाले स्तनधारियों से पानी में पाए जाने वाले स्तनधारियों की संख्या अत्यंत ही कम है।वर्तमान समय में मनुष्यों के ज्यादा समुद्र और पर्यावरण में हस्तक्षेप के कारण करीब 23 फीसद जलीय स्तनधारियों की प्रजाति को खतरा है। पहले समुद्री स्तनधारियों को भोजन और अन्य संसाधनों के लिए बड़ी संख्या में मारा जाता था जो की आज भी प्रचलित है। वहीँ वाणिज्यिक उद्योग के लिए भी इनका शिकार बड़ी संख्या में किया गया था।जैसा की इन स्तनधारियों का आकार वृहत होता है तो काफी हद तक ये समुद्र में बढ़ते हुए यातायात की वजह से भी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
विभिन्न पर्यावरण के दुष्प्रभावों के कारण भी इनकी संख्या कम हो रही है जैसे की ध्रुवीय भालू को देखा जा सकता है।
2011 के एक अध्ययन ने संकटग्रस्त प्रजातियों पर सबका ध्यान आकर्षित किया इस अध्ययन में तीन समुद्री स्तनपायी प्रजातियों को शामिल किया गया था: उत्तरी अटलांटिक राइट व्हेल (North Atlantic right whale), उत्तरी प्रशांत राइट व्हेल (North Pacific right whale)और हवाई मॉन्क सील (Hawaiian monk seal)। ये सभी गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियां हैं जो अमेरिकी जल में पाई जाती हैं। ये जीव तटीय समुदायों की आर्थिक जरूरतों और मूल्यों के साथ समुद्री प्रजातियों के संरक्षण की लागत और लाभों को संतुलित करने में महत्वपूर्ण हैं। समुद्री स्तनधारियों के आर्थिक प्रभाव और मूल्य को ध्यान में रखते हुए, इनके प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन और सार्वजनिक नीति में सुधार की आवश्यकता है, जो अंततः समुद्री स्तनपायी संरक्षण को लाभान्वित करें।
वर्तमान में भारत में इनके संरक्षण की तत्काल आवश्यकता है, क्योंकि ये समुद्री जीव ही भारत के4 मिलियन से अधिक मछुआरों और तटीय समुदायों की आजीविका का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, देश की 7,517 किमी लंबी तटीय रेखा नौ तटीय राज्यों और 1,382 द्वीपों का घर है। भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह और 187 अन्य बंदरगाह हैं, जहां हर साल लगभग 1,400 मिलियन टन कार्गो का प्रबंधन होता हैं, क्योंकि भारत का 95% व्यापार समुद्र मार्गों द्वारा किया जाताहै। भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों के साथ-साथ जीवित और निर्जीव संसाधनों का एक विशाल भंडार मौजूद है। साथ ही साथ व्हेल और डॉल्फ़िन सहित कई समुद्री वन्यजीव प्रजातियाँ पर्यटन और संबंधित उद्योगों के लिए आर्थिक विकास के महत्वपूर्ण चालक हैं। ये जीव पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण हैं, माना जाता है, इसमें जलीय कृषि और मत्स्य पालन की तुलना में अधिक राजस्व प्राप्त होता है। यह पर्यटन वर्तमान काल में एक बेहतर उद्योग के रूप में निकल कर सामने आ रहा है। इसमें चार्टर फिशिंग बोट यात्रा (charter fishing boat operators), समुद्री कश्ती पर्यटन (sea kayak tour guides), स्कूबा डाइविंग (scuba diving) और बड़ी स्तनधारियों और जलीय जीवों को देखने का व्यवसाय शामिल है। पिछले दो दशकों में, यह समुद्री पर्यटन काफी हद तक बढ़ गया है और दुनिया भर में लाभदायक उद्योग बन गया है।
2008 में इंटरनेशनल फंड फॉर एनिमल वेलफेयर (International Fund for Animal Welfare) ने इस व्यवसाय का मूल्य 2.1 बिलियन अमेरीकी डॉलर (2.1 billion) आंका था।भारत में भी बड़ी संख्या में ये स्तनधारी पाए जाते हैं जो की यहाँ पर पर्यटन का सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं। भारत भी समुद्री विविधिताओं से भरा हुआ है अतः यहाँ पर इस व्यापार से एक बड़ी आर्थिक मजबूती प्राप्त हो सकती है। इस लिये भारत ने ब्लू इकोनॉमी निति को अपनाया है। ‘ब्लू इकॉनमी’ निति देश में उपलब्ध समुद्री संसाधनों के उपयोग के लिए भारत सरकार द्वारा अपनायी जा सकने वाली दृष्टि और रणनीति को रेखांकित करता है। वहीं, इसका उद्देश्य भारत के जीडीपी में ‘ब्लू इकॉनमी’ के योगदान को बढ़ावा देना, तटीय समुदायों के जीवन में सुधार करना, समुद्री जैव विविधता का संरक्षण करना और समुद्री क्षेत्रों और संसाधनों की राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखना भी है।
भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (ministry of earth sciences) द्वारा जारी नीति के एक मसौदे के अनुसार, देश एक ब्लू इकोनॉमी नीति पर काम कर रहा है, जिसमें नवीन वित्तपोषण और व्यावसायिक मॉडल के माध्यम से द्वीप पर्यटन, समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी, गहरे समुद्र में खनन और समुद्र ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने की योजना है।यह देश की जीडीपी को बढ़ाने में भी सक्षम हो सकती है। इसलिए भारत की ब्लू इकोनॉमी का मसौदा आर्थिक विकास और कल्याण के लिए देश की क्षमता को गति देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
हिंद महासागर क्षेत्र में संसाधनों के साथ जलीय जीव भी प्रचुर मात्रा में हैं। यहां मत्स्य पालन, जलीय कृषि, महासागरीय ऊर्जा, समुद्रखनन और खनिजों के क्षेत्र में विशेष रूप से जबरदस्त आर्थिक अवसर प्रदान करता है।इन संसाधनों में, मत्स्य पालन और खनिज सबसे अधिक व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य उद्योग हैं।
आंकडों को देखे तो,हिंद महासागर में1950 में मछली उत्पादन 861,000 टन था जो 2010 में बढ़कर11.5 मिलियन टन हो गया था। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) (United Nations Food and Agriculture Organization-FAO) की रिपोर्ट में कहा गया है कि जब अन्य विश्व महासागरों के कुछ क्षेत्र अपनी मत्स्य सीमा को पार कर रहे होंगं, तब भारतीय महासागर के संसाधनों में वृद्धि को बनाए रखने की क्षमता होगी।देश में यह ब्लू इकोनॉमी का विकास 2032 तक 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (10 trillion) इकोनॉमी बनने की दृष्टि को साकार करने में एक विकास उत्प्रेरक के रूप में काम कर सकता है। हिंद महासागर क्षेत्र भी देश के लिए जबरदस्त व्यापार क्षमता प्रस्तुत करता है।इस क्षेत्र मे वृद्धि के लिये सागरमाला परियोजना शिपिंग मंत्रालय (Ministry of Shipping) द्वारा प्रारंभ की गई योजना है जो बंदरगाहों के आधुनिकीकरण से संबंधित है।यह परियोजना बंदरगाह के आधुनिकीकरण और समुद्री संसाधनों, आधुनिक मत्स्य पालन तकनीकों तथा तटीय पर्यटन के सतत् उपयोग के माध्यम से तटीय समुदायों और लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करती है।महासागर मानव के लिये एक संपदा के भंडार होते हैं जिनका उपयोग मानव प्राचीन समय से ही करता रहा है। वर्तमान में भी विभिन्न देश महासागरीय संसाधनों का उपयोग अपनी अर्थव्यवस्था को बल देने के लिये कर रहे हैं। भारत भी नीली अर्थव्यवस्था की अवधारणा पर बल दे रहा है ताकि महासागरीय संसाधनों का उचित उपयोग किया जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/3dQscT1
https://bit.ly/3eujKs0
https://bit.ly/3tYSMPC
https://bit.ly/3vlUOJT
https://bit.ly/3tV5TkW
https://bit.ly/2Oc2Cv3
https://bit.ly/3sQcICR
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