प्लांटक्रैपर्स (Plantscrapers)- भविष्य के लिए खाद्य संकट से निपटने का प्रभावशाली उपाय

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प्लांटक्रैपर्स (Plantscrapers)- भविष्य के लिए खाद्य संकट से निपटने का प्रभावशाली उपाय
आज के युग में मनुष्य जैसे-जैसे आधुनिक और आरामदायक जीवन की ओर अग्रसर हो रहा है वैसे-वैसे मानवता पर संकट की स्थिति पैदा हो रही है। सबसे मुख्य संकट है जनसंख्या विस्फोट। दिन-प्रतिदिन पूरे विश्व की जनसंख्या इतनी तेजी से बढ़ती जा रही है कि वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर मनुष्य के रहने के लिए न तो स्थान शेष बचेगा न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध हो सकेगा। ऐसे में यह आवश्यक है कि इस समस्या का उचित समाधान खोजा जाए। वर्तमान समय में विश्व की आबादी लगभग 9.6 बिलियन के निकट पहुँच गई है और इसमें से लगभग 66% आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए पर्याप्त भोजन मुहैया कराने के लिए खेती के उन्नत तरीकों पर ध्यान केंद्रित करना अति आवश्यक है। एक स्वीडिश फूड-टेक कंपनी (Swedish food-tech company) प्लैंटागन (Plantagon) ने इमारत के अंदर ही खेती करने की अवधारणा को विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया है जिसे प्लांटक्रैपर्स (Plantscrapers) कहा जाता है। यह बाढ़ के खतरों को कम करने में मदद करता है। साथ ही हवा की गुणवत्ता को सुधारने का भी प्रभावी तरीका है। इनडोर फार्मिंग (Indoor Farming) का विचार विश्व को आने वाले संभावित खाद्य संकट से बचाने का महत्वपूर्ण उपाय है और वर्तमान में कई देश इसे अपना चुके हैं। प्लांटक्रैपर्स में पौधों को हाइड्रोपोनिक (Hydroponic) तरीके से उगाया जाता है जिसका अर्थ है बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतों में पानी आधारित घोल का उपयोग कर बिना किसी मिट्टी के पोषक तत्वों से भरपूर पौधों की खेती करना। इस प्रकार की इमारतें खेती के उपरांत साल में लगभग 5000 लोगों को भोजन प्रदान करने में सक्षम हो सकेंगी। कृषि, प्रौद्योगिकी और वास्तुकला के इस संयोजन को एक नए नाम “एग्रीटेक्चर (Agritecture)” से संबोधित किया गया है। प्लैंटागन कंपनी का उद्देश्य खेतों को मौजूदा शहर के बुनियादी ढांचे में एकीकृत करके बड़े पैमाने पर उच्च घनत्व वाले शहरों में खाद्य उत्पादन को स्थानांतरित करना था। कंपनी वर्ष 2025 तक सम्पूर्ण विश्व में $ 9.9 बिलियन की लागत के साथ इंडोर खेती (Indoor Farming) को बढ़ावा देना चाहती है। जिसके लिए प्रौद्योगिकी और वास्तुकला के संयोजन से कृषि को कार्यालय की इमारतों, टॉवर, भूमिगत पार्किंग गैरेज (Underground Parking Garage) आदि स्थानों पर करने की योजना बनाई गई है।
ऊर्ध्वाधर खेती (Vertical Farming)
वर्ष 1915 में सर्वप्रथम, गिल्बर्ट एलिस बेली (Gilbert Ellis Bailey) ने "वर्टिकल फार्मिंग" शब्द का प्रयोग अपनी एक पुस्तक "वर्टिकल फार्मिंग" में किया था। तत्पश्चात वर्ष 1999 में कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में सार्वजनिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के प्रोफेसर डिक्सन डेस्पोमिएरिन (Dickson Despommierin) द्वारा ऊर्ध्वाधर खेती की आधुनिक अवधारणा प्रस्तुत की गई थी। फसलों को खड़ी-खड़ी पंक्तियों में उगाना ऊर्ध्वाधर खेती कहलाता है। इसका उद्देश्य कम स्थान पर खेती की उन्नत फसलों का उत्पादन करना है। इस प्रक्रिया में उच्च तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics), एक्वापोनिक्स (Aquaponics) और एरोपोनिक्स (Aeroponics) का प्रयोग किया जाता है। वर्ष 2020 तक विश्व में लगभग 30 हेक्टेयर (74 एकड़) क्षेत्र में ऊर्ध्वाधर खेत की गई है। यह फसलें घरों और इमारतों के अंदर उगाई जाती हैं इसलिए खराब मौसम से सुरक्षित रहती हैं। इमारतों के अलावा ऊर्ध्वाधर खेती के लिए शिपिंग कंटेनरों कों पुन: प्रयोग करके खेतीयोग्य बनाया जाता है। इसका एक जीवंत उदाहरण सिडनी (Sydney) का एक सेंट्रल पार्क (Central Park) है जहाँ ब्रॉडवे (Broadway) पर टावरों (Towers) के उत्तर और पश्चिम में 40,000 स्वदेशी पौधों का का उत्पादन किया गया है। जिसका उद्देश्य वायु प्रदूषण से लड़ना, ऊर्जा की लागत को कम करना और शहर को सौर और भू-तापीय ऊर्जा के संयोजन के माध्यम से ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाना है। हालाँकि ऊर्ध्वाधर खेती की लागत अपेक्षाकृत अधिक होती है किंतु इसके लाभों के बारे में गौर करें तो मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह भविष्य के लिए एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय सिद्ध हो सकता है।
ऊर्ध्वाधर खेती के लाभ:
1. इसका सबसे प्रमुख लाभ यह है कि सीमित स्थान पर उन्नत खेती संभव हो सकती है और इमारतों को कई लोगों के लिए वर्षभर भोजन उपलब्ध कराने का माध्यम बनाया जा सकता है।
2. ऊर्ध्वाधर खेती में पारंपरिक खेती की तुलना में 70% से 95% तक कम पानी का उपयोग किया जाता है। इससे पानी की बचत की जा सकती है और उसे किसी और उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
3. भारी बारिश, बाढ़, ओलावृष्टि और बर्फबारी, सूखा, अत्यधिक उच्च तापमान, कीटों और बीमारियों से फैली महामारियों आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण सालभर कई फसलें बरबाद हो जाती हैं, परंतु ऊर्ध्वाधर खेती जो इमारतों के अंदर होती है, से इन आपदाओं से फसलों को बचाया जा सकता है और वर्षभर फसलों का उत्पादन करना संभव हो सकता है।
4. यह ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में खाद्यान्नों के हस्तांतरण के लिए परिवहन पर होने वाले खर्च और ईंधन की खपत को कम करने का बेहतर उपाय है।
5. इस खेती में 90% तक कम या बिल्कुल भी मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है जिससे कीट और बीमारी फसलों से दूर रहती है।
6. सामान्य खेती की तुलना में ऊर्ध्वाधर खेती में प्रति यूनिट लगभग 80% अधिक फसल उगाई जा सकती है।
7. शहरी क्षेत्रों में हरियाली को बढ़ावा देने का यह एक प्रभावशाली तरीका है।
8. ऊर्ध्वाधर खेती से विश्वभर में बढ़ते तापमान और वायु प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।

सब्जियों, फलों और कई अन्य कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के नाते भारत में ऊर्ध्वाधर खेती एक बेहतर विकल्प सिद्ध हो सकता है। नादिया में बिधान चंद्र कृषि विश्वद्यालय ने बैंगन और टमाटर की सफलतापूर्वक खेती की है। साथ ही पंजाब ने ऊर्ध्वाधर खेती के माध्यम से आलू कंद का उत्पादन किया है। देश के बड़े शहरों जैसे नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में भी बहुमंजिला इमारतों पर उच्च गुणवत्ता वाली फसलों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है।जो कि भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए पोषक तत्वों से भरपूर भोजन उपलब्ध कराने में मददगार सिद्ध होगी।
संदर्भ:
https://bit.ly/3q8DWEa
https://bit.ly/3q8z0iy
https://bit.ly/2Z1Ehg7
https://bit.ly/3jzB4xA
https://bit.ly/3cYq8Zq
https://bit.ly/2N79zzr
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर ऊर्ध्वाधर खेत दिखाती है। (प्रारंग)
दूसरी तस्वीर प्लैंटागन को दिखाती है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर इनडोर हाइड्रोपोनिक्स को दर्शाती है। (विकिमीडिया)
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