‘अगले 5 सालों के भीतर कैंसर का नाम घातक बीमारियों की सूची से नदारद हो जाएगा’- यह भरोसा अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति विलियम हार्वर्ड (William Howard) को 1910 में ग्रेटवीक प्रयोगशाला (Gratwick Laboratory) के वैज्ञानिकों ने दिया था। यह प्रयोगशाला आजकल रोजवेल पार्क कंप्रिहेंसिव कैंसर सेंटर (Roswell Park Comprehensive Cancer Center) के नाम से जानी जाती है। एक शताब्दी से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद यह सवाल जेहन में उठना लाजमी है कि क्यों कैंसर के उन्मूलन में इतना वक्त लग रहा है इस बारे में कुछ तथ्य ऐसे हैं जो हमें एक शताब्दी पहले नहीं पता था।
कैंसर बीमारी ना होकर, सैकड़ों बीमारियों का मिलाजुला रूप है। यह हर एक व्यक्ति में अलग होती है। जायसी ओहम (Joyce Ohm) एक शोध वैज्ञानिक का कहना है कि स्तन कैंसर से पीड़ित दोनों बहनें एक जैसी हैं। हो सकता वे दोनों बिलकुल एक ही आनुवंशिक उत्परिवर्तन (genetic mutations) के साथ पैदा हुए हैं, लेकिन एक चिकित्सा का असर दिखाता है और एक नहीं। एक जी सकता है और एक मर सकता है। डीएनए परिवर्तनों के कारण कैंसर कोशिकाएं बहुत तेजी से बढ़ती हैं और फोड़े का रूप ले लेती है। डीएनए परिवर्तन और तीव्रता से बढ़ते है जब तक की सारी कोशिकाएं एक दूसरे से भिन्न नहीं हो जाती, यहां तक कि उस मूल कोशिका से भी अलग हो जाती हैं जिससे वह पैदा हुई। संक्षेप में इसी तरह समझा जा सकता है कि फोड़े का डीएनए रोगी के डीएनए से अलग होता है और जाहिर है ऐसे में अगर कोई रोगी जुड़वा भी है, तो उसके डीएनए से भी उसका मिलान नहीं होगा।
बहुत से फोड़े में एक से ज्यादा तरह की कैंसर कोशिकाएं होती हैं। अंडाशय कैंसर, गुर्दे के कैंसर, स्तन कैंसर, क्रॉनिक ल्यूकेमिया ऐसे ही कुछ उदाहरण है। अगर 99% कोशिकाएं इलाज को स्वीकार करें लेकिन 1% प्रतिक्रिया ना करें तो इससे भी फोड़ा फिर से बन जाता है। इसके उपचार के लिए अलग-अलग प्रणालियों को एक साथ प्रयोग किया जाता है।
कैंसर कोशिकाओं में बराबर परिवर्तन के कारण उनके इलाज में भी बराबर बदलाव करना पड़ता है।
शरीर की एक कोशिका अगर असामान्य हो जाती है तो वह अपॉप्टोसिस प्रक्रिया से नष्ट होकर अनेक कैंसर कोशिकाओं में बदल जाती है। कैंसर कोशिकाएं हर हाल में जीवित रहने में सक्षम होती हैं । वह इलाज से खुद का बचाव करने में भी माहिर होती हैं।
क्या कभी कैंसर से छुटकारा मिलेगा?
कैंसर को काबू में करने की तकनीक बहुत धीमी है। तमाम प्रगति के बावजूद मरीज का इलाज का प्रभाव बहुत समय लेता है। चिन्हों मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। बीमारी ना होने पाए, इसके उपाय पहले से किए जा सकते हैं। तकनीकी खोज 2003 में हुई थी। इसने कैंसर क्षेत्र में शोध कर रहे वैज्ञानिकों को 291 जींस की पहचान करवाई जो कैंसर से जुड़े होते हैं। इसके माध्यम से genomic में विश्लेषण करके उसका मिलानमरीज के डीएनए से करवा कर यह पता लगाना संभव हुआ कि कैंसर ग्रस्त भाग पर कौन सी चिकित्सा ज्यादा असरदार होगी। कैंसर से लड़ने के वैकल्पिक औजार मिल चुके हैं। लेकिन अभी भी अग्न्याशय, यकृत के कैंसर और ग्लियोब्लास्टोमा चुनौती बन कर खड़े हुए हैं। आज कैंसर से लड़ाई जीत कर जीने वालों की संख्या बराबर बढ़ रही है, जो 5 साल पहले संभव नहीं थी।
शुरुआत में पहचान कारगर
हर साल लाखों भारतीय कैंसर की खबर से बर्बाद हो जाते हैं। औसतन 13 सौ से अधिक भारतीय हर दिन इस बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। 2020 तक इनके 25% बढ़ने की आशंका थी। इस मामले में एक अच्छी खबर यह है कि अगर शुरुआत में ही रोग का पता चल जाए तो इसका इलाज भी हो सकता है और मरीज स्वस्थ जीवन भी जी सकता है।
भारत में कैंसर की स्थिति
भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या हर साल बढ़ रही है विश्व में गर्भाशय, पित्ताशय, पेट संबंधी कैंसर की सबसे ज्यादा दर भारत में पाई गई है।
किन को ज्यादा खतरा है?
यह पता करना बहुत मुश्किल है कि क्यों एक को कैंसर होता है दूसरे को नहीं पूरा कुछ चीजों पर मनुष्य का नियंत्रण नहीं होता जैसे की उम्र और पारिवारिक इतिहास। धूम्रपान, बढ़ा वजन , व्यायाम न करना, सेहतमंद खुराक ना लेना कैंसर को बढ़ावा देते हैं । ज्यादातर भारतीय इलाज शुरू करने में देरी करते हैं। जब उन्हें स्क्रीनिंग या बायोप्सी कराने को कहा जाता है तो वह डॉक्टर बदल देते हैं। कैंसर से बचाव और उसके इलाज की पूरी जानकारी के अभाव में मरीज और उसके परिवार के लोग विशेषज्ञ से इलाज नहीं कराते क्योंकि वह मानते हैं कि कैंसर से मौत निश्चित है। केरल में इस क्षेत्र में जागरूकता के कारण 40% केस पहले से पहचान लिए गए और वहां कैंसर से मृत्यु दर काफी कम है।
युवीकैन (youwecan)
क्रिकेटर युवराज सिंह जिन्होंने कैंसर को मात दी उनके द्वारा
युवराज सिंह फाउंडेशन, एक पहल है जो कैंसर से बचाव के लिए लोगों को जागरूक कर रही है।
कोविड-19 का कैंसर पीड़ितों पर प्रभाव
कैंसर पीड़ित कोविड-19 के लिए ज्यादा संवेदनशील होते हैं। अस्पतालों में इलाज ऑपरेशन की सुविधा ना मिल पाना भी उनकी समस्याएं बढ़ाता है। कैंसर शोध के क्षेत्र में भी बाधा का बहुत बड़ा कारण बना है यह कोविड-19। अस्पताल के मरीजों पर लगी हुई है ।
भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या अधिक है तो दूसरी तरफ यह भी सच है कि भारत में स्थित कैंसर अस्पतालों में विश्व स्तर का इलाज उपलब्ध है जो कुछ भी कैंसर रोगी के लिए इलाज वैश्विक स्तर पर हो रहा है, वे सेवाएं हम यहां दे रहे हैं- यह मानना है डॉक्टर आर. बिडवे का जो टाटा मेमोरियल रिसर्च सेंटर के निदेशक हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3opNgBX
https://clincancerres.aacrjournals.org/content/26/22/5809
https://www.roswellpark.org/cancertalk/201909/cure-cancer-whats-taking-so-long
https://www.thebetterindia.com/74188/cancer-awareness-india/
https://bit.ly/2YnGguP
https://bit.ly/3prqF9q
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर कैंसर के साथ एक बच्चे को दिखाती है। (unsplash)
दूसरी तस्वीर में कैंसर के मरीज को दिखाया गया है। (unsplash)
तीसरी तस्वीर फेफड़ों पर कैंसर के विकास का एक एक्स-रे दिखाती है। (unsplash)