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हस्तिनापुर, जिला मेरठ से 37 किमी की दूरी पर स्थित है। यह राज्य शाही संघर्षों और महाभारत के पांडवों तथा कौरवों की रियासतों का सक्षात गवाह रहा है। हिंदु श्रद्धालुओं के अतिरिक्त हस्तिनापुर जैन श्रद्धालुओं के लिए भी काफी प्रख्यात है। हस्तिनापुर को जैन धर्म के श्रद्धालुओं के मध्य एक महान तीर्थ केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। वास्तुकला के विभिन्न अद्भुत उदाहरण एवं जैन धर्म के विभिन्न मान्यताओं के केंद्र भी यहां पर भ्रमण योग्य हैं, जैसे श्वेतांबर जैन मंदिर, जम्बुद्वीप जैन मंदिर, अस्तपद जैन मंदिर, प्राचीन दिगंबर जैन मंदिर एवं श्री कैलाश पर्वत जैन मंदिर आदि। दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, शहर में सबसे पुराना जैन मंदिर है। यह मंदिर 16 वें जैन तीर्थंकर शांतिनाथ (Shantinatha) को समर्पित है। माना जाता है कि हस्तिनापुर क्रमशः 16 वीं, 17 वीं और 18 वीं के तीर्थंकरों शांतिनाथ, कुंथुनाथ (Kunthunatha) और अरनाथ (Aranatha) की जन्मभूमि है। जैन समुदायों का तो यह भी मानना है कि हस्तिनापुर में ही पहले तीर्थंकर, ऋषभनाथ (Rishabhanatha) ने अपनी 13 महीने की लंबी तपस्या को राजा श्रेयांस से प्राप्त गन्ने के रस द्वारा समाप्त किया था। दिगंबर जैन बड़ा मंदिर का निर्माण निर्माण 1801 ई. में राजा हरसुख राय (Raja Harsukh Rai) जो कि शाह आलम (Shah Alam) द्वितीय के कोषाध्यक्ष थे, के संरक्षण में हुआ था। इस मंदिर मुख्य शिखर जैन मंदिरों के एक समूह से घिरा हुआ है, जो विभिन्न तीर्थंकरों को समर्पित है, जिसे ज्यादातर 20 वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था। इस मंदिर के परिसर में त्रिमूर्ति मंदिर (Trimurti Mandir), नंदिश्वरद्वीप मंदिर (Nandishwardweep), सामवसरन रचना (Samavasarana Rachna) मंदिर, अम्बिका देवी मंदिर (Ambika Devi Temple) आदि हैं।
अम्बिका देवी मंदिर जैन सम्प्रदाय के दिगम्बर और श्वेतांबर दोनों परम्परा में प्रमुख देवी अम्बिका को समर्पित है। मंदिर में मुख्य देवी अम्बिका की मूर्ती के मस्तक पर श्री नेमिनाथ का रेखांकन किया गया है। यह मूर्ति पास की ही एक नहर से बरामद हुई थी। हिन्दू विश्वासों में देवी अम्बिका का स्थान शिव से कुछ कम नहीं है। अर्धनारीश्वर रूप में हम इन्हें शिव की समानता के पद पर पाते हैं। अंबिका देवी आमतौर पर आदि शक्ति या पार्वती के नाम से भी जानी जाती है, जो सदाशिव की पत्नी हैं। इनके अष्ट भुजाएं हैं जिनमें कई हथियार हैं। इन्हें सामान्यतः देवी दुर्गा, भगवती या चंडी के नाम से भी जाना जाता है। देवी का वाहन सिंह या बाघ हैं तथा ये असुर या दैत्य का वध करती हैं। यह ब्रह्मांड की माता होने के साथ-साथ सभी प्राणियों की भी माता है, इसलिये इनका 'अम्बिका' (अर्थात “माता”) नाम भी प्रतिनिधित्वसूचक ही है। स्कंद पुराण के अनुसार ये राक्षस शुम्भ और निशुंभ का वध करने के लिये देवी पार्वती के शरीर से प्रकट हुई थी। अम्बा, दुर्गा, भगवती, पार्वती, भवानी, अम्बे माँ, शेरावाली, माता रानी, चामुण्डा आदि उनके विविध गुणों के नाम हैं।
अम्बिका जैन सम्प्रदाय में एक प्रमुख देवी हैं। जिन्हें सुरक्षा की देवी, मातृत्व की देवी, कामना की देवी आदि रूपों में पूजा जाता है। जैन मंदिरो में अम्बिका को जैन तीर्थंकर नेमिनाथ (Neminatha) जी के साथ सम्बंधित किया जाता है, और इनको अनेक नामों से भी जाना जाता है जैसे कि अम्बा, अम्बिका, कुशमंदिनी, आम्र कुशमंदिनी, आदि। अम्बिका का शाब्दिक अर्थ होता है “माता” जिसके कारण ही इन्हें माता के रूप में पूजा जाता है और शायद इसी कारण से इनको अक्सर एक या दो बच्चों के साथ एक पेड़ के नीचे दिखाया जाता है। जैन परंपरा के अनुसार, उनका रंग सुनहरा है और इनकी चार भुजाएँ हैं जिसमें से एक भुजा में आम और दूसरी भुजा में आम के पेड़ की एक शाखा, तीसरी भुजा में एक लगाम या नियंत्रण करने वाला यंत्र और चौथी में उनके दो बेटे प्रियंकर (Priyankara) और शुभांकर (Shubhankara) हैं। दक्षिण भारत में इनको कभी-कभी गहरे नीले रंग में प्रदर्शित किया जाता है। इनको अक्सर पद्मावती और चक्रेश्वरी के साथ जैन तीर्थंकरों की सहायक देवी के रूप दर्शाया जाता है।
जैन ग्रंथों में अम्बिका से जुड़ी कई कथायें भी मिलती हैं जिनमें अम्बिका को प्रारम्भ में एक साधारण महिला के रूप में बताया गया है, जिसका नाम अग्निला था, वह अपने पति सोमसमरन (Somasarman) और अपने दो बच्चों प्रियंकर और शुभांकर के साथ गिरिनगर में रहती थी। एक दिन, इनके पती ने ब्राह्मणों को श्राद्ध करने के लिए आमंत्रित किया और अग्निला को घर पर छोड़ दिया। उसी समय नेमिनाथ के प्रमुख शिष्य वरदत्त, पास से गुजर रहे थे, उन्होनें अपना महीने भर का उपवास समाप्त करने के लिए अग्निला से भोजन मांगा। अग्निला के भोजन देने से उनके पती और ब्राह्मण उन पर क्रोधित हो गये क्योंकि उनके अनुसार अग्निला के जैन साधु को भोजन देने से भोजन अपवित्र हो गया, जो हिंदू ब्राह्मणों के लिए था। क्रोध में सोमसमरन ने अपने बच्चों के साथ अग्निला घर से निकाल दिया। वह एक पहाड़ी पर चले गई। अग्निला को अपने सद्गुणों के लिए देवताओं द्वारा शक्ति प्रदान की गई थी इसलिये जिस पेड़ के नीचे वे बैठी थी वह इच्छा-अनुदान देने वाला पेड़ यानी कल्पवृक्ष बन गया और सूखा कुआ में उनके स्पर्श से पानी भर गया। देवता अग्निला के साथ हुये इस व्यवहार से क्रोधित हो उठे, उन्होनें उस गाँव को डूबने का फैसला किया। यह देखने के बाद सोमसमरन और ब्राह्मणों ने महसूस किया कि उन्होनें गलत किया, वे पश्चाताप करते हुए क्षमा मांगने के लिए अग्निला के पास पहुचे। अग्निला ने जब अपने डरे और घबराये पती को देखा तो उन्होनें चट्टान से कूदकर आत्महत्या कर ली और उसके तुरंत बाद देवी अंबिका के रूप में उनका पुनर्जन्म हुआ और उनके पति का शेर के रूप में पुनर्जन्म हुआ जो उनका वाहन बना। नेमिनाथ ने उनके दो बेटों को दीक्षा दी और अम्बिका नेमिनाथ की यक्षिणी (yakshi) बन गई।
अम्बिका की पूजा अत्यंत प्राचीन है, यह श्वेताम्बर (Śvetāmbaras) दिगंबरों (Digambaras) के बीच सबसे लोकप्रिय जैन देवीओं में से एक है। इनको यक्ष पूजा के साथ-साथ कुल देवी या ग्राम देवी की परम्परा के साथ भी जोड़ा जाता हैं। इनकी अनेक मूर्तियाँ और मंदिर भी भारत में कई स्थानों पर हैं। श्वेताम्बर जैन इन्हें अम्बिका के रूप में पुजते है तो दिगंबर जैन कुशमंदिनी के रूप में। प्रत्येक संप्रदाय में इनकी अलग-अलग विशेषताओं को उजागर किया गया है, परंतु इन्हें आमतौर पर एक या दो बच्चों के साथ चित्रित किया जाता है। यह मातृत्व और बच्चों के साथ उनके जुड़ाव को रेखांकित करता है, इसलिये जैन समुदाय में बच्चे प्राप्ति के लिये भी उनकी पूजा की जाती हैं। इसके अलावा जैन परंपरा के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की सहायक देवी के रूप में इनकी सबसे ज़्यादा ख्याति हुई।
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