कोरोना काल में सर्कस कला का खतरे में पड़ता अस्तित्व

द्रिश्य 2- अभिनय कला
15-12-2020 11:07 AM
कोरोना काल में सर्कस कला का खतरे में पड़ता अस्तित्व

मनोरंजन एक ऐसी गतिविधि है जो मनुष्यों को अपने खाली समय बिताने या मजा करने, अपनी चिंताओं को दूर करने, और आनंद लेने या प्रसन्न करने की अनुमति देती है। इसका एक उदाहर्ण सर्कस (circus) है। एक सर्कस, जिसे प्रदर्शन कला के रूपों में से सबसे बहादुरी वाला रूप माना जाता है। यह एक विशेष प्रकार का नाटकीय प्रदर्शन है, जिसमें विभिन्न प्रकार के शारीरिक कौशल जैसे एक्रोबेटिक्स (acrobatics) और जगलिंग (juggling) आदि शामिल होते हैं। कुछ दशक पहले, सर्कस एक ऐसा इवेंट (event) होता था, जिसमें हर व्यक्ति, चाहे उसकी उम्र या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो, भाग लेने की इच्छा रखता था। मेरठ का ऐतिहासिक नौचंदी मेले में लगने वाला सर्कस भी यहां की शान है। इसमें खास बात है कि इसके कलाकार न केवल पारंपरिक बल्कि हैरतअंगेज करतब दिखाते बल्कि आग लगे हुए सर्किल में से निकलना, आंख पर पट्टी बांधकर निशाना लगाना, सिर पर फल रखकर चाकू से निशाने लगाना, जंपिंग, झूला व मौत का कुआं आदि का खेल भी दिखाते है। हालांकि आधुनिकता के दौर में काफी बदलाव हुआ है, परंतु नौचंदी मेले के सर्कस की आज भी खास पहचान है।
साहसी मोटरसाइकिल (Motorcycle) कृत्यों का प्रदर्शन, पोल और रस्सियों पर चलने वाले कलाकार, मसख़रे, विदूषक, जानवरों के करतब आदि का नाम सुन कर शायद आपको भी सर्कस के सबसे रोमांचक दिनों की याद आ गई होगी। पहले के दशकों में सर्कस एक भव्य तमाशा हुआ करता था जिसमें रिंगमास्टर (Ringmaster) द्वारा चाबुक से जंगली जानवरों को निर्देश दे कर परेड करवाई जाती थी, जिसमें बाघ, शेर, और दरियाई घोड़ा शामिल होते थे। उस समय शेर अपना मुंह चौड़ा करके खोलता था और एक रिंगमास्टर अपने सिर को शेर के मुंह में डाल दिया करता था, और लोग आश्चर्य से उसे बस देखते ही जाते थे। उन दिनों सर्कस एक लाभदायक व्यवसाय भी था। राजनेता जैसे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी और वी.के. कृष्णा मेनन इसके संरक्षक थे। इन्होनें मनोरंजन कर (entertainment tax) को समाप्त किया, रेलवे रियायतों की अनुमति देकर और मैदान के लिए किराए को कम करके सर्कस को बहुत सी सुविधायें प्रदान की थी। उन दिनों त्यौहारी सीज़न (season) के दौरान अलीगढ़, मेरठ और सोनीपत जैसी जगहों पर सर्कस के लोग डेरा डालते थे, वे हर दिन पांच से छह शो (show) करते थे। अपने शुरुआती दिनों में, सर्कस एक दुर्लभ तमाशा था जो शहरों में बहुत आनंद लाता था और गांवों में त्यौहारों के मौसम में एक अद्वितीय स्वाद जोड़ता था। लेकिन सर्कस में जनता की दिलचस्पी धीरे-धीरे कम होती गई और आज सरकार की ओर से बहुत कम समर्थन मिलता है। 2001 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा सर्कस में भालू, बंदर और बड़ी बिल्लियों के उपयोग पर सरकारी प्रतिबंध से सर्कस एक बड़ा आकर्षण भी खत्म हो गया। इस प्रतिबंध से सर्कस की मानों दुनिया ही बदल गई, टिकटों की बिकरी काफी कम हो गई, सर्कस कंपनी (company) चलाना और भी मुश्किल हो गया। 1990 में लगभग सर्कस की 300 कंपनियां थीं, जिनकी संख्या बाद में लगभग 30 पर आ गयी है। जानवरों की तरह ही सर्कस भी एक लुप्तप्राय प्रजाति बन गया। ग्रेट रेम्बो सर्कस (Great Rambo Circus) के मैनेजर (manager) दिलशाद का कहना है कि आज पिछले साल नौचंदी में उन्हें 80 लाख रुपये का नुकसान हुआ था, और सर्कस के कलाकार 200 से घटकर महज 40 रह गए हैं। पहले नौचंदी मेले में होने वाले सर्कस में जानवर ही मुख्य आकर्षण का केंद्र थे, ये काफी भीड़ को अपनी ओर इकठ्ठा करते थे, पहले मात्र एक हाथी की उपस्थिति भी सर्कस के लिए भारी भीड़ खींच लेती थी, परन्तु अब ऐसा कुछ नहीं होता है। सर्कस के मालिकों ने 1997 में जंगली जानवरों के उपयोग पर प्रतिबंध के कारण शो देखने के लिए आने वाले लोगों के आंकड़ों में तेजी से गिरावट के लिये केंद्र सरकार को दोषी ठहराया, परन्तु इस प्रतिबंध को 2001 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा गया। बाद में सर्कस के इन जानवरों को आगरा (Agra), बैंगलोर (Bangalore), भोपाल (Bhopal), चेन्नई (Chennai), जयपुर (Jaipur), तिरुपति (Tirupati), और विशाखापत्तनम (Visakhapatna) के पास सी जेड ए- मान्यता प्राप्त (CZA-accredited) पशु बचाव केंद्रों (animal rescue centres) में स्थानांतरित कर दिया गया। इस तरह सर्कस मालिक जानवरों को बेच भी नहीं सके। 15 नवंबर, 2013 को भारत के पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India) ने घोषणा की थी कि वह अब हाथियों को सर्कस में प्रदर्शन करने के लिए लाइसेंस नहीं देगा और बिना लाइसेंस वाले जानवरों का उपयोग करने वाले सर्कस मालिकों पर मुकदमा चलाएगा। वर्तमान में, भारत में बाघों और शेरों जैसी बड़ी बिल्लियों के उपयोग पर पहले से ही प्रतिबंध है, लेकिन अब सरकार घोड़ों, दरियाई घोड़ों, हाथियों यहां तक कि कुत्तों जैसे जानवरों पर भी प्रतिबंध लगाने की योजना बना रही है। एक रिपोर्ट (report) के अनुसार, हाल ही में जारी ड्राफ्ट नियमों में परफॉर्मिंग एनिमल्स (रजिस्ट्रेशन) अमेंडमेंट रूल्स (Performing Animals (Registration) Amendment Rules), 2018 के तहत प्रतिबंध प्रस्तावित है। यह ऐसे सभी जानवरों के उपयोग पर लागू होगा जो वर्तमान में सर्कस या प्रदर्शनियों में उपयोग किए जा रहे हैं। परंतु इस प्रतिबन्ध का एक सकारात्मक पहलू ये देखने को मिला कि सर्कसों का ध्यान अनिवार्य रूप से अविश्वसनीय मानव करतबों की प्रदर्शनी की ओर स्थानांतरित हो गया, जो मनुष्य की कल्पना के साथ बनाये जाते है और परम कौशल के साथ निष्पादित किये जाते है। अब सर्कसों को कई मानवीय करतबों की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। सर्कस में मानव द्वारा किए जाने वाले करतब जैसे कि रस्सी पर साइकल (Cycle) चलाना, नट कला, जोकर (Joker), ट्रेपीज़ (Trapeze), ट्रम्पोलिन (Trampoline) और छोटा सा मौत का कुंआ शामिल हैं। रेम्बो सर्कस भारत की उन कुछ सर्कस कंपनियों में से है जो प्रतिबंध के बाद इस चुनौती में खड़ा रह सका है। हालांकि पहले के जैसे सर्कस को देखने के लिए लोग नहीं आते हैं, लेकिन फिर भी चमकीले कपड़े पहने उत्साही कलाकार, जोकर, जिमनास्ट (Gymnast), और निशानेबाज अपना साहसी कौशल प्रदर्शित करते हैं। परंतु आज भी भारत में, सर्कस को न तो मान्यता प्राप्त है और न ही कलाकारों को उचित सम्मान दिया जाता है। अन्य देशों के विपरीत, जहां संस्कृति मंत्रालय के तहत सर्कस को मान्यता प्राप्त है, वहीं भारत में, इसे मनोरंजन के साधन के रूप में देखा जाता है। केवल केरल सरकार अपने कलाकारों को पेंशन के रूप में 3,000 रुपये का भुगतान करती है। इतना ही नहीं केरल सरकार ने 1901 में थालास्सेरी (Thalassery) में देश में पहली सर्कस अकादमी शुरू की, जिसमें कलरीपायट्टु (Kalaripayattu) और जिम्नास्टिक प्रशिक्षक केलरी कुन्हिकनन (Keeleri Kunhikannan) थे। इसके बाद 1950 के दशक में, एशिया के सबसे बड़े कमला थ्री रिंग सर्कस (Kamala Three Ring Circus) द्वारा सर्कस के लिए कॉलेज और छात्रों के छात्रावास का निर्माण किया गया था।
जानवरों पर प्रतिबंध के बाद कुछ कंपनियों ने नए दर्शकों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए नए तरीकों की तलाश शुरू कर दी है। कुणिकानन के प्रशिक्षण केंद्र ने कलारीपयट्टू (Kalaripayattu) जैसे भारतीय मार्शल आर्ट (Martial Art) के साथ थिएटर को जोड़कर सर्कस को एक साथ लाया। 2011 में नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा (National School of Drama) के छात्रों और ग्रैंड सर्कस के कलाकारों द्वारा क्लाउन एंड क्लाउड्स (Clowns and Clouds) शीर्षक का एक शो प्रस्तुत किया गया जिसमें शास्त्रीय और लोक गीतों की एक नाट्य प्रस्तुति के साथ सर्कस के करतबों का एक संलयन था। कनाडा (Canada) में स्थित सिर्के ड्यू सॉइल" (Cirque Du Soleil) (दुनिया कि सबसे बड़ी नाटकीय कंपनी) जैसी कई प्रमुख कंपनियां, सर्कस कृत्यों, थिएटर, संगीत और नृत्य को जोड़ती हैं, और 1990 के दशक से दुनिया भर में सफल शो चला रही हैं। भारत में वर्तमान में सर्कस का अस्तित्व पहले से ही खतरे में था, वे पहले से ही प्रदर्शन में जंगली जानवरों और बच्चों के उपयोग पर प्रतिबंध जैसी समस्याओं से जूझ रहे थे। परंतु कोरोना वायरस के इस दौर मे तो उनके खाने के भी लाले पड़ गये। लॉकडाउन (lockdown) ने उनके अस्तित्व को ही मुश्किल में डाल दिया है। 24 मार्च को भारत बंद होने के तुरंत बाद कलाकारों को चिंता में डाल दिया। वे इतने विवश हो गये कि उन्हें जनता से मदद करने की अपील करनी पड़ी। इस दौर में कई सर्कस कम्पनियां दिवालिया तक हो गयी। उन्होंने मदद के लिए प्रधान मंत्री से एक अपील भी लिखी है, वे खुद का अस्तित्व बनाये रखने के लिये सरकार से ऋण की मदद की माँग रखते है, उन्हें अब बस जवाब का इंतजार है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3gNNErP
https://bit.ly/3nrI0yg
https://bit.ly/3oXJKzh
https://bit.ly/3nn5rZt
https://bit.ly/384WZYm
https://www.bbc.com/news/world-asia-india-52407534
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य तस्वीर नौचंदी मेले को दिखाती है। (विकिमीडिया)
दूसरी तस्वीर भारत में दो प्रसिद्ध सर्कस की। (यूट्यूब)
तीसरी छवि में हाथी अपने सर्कस के आकाओं के साथ मनोरंजन करते हुए दिखाया गया है। (विकिमीडिया)
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