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वर्तमान समय में कोरोना (Corona) महामारी पूरे विश्व में व्याप्त है तथा इसे रोकने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किये गये हैं, जिनमें से तालाबंदी भी एक है। तालाबंदी जहां कोरोना विषाणु के प्रसार को कम करने में मददगार साबित हुई है, वहीं यह अपने साथ कई समस्याओं या चुनौतियों को भी लेकर आयी है। देशव्यापी तालाबंदी ने विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया, जिनमें से ‘चाय उद्योग’ भी एक है। यूं तो, चाय उद्योग विभिन्न कारणों की वजह से पहले से ही मुसीबतों का सामना कर रहा है, लेकिन कोरोना को कम करने हेतु हुई तालाबंदी ने उद्योग की समस्याएं और भी बढ़ा दी हैं और परिणामस्वरुप इस वर्ष चाय उत्पादन में बड़े पैमाने पर कमी आयी है। टी बोर्ड (Tea Board) भारत, के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2019 की तुलना में सितंबर 2020 में चाय उत्पादन में मामूली वृद्धि देखी गयी, लेकिन इससे पहले के महीनों में हुए कम उत्पादन के मद्देनजर, पहली तीन तिमाहियों (जो कि, सितंबर में खत्म हुई) में भारत का संचयी उत्पादन 8569 लाख किलोग्राम पहुंचा जबकि, जनवरी-सितंबर 2019 में यह 10072.2 लाख किलोग्राम था। इस प्रकार उत्पादन ने 1503.2 लाख किलोग्राम या 15 प्रतिशत की भारी कमी को चिन्हित किया। इस दौरान उत्तर भारत ने 6973 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन किया जबकि, जनवरी-सितंबर 2019 में यहां उत्पादन 8533.5 लाख किलोग्राम था। भारत के असम राज्य, जहां चाय का उत्पादन अत्यधिक होता है, में भी कोरोना महामारी और बाढ़ के कारण चाय उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कोरोनो विषाणु से प्रेरित तालाबंदी और विनाशकारी बाढ़ ने 180 साल पुराने चाय उद्योग को कड़ी टक्कर दी और राज्य के सबसे बड़े क्षेत्र में 1,200 करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान हुआ। टी बोर्ड भारत के अनुसार, जनवरी से जुलाई 2020 तक राज्य ने 2223.7 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन किया, जबकि पिछले वर्ष 2019 में इस अवधि में राज्य का उत्पादन 2745.8 लाख किलोग्राम था। इस प्रकार तालाबन्दी ने चाय उद्योग में भारी नुकसान को चिन्हित किया।
ऐसे उद्योग जो अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं, को सरकार ने तालाबंदी के तीसरे चरण में कुछ सुरक्षा सुविधाओं के साथ फिर से संचालित करने की अनुमति दी। नुकसान से बचने के लिए चाय उद्योग ने भी मानदंडों में अपने लिए थोड़ी छूट चाही। पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहा चाय उद्योग इस आर्थिक संकट के दौरान विशेष रूप से नाजुक स्थिति में है। आर्थिक रूप से इस कमजोर समय में यह अपने अस्तित्व को बनाए रखने का प्रयास करता है, लेकिन तालाबंदी भी उस दौरान हुई है, जब चाय की पत्तियां तोड़ने का सबसे उपयुक्त समय था। इससे न केवल उत्पादन पर बल्कि, आयात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वैश्विक बाजार की माँगो को पूरा करने के तात्कालिक समाधान के रूप में, भारतीय चाय संघ ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर निर्धारित सुरक्षा और सामाजिक दूरी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए चाय बागानों में सामान्य संचालन को फिर से शुरू करने की इच्छा जतायी। इस तरह के अनुरोधों के आधार पर, राज्य प्रशासन ने चाय उद्योग और काम पर लगे श्रमिकों को हर समय संचालित रहने की अनुमति दी। चाय उद्योग के अंतर्गत कोरोना महामारी का सबसे अधिक दुष्प्रभाव श्रमिकों पर पड़ा, जो पहले से ही स्वास्थ्य, कार्य, वेतन आदि से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। महिलाएं इस वर्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती हैं, जो मुख्य रूप से चाय की पत्तियां तोड़ने में संलग्न होती हैं। इन श्रमिकों का वेतन जहां बहुत कम होता है, वहीं पर्याप्त राशन, पानी या स्वच्छता सुविधाओं तक भी इनकी पहुंच नहीं होती है।
महिलाएं जहां एनीमिया (Anaemia) और कुपोषण का शिकार होती हैं, तो वहीं, पुरुष श्रमिक भी सुरक्षात्मक उपकरणों और सुरक्षा उपायों की कमी के कारण तपेदिक, फेफड़ों की समस्या आदि का शिकार होते हैं। इस तरह की स्थितियों ने बागानों में बहुत अधिक मातृ और शिशु मृत्यु दर को जन्म दिया है। इस प्रकार, कोरोना महामारी इन श्रमिकों की मुसीबतें और भी बढ़ाने का काम कर रही है। इस तरह की एक कमजोर आबादी के भीतर प्रकोप से निपटने के लिए स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, संगरोध (Quarantine) सुविधा, परीक्षण, उपचार आदि की पर्याप्त उपलब्धता आवश्यक है।
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