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प्रत्येक व्यक्ति या समाज को अपने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। किसी क्षेत्र की संस्कृति और सभ्यता के विकास में भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। किंतु क्या हो यदि किसी क्षेत्र की निजी भाषा या बोली वहां से विलुप्त हो जाए? ऐसे कई उदाहरण है, जो इस घटना या प्रक्रिया का उल्लेख करते हैं, तथा यह प्रक्रिया स्थानांतरण के रूप में जानी जाती है। भाषा स्थानांतरण, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समय की एक विस्तारित अवधि में कोई समुदाय अपने क्षेत्र विशेष की भाषा को छोडकर एक अलग भाषा को अपना लेता है। अक्सर, जिन भाषाओं को उच्च स्थिति का माना जाता है, वे अन्य भाषाओं की कीमत पर स्थिर होती हैं या फैलती हैं, जो अपने स्वयं के वक्ताओं द्वारा निम्न-स्थिति की या निम्न दर्जे की मानी जाती है। इस प्रक्रिया को भाषा हस्तांतरण या भाषा प्रतिस्थापन या भाषा आत्मसात के नाम से भी जाना जाता है। भाषा स्थानांतरण का मुख्य उदाहरण उत्तर प्रदेश की कई प्रमुख बोलियाँ जैसे जाटू, गुर्जरी, अहिरी, ब्रजभाषा आदि हैं, जो कई वर्षों तक तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अत्यधिक प्रचलित थीं किंतु अब शायद ही उपयोग में हैं। इन्हें क्षेत्र में बोली जाने वाली प्रचलित भाषा जिसे इतिहासकारों ने ‘हिंदुस्तानी’ भाषा का नाम दिया है, के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। एक समय ऐसा भी था जब हर कस्बे या क्षेत्र या समुदाय, में उसी क्षेत्र से सम्बंधित बोली या भाषा कही जाती थी लेकिन भाषा स्थानांतरण के कारण इन क्षेत्रीय बोलियों का अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर है। भाषा स्थानांतरण की प्रक्रिया में एक समुदाय या क्षेत्र अपनी निज भाषा के स्थान पर एक अन्य भाषा को इतना अधिक अपना लेता है कि परिणामस्वरूप विदेशी भाषा, निज भाषा पर हावी हो जाती है। यह एक सामाजिक घटना है जहां एक भाषा किसी समाज में बोली जाने वाली भाषा को प्रतिस्थापित कर देती है। इस स्थिति में उस क्षेत्र के वक्ताओं द्वारा निज भाषा या बोली को निम्न-दर्जे का माना जाने लगता है। यह प्रक्रिया समाज की संरचना और आकांक्षाओं में अंतर्निहित परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है। जब कोई समुदाय अन्य भाषायी समुदाय के संपर्क में आता है तब वह नई अर्थात अन्य भाषा को अपनाता है, जिससे क्षेत्र में नयी भाषा का विस्तार होता है तथा पुरानी भाषा या क्षेत्रीय भाषा का हास्र होने लगता है।
भाषा परिवर्तन एक सचेत नीति का उद्देश्य हो सकता है लेकिन समान रूप से यह एक ऐसी घटना हो सकती है जो अनियोजित और अक्सर अस्पष्टीकृत होती है। भाषा परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन की एक गतिशील घटना है, और इसलिए समाजशास्त्र का विषय है। भाषा परिवर्तन के परिणामस्वरूप कई क्षेत्रीय भाषाएं तेजी से गुमनामी की ओर अग्रसर हैं। चूंकि क्षेत्रीय भाषाएं, लोक परंपराओं से जुडी होती हैं, इसलिए भाषा नुकसान के साथ-साथ लोक परंपराएं भी गुमनामी की कगार पर हैं। ऐसी अनेक बोलियां हैं, जिन्हें आजादी के समय तक बोला जाता था तथा इनकी अपनी विशिष्ट पहचान थी। इन बोलियों में जाटू जो सहारनपुर से बागपत तक बोली जाती थी, गुर्जरी जिसे मथुरा से गाजियाबाद तक बोला जाता था, ब्रजभाषा, जो मथुरा, नोएडा और गाजियाबाद क्षेत्र में प्रचलित थीं, आदि शामिल हैं। हालांकि, जैसे-जैसे समय बदलता गया और नयी भाषा का विस्तार हुआ इन क्षेत्रीय बोलियों का उपयोग भी कम हो गया। भाषा प्रतिस्थापन यदि जारी रहता है, तो इनमें से अधिकांश बोलियों का अस्तित्व बहुत जल्द समाप्त हो जायेगा। विभिन्न बोलियों के गुमनामी की ओर जाने के विभिन्न कारण हैं। इसका मुख्य कारण आमतौर पर हिंदुस्तानी भाषा जोकि हिंदी, उर्दू, और कुछ क्षेत्रीय बोलियों का समामेलन है, के उद्भव को माना जाता है। आज भारत में रहने वाली अधिकांश आबादी हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग करती है, जो एक इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषा है। यह मुख्य रूप से दिल्ली की पश्चिमी हिंदी बोली जिसे खडी बोली कहा जाता है, पर आधारित है। यह दो मानकीकृत, पंजीकृत भाषाओं आधुनिक मानक हिंदी और आधुनिक मानक उर्दू के साथ एक मानक भाषा है। एकीकृत भाषा के रूप में हिंदुस्तानी भाषा की अवधारणा का समर्थन महात्मा गांधी द्वारा किया गया था। पुरानी हिंदी के रूप में इस भाषा की पहली लिखित कविता, 769 ईस्वी के शुरुआती समय की हैं।
भारत में दिल्ली सल्तनत की अवधि के दौरान, पुरानी हिंदी का प्राकृत आधार फ़ारसी के शब्दों के साथ समृद्ध हुआ, जो वर्तमान में हिंदुस्तानी के रूप में विकसित है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदुस्तानी भाषा भारतीय राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति बनी और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आम भाषा के रूप में बोली जाने लगी। यह बॉलीवुड फिल्मों (Bollywood movies) और गीतों की हिंदुस्तानी शब्दावली से भली-भांति परिलक्षित होता है। हिंदुस्तानी भाषा की शब्दावली प्राकृत भाषा से ली गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वतंत्रता के बाद के युग से, बॉलीवुड फिल्मों में तथा स्थानीय अखबारों जैसे मीडिया प्लेटफार्मों (Media platforms) में हिंदुस्तानी भाषा के उपयोग से इसका प्रचलन बढा। इसके अलावा सरकार ने भी हिंदी को एक सामान्य भाषा के रूप में लागू करने के अपने प्रयास में, क्षेत्रीय संस्कृति और परंपराओं को धूमिल कर दिया। बोली जिसे मातृभाषा भी कहा जा सकता है, एक ऐसी भाषा है जिसे व्यक्ति अपनी माता और दादी से सीखता है, यह वो नहीं है जिसे सरकार हम पर लागू करना चाहती है। यह वो है जो किसी क्षेत्र की संस्कृति और लोक परंपराओं का विकास करती है। किंतु इनका विलुप्त होना उस क्षेत्र की संस्कृति और लोक परंपराओं के पतन को इंगित करती है।
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