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लीची उत्पादन के क्षेत्र में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।यहाँ 84,170 हैक्टेयर क्षेत्र में 5,85,300 टन लीची का उत्पादन 2013-14 में हुआ।देश में लीची के कुल उत्पादन का 64.2% उत्पादन बिहार, प० बंगाल, झारखंड और आसाम में होता है। अन्य राज्य हैं - छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब, उड़ीसा, त्रिपुरा, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू और कश्मीर। लीची (Litchi Chinensis Sonn.) के बहुत अधिक स्वादिष्ट होने के कारण बाज़ार में इसकी बहुत माँग है।इसीलिए इसकी खेती का क्षेत्र निरंतर बढ़ता जा रहा है।उत्तर प्रदेश में मेरठ लीची उत्पादन का प्रमुख केंद्र है।
इतिहास :
लीची का वृक्ष सदाबहार होता है। यह दक्षिण एशिया का प्रमुख स्वादिष्ट फल जो प्राचीन समय से बहुत लोकप्रिय है।वैसे तो इसे ताज़ा खाया जाता है पर डिब्बाबंद भी रखा जा सकता है।यह बहुत ही ख़ुशबूदार और कस्तूरी गंधयुक्त होता है।इसका सूखा फल अम्लीय और बहुत मीठा होता है।लीची का व्यापारिक उत्पादन चीन और भारत में होता है।पश्चिमी दुनिया से इसका परिचय 1775 में हुआ जब यह जमैका पहुँचा।व्यावसायिक उत्पादन के लिए फ़्लोरिडा में लीची के पेड़ 1916 में तैयार हुए।भूमध्य सागर के आस-पास, दक्षिण अफ़्रीका और हवाई में इसकी थोड़ी -बहुत खेती होती है।
बनावट :
लीची के पेड़ पर हरे पत्तों का चंदवा (canopy) एक साल में तैयार हो जाता है।पत्तियाँ दो या चार की संख्या में संयुक्त होती हैं और 2-3 इंच लम्बी होती हैं।फूल छोटे होते हैं और दिखाई नहीं देते।इसका फल अंडाकार या गोल स्ट्रोबेरी की तरह लाल लगभग 1 इंच व्यास का होता है।भंगुर आवरण के नीचे सफ़ेद मांसल गूदा होता है जिसके अंदर एक बड़ा बीज होता है।
लीची की खेती :
यह उपोष्णकटिबँधीय फल होता है जो नम जलवायु में अच्छी तरह फलता-फूलता है।गहरी, अच्छी तरह सिंचित चिकनी बलुई मिट्टी जिसमें अच्छी मात्रा में ऑर्गैनिक तत्व हों और जिसका 5-7 pH हो, लीची के उत्पादन के लिए आदर्श मिट्टी होती है।यह बहुत नाज़ुक फल होता है जो जाड़ों में कोहरा और गर्मियों में लू के थपेड़े नहीं सह सकता।गर्मियों में 40.5 ०C से ज़्यादा और जाड़ों में जमने से नीचे का तापमान बर्दाश्त नहीं कर सकता।फूल निकलते समय लगातार बारिश पेड़ को नुक़सान पहुँचाती है , परागण को प्रभावित करती है।
अतिरिक्त आय :
लीची की बहुत सारी प्रजातियाँ भारत के विभिन्न हिस्सों में पैदा होती हैं।यह एक धीरे-धीरे बढ़ने वाला पौधा होता है।चंदवा (canopy) तैयार होने में 15-16 साल लग जाते हैं।शुरुआत में पौधों के बीच के अंतराल में दूसरे पौधे उगाए जा सकते हैं।अमरूद, शरीफ़ा, नीबू बीच में और लीची की पंक्तियों के बीच में उगाकर अतिरिक्त आय की जा सकती है। पपीते की भी खेती साथ में 2.5x2.5 m होती है।शुरू में कुछ सब्ज़ियाँ जैसे बैगन, फ़्रेंच बींस, लोबिया, भिंडी आदि उगाई जा सकती हैं।लीची के तैयार बगीचों में छायादार वातावरण में उगने वाले अदरक, इमली, जिमीकंद आदि की फ़सल अतिरिक्त आय का सफल साधन है।
लीची की उपज :
पेड़ की उम्र के साथ लीची का उत्पादन भी बदलता रहता है।14 से 16 साल पुराने पेड़ों से आमतौर पर 80 से 150 Kg लीची मिल जाती है।
लीची में आनुवंशिक परिवर्तन :
आज फ़सलों के उत्पादन और उनकी गुणवत्ता सुधारने के मामलों में आनुवंशिक परिवर्तन एक उपयोगी अस्त्र के रूप में सामने आए हैं।इससे असम्बद्ध पौधों में जींस के स्थानांतरण से जैविक रूप से संशोधित फ़सल प्रजातियाँ बेहतर कृषिशास्त्रीय विशेषताओं, बेहतर पोषक मूल्यों, रोग प्रतिरोधक क्षमता, कीटों को सहन करने की क्षमता और दूसरे ज़रूरी गुणों से सम्पन्न हो जाती हैं।पौधों में आनुवंशिक परिवर्तन पारम्परिक तौर पर पौधे उगाने की तकनीक के साथ सहक्रियाशील (synergistic) होती है।इसके प्रयोग से किसान नई जींस इस्तेमाल कर सकते हैं और फ़सल में मनचाहे परिणाम हासिल कर सकते हैं।लीची में भी आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक का प्रयोग कर लोकप्रिय जीन प्रारूप में नए लक्षण शामिल किए जा सकते हैं।बाद में इनसे अपनी इच्छानुसार गुण हासिल कर सकते हैं।
लीची उत्पादकों पर करोना का प्रभाव :
मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार के हज़ारों लीची उत्पादक करोना महामारी से पैदा हुई अनिश्चित्तता से बहुत निराश हैं। पिछले कुछ सालों से लीची उत्पादक विपरीत मौसमी स्थितियों से बेहाल थे, इस वर्ष लीची की बम्पर उपज के बावजूद कोई इनका ख़रीदार नहीं है।लॉकडाउन के बार-बार बढ़ने से यह स्थिति आई है।अभी लीची हरी हैं, 20-25 दिन बाद पूरी तरह पक जायेंगी।बिहार का मुज़फ़्फ़रपुर ज़िला ‘लीची की ज़मीन ‘ कहा जाता है।अपने आस-पास के इलाक़ों को मिलाकर देश के कुल लीची उत्पादन का 62% यहाँ उत्पादित होता है।पहले यह आंकड़ा 70% था। किसान बहुत कम दरों पर अपना उत्पाद बेचने को मजबूर हैं।अधिकतर किसानों के पास लीची की उपज को संरक्षित रखने के साधन नहीं हैं।ज़िलाधिकारी ने लीची उत्पादकों को मदद का आश्वासन दिया है। बाग़वानी विभाग के अनुसार क्षेत्र में 45,000 लीची उत्पादक किसान हैं।लीची बदलते तापमान, बारिश, नमी के प्रति बहुत समवेदनशील होती है। ऊपर से कीड़ों के आक्रमण भी चुनौती बन गए हैं।
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