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भारत में पायी जाने वाली वनस्पति में अनेक विविधताएं देखने को मिलती हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। इन्हीं वनस्पतियों में कटहल का पेड़ भी शामिल है, जिसका उपयोग आज अनोखे तौर पर किया जा रहा है। वैज्ञानिक तौर पर अर्टोकार्पस हेटेरोफिलस (Artocarpus Heterophyllus) नाम से विख्यात इस पेड़ को सामान्य रूप से जैक ट्री (Jack tree) कहा जाता है तथा विभिन्न क्षेत्रों में इसके अनेक स्थानीय नाम हैं। इसकी उत्पत्ति दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट और मलेशिया के वर्षावनों के बीच के क्षेत्र में मानी जाती है। यह पेड़ उष्णकटिबंधीय तराई क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है और व्यापक रूप से दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। पेड़ पर लगने वाला फल सभी पेड़ों की तुलना में सबसे बड़ा फल है जिसका वजन, लम्बाई तथा व्यास क्रमशः 55 किलोग्राम (120 पाउंड), 90 सेंटीमीटर और 50 सेंटीमीटर तक पहुंच सकता है। एक परिपक्व जैक ट्री प्रति वर्ष लगभग 200 फल पैदा करता है, जबकि पुराने पेड़ एक वर्ष में 500 फल दे सकते हैं।
जैक फल का उपयोग आमतौर पर दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई व्यंजनों में किया जाता है, जहां इन्हें पके और अधपके फल दोनों रूपों में ग्रहण किया जाता है। अपनी लोकप्रियता के कारण यह बांग्लादेश और श्रीलंका का राष्ट्रीय फल है, जबकि भारतीय राज्यों केरल और तमिलनाडु में भी इसे राज्य फल का दर्जा दिया गया है। यह भारत की मूल उपज है, विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल राज्य में, जहां इसकी खेती 3,000 से 6,000 साल पहले से की जा रही है। इंडियन फ़ूड: ए हिस्टोरिकल कम्पैनियन (Indian Food: A Historical Companion) के लेखक के टी अच्या (K.T. Achaya) के अनुसार कटहल का पहला नाम, ‘पनसा (Panasa)’ था, जिसकी व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द मुंडा (Munda) से हुई है। इसके संदर्भ 400 ईसा पूर्व के बौद्ध ग्रंथों से भी प्राप्त होते हैं, और कुछ बौद्ध पुजारी अभी भी फल का उपयोग अपने वस्त्र को रंगने के लिए करते हैं। भारत के दक्षिण और पूर्व में कटहल बहुतायत से उगता है। फल की खेती करने वाले क्षेत्रों में पश्चिमी घाट, देवरिया, गोरखपुर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, कोंकण और कर्नाटक शामिल हैं। फैजाबाद, उत्तर प्रदेश अपने स्वादिष्ट किस्म के कटहल के लिए जाना जाता है। यह फल दिसंबर से सितंबर तक और फिर जून से अगस्त तक होता है, जबकि इसका उच्चतम उत्पादन मानसून के मौसम के दौरान होता है। कई समूह पारंपरिक उपचार के लिए कटहल के कुछ हिस्सों का उपयोग करते हैं। पत्तियों की राख को नारियल और मकई के साथ जलाया जाता है, और फिर घावों पर लगाया जाता है। भारत में, पत्ते और जड़ त्वचा विकारों का इलाज करते हैं। फल का लेटेक्स (Latex) विषैले सर्पदंश और ग्रंथियों की सूजन को कम करता है। हालांकि आयुर्वेदिक चिकित्सक चेतावनी देते हैं कि इसके अधिक सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं। फल के लेटेक्स में काफी रोगाणुरोधी गुण होते हैं तथा एक औद्योगिक फसल और उत्पाद अध्ययन ने पुष्टि की कि फल की शराब में उच्च एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants) हैं।
भारत दुनिया में कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक है, और लंबे समय से इसका मूल स्थान माना जाता है। यह प्रोटीन, आहार, रेशे, विटामिन (Vitamin) A और C, खनिजों की एक उचित मात्रा से युक्त है तथा इसकी पत्तियां मवेशियों के खाने के लिए भी उपयुक्त होती हैं। इसके साथ ही इसकी जड़ों को औषधीय माना जाता है और लकड़ी का उपयोग फर्नीचर (Furniture) बनाने के लिए किया जाता है। विश्व स्तर पर, अधिकांश लोगों को अक्सर कटहल की गंध बहुत तीखी लगती है और इसकी बनावट बहुत चिपचिपी होती है। इसके साथ ही इसे पकाने के लिए तैयार करने में भी काफी समय लगता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसे तैयार करते समय आधे से ज्यादा भाग अपशिष्ट के रूप में निकल जाता है। कटहल का सबसे बड़ा फायदा इसकी बहुमुखी प्रतिभा है। सब्जी के रूप में इसे मुलायम, कच्चा या अर्ध-पका हुआ और पके होने पर फल के रूप में खाया जाता है। सब्जी के रूप में इसे करी (Curry), मुरब्बा और बिरयानी में पकाया जाता है। इन्हें कोफ्ते और पकौड़े के रूप में तेल में तला जाता है, चिप्स (Chips) के रूप में सुखाया और अचार भी बनाया जाता है। इसके पके फल का उपयोग मिठाई, सिरप (Syrup), जैम (Jam) और चटनी में किया जाता है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, गोवा और उत्तर पूर्व में कटहल के लिए कई त्यौहारों को आयोजित किया जाता है। छोटे गांवों में इसे उत्कृष्ट उपहार के रूप में भी दिया जाता है।
कटहल की अनोखी बात यह है कि पश्चिमी देशों में वर्तमान समय में इसका उपयोग शाकाहारी विकल्प के रूप में किया जा रहा है। पोषण से भरपूर इस फल को पिज़्ज़ा (Pizza), बर्गर (Burger), पास्ता (Pasta) जैसे व्यंजनों में चिकन (Chicken), टर्की (Turkey), बीफ़ (Beef) और अन्य मीट (Meat) की जगह डाला जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि कटहल को सही से पकाया जाए तो यह पशु के मांस के समान स्वाद देता है। कई रेस्तरां में लोगों के लिए मांस के व्यंजनों के विकल्प के रूप में इसे विभिन्न तरीकों से बनाया जा रहा है। डिब्बाबंद कटहल की बनावट मांस के समान होती है और इसलिए इसे वनस्पति मांस कहते हैं। न्यूट्रीशन बिज़नेस जर्नल (Nutrition Business Journal) के अनुसार, 25% अमेरिकी उपभोक्ताओं ने 2014 से 2015 तक अपने मांस के सेवन को कम कर दिया, और मांस की वैकल्पिक चीजों की बिक्री 2011 में 69 मिलियन डॉलर (Million dollars) से बढ़कर 2015 में 109 मिलियन डॉलर हो गई थी। लगभग शून्य के शुरुआती बिंदु से, अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन सहित कटहल का निर्यात पिछले वर्षों से बढ़कर लगभग 500 टन हुआ जो कि 2019 के अंत तक लगभग 800 टन पहुंचा। इस प्रकार कटहल ने पश्चिमी देशों में शाकाहारी प्रवृत्ति को बढाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
सन्दर्भ:
https://en.wikipedia.org/wiki/Jackfruit
http://theindianvegan.blogspot.com/2012/10/all-about-jackfruit-in-india.html
https://medium.com/tenderlymag/jackfruit-india-eee207285d87
https://www.onegreenplanet.org/vegan-food/how-to-make-jackfruit-a-stand-out-substitute-for-meat/
https://www.nationalgeographic.com/culture/food/the-plate/2016/07/jackfruit-sustainable-vegetarian-meat-substitute/
https://www.theguardian.com/world/2019/feb/16/jackfruit-stinking-vegan-food-trend-star
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में एक वृक्ष पर लगे हुए कटहल (Jackfruit) को दिखाया गया है। (Pexels)
दूसरे चित्र में कटहल का चित्रण है। (Unsplash)
तीसरे चित्र में कटहल की कलाकृति को दिखाया गया है। (Wikimedia)
अंतिम चित्र में कटहल वृक्ष दिखाई दे रहा है। (Flickr)
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