समयसीमा 245
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 942
मानव व उसके आविष्कार 740
भूगोल 219
जीव - जन्तु 273
हम में से अधिकांश ने लोगों को यह कहते हुए अक्सर सुना होगा कि, इस वर्ष काफी भीषण गर्मी हुई है। ऐसे ही भारतीय शहरों में भी असामान्य रूप से उच्च तापमान की वजह से होने वाली गर्मी से संबंधित मौतों में वृद्धि भी देखी गई है। हालांकि, भारत में ग्रीष्म लहरें काफी आम हैं लेकिन हाल के वर्षों में ये लहरें अधिक बारंबार, तीव्र और लंबी हो गई हैं, जो आंशिक रूप से शहरी ऊष्मा द्वीपों के प्रभाव के कारण हो रही हैं। जहां भारत में बहुत तेज़ी से शहरीकरण हो रहा है, इस तेजी से शहरीकरण के परिणामस्वरूप भूमि के उपयोग में भी काफी परिवर्तन देखा जा सकता है। पिछले चार दशकों में, दिल्ली में निर्मित क्षेत्र में 30.6% की वृद्धि देखी गई, जबकि खेती वाले क्षेत्रों में 22.8% और घने जंगल में 5.3% की कमी आई है। इस बढ़ते शहरीकरण का प्रभाव न सिर्फ बढ़ते प्रदूषण की ओर इशारा करता है बल्कि ये ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ के क्षेत्रों में भी वृद्धि की ओर संकेत करता है। शहरी ऊष्मा द्वीप के प्रभाव को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में से मेरठ में भी देखा जा सकता है। 1818 में पहली बार वर्णित शहरी ऊष्मा द्वीप, आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में उच्च वायुमंडलीय और सतह के तापमान की घटना को संदर्भित करता है। शहरी ऊष्मा द्वीप गर्मियों और सर्दियों के दौरान सबसे अधिक रूप से दिखाई देते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं: सतह शहरी ऊष्मा द्वीप और वायुमंडलीय शहरी ऊष्मा द्वीप। सतही शहरी ऊष्मा द्वीप की माप भूमि की सतह के तापमान के आधार पर की जाती है, जबकि वायुमंडलीय शहरी ऊष्मा द्वीप की माप हवा के तापमान के आधार पर की जाती है। शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव का मुख्य कारण भूमि की सतहों का संशोधन है, दरसल अधिक खुली जगह, पेड़-पौधों और अधिक घास से परिपूर्ण गांवों की तुलना में शहरों में पत्थर के फर्श, सड़क और छत बनाने में उपयोग होने वाली बजरी, डामर और ईंट जैसी सामग्रियाँ अपारदर्शी होती हैं और प्रकाश को संचारित करने में असमर्थ होती हैं।
इसकी उत्पत्ति में अन्य योगदान कारक पानी, प्रदूषण और ऊर्जा के गंदे स्रोतों पर निर्भर आर्थिक गतिविधि है। ब्लैक कार्बन एयरोसोल (Black Carbon Aerosol) या वाहनों के उत्सर्जन से कालिख और कुछ घरों में खाना पकाने के लिए कोयले और लकड़ी को जलाने से बड़ी मात्रा में सौर विकिरण होता है। केवल ये ही नहीं, जनसंख्या भी तापमान की वृद्धि में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे ही कहीं जनसंख्य में वृद्धि होती है वैसे ही उस क्षेत्र का औसत तापमान भी बढ़ता रहता है। इसके साथ ही शहरों में मौजूद उद्योगों और वाहनों से होने वाला प्रदूषण वहां की हवा की गुणवत्ता को भी कम कर देता है और उपनगरों की तुलना में यहां पदार्थों के महीन कण और धूल भी अधिक होते हैं। शहरी ऊष्मा द्वीपों की वृद्धि से कई हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होते हैं, जैसे कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में यहां गर्म क्षेत्रों में रहने वाले कीट जैसे चींटियाँ अधिक मात्रा में पाई जाती हैं। इसके साथ ही यह अन्य जानवरों के स्वास्थ्य में हानि और उनके खाने के स्रोतों में कमी को उत्पन्न करता है। इसके साथ ही शहरी ऊष्मा द्वीप में शहरी निवासियों के स्वास्थ्य और कल्याण को सीधे प्रभावित करने की क्षमता भी है। अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही, औसतन 1,000 लोग प्रति वर्ष अत्यधिक गर्मी के कारण मारे जाते हैं। वहीं एक अध्ययन में नई दिल्ली में कोविड-19 (COVID-19) महामारी के साथ शहरी ऊष्मा द्वीप, भूमि की सतह के तापमान के बीच संबंध का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन में भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और MODIS (MOD11A1 & MOD11A2) के तापमान विवरण से कोविड -19 के निरीक्षण विवरण का एक माध्यमिक विवरण विश्लेषण शामिल है। कोविड-19 के बीच सांकेतिक संबंध और दिन के समय में भूमि की सतह का तापमान एक सकारात्मक सांकेतिकता (p मान <0.05) को R2 = 81% और रात के समय के लिए यह R2 = 86% है। यह निर्धारित करता है कि कोविड-19 मामलों के संबंध में भूमि की सतह के तापमान के लिए आंकड़ा समुच्चय का समूह सकारात्मक संबंध का प्रतिनिधित्व करता है जो दोनों मापदंडों के लिए स्पष्ट है। दूसरी ओर, शहरी ऊष्मा द्वीप और कोविड-19 मामलों के किसी भी प्रकार के संबंध का संकेत नहीं देता है। इस प्रकार के संकेत दिन के समय शहरी ऊष्मा द्वीप के लिए R2 का मान 37% और रात के समय शहरी ऊष्मा द्वीप में लगभग 17% दिखाई देता है। इसलिए इस एल्गोरिथम आधारित प्रतिगमन प्रणाली का तात्पर्य महामारी के मामलों के साथ नकारात्मक सहसंबंध है, जबकि भूमि की सतह का तापमान उच्च स्तर पर आ रहा है क्योंकि कोविड-19 के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इसलिए शहरी ऊष्मा द्वीप का कोविड-19 के साथ संबंध साबित करना महत्वपूर्ण नहीं है। जैसा की हम सब जानते हैं कि कोरोनावायरस बीमारी की वजह से देश भर में विगत कुछ महीनों से लॉकडाउन लगाया हुआ है। इस देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अधिकांश औद्योगिक गतिविधियों और बड़े पैमाने पर परिवहन प्रतिबंधित हो गए हैं। वहीं केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारत, 2020 द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश भर के 88 शहरों में लॉकडाउन प्रक्रिया की शुरुआत के बाद ही प्रदूषण के स्तर में भारी गिरावट देखी गई है। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लॉकडाउन वायु प्रदूषण और तापमान को नियंत्रित करने के लिए एक वैकल्पिक उपाय रहा है। वहीं शहरी ऊष्मा द्वीप के प्रभाव को हरी छतों (ऐसी छत जिस पर कुछ वनस्पति उगाई गयी हो) के उपयोग और शहरी क्षेत्रों में हल्के रंग की सतहों के उपयोग के माध्यम से कम किया जा सकता है, जो अधिक धूप को प्रतिबिंबित और कम ऊष्मा को अवशोषित करने में मदद करता है। पेड़ पौधों में वाष्पोत्सर्जन की गुणवत्ता पायी जाती है जो पेड़ और पौधों से पानी को वाष्प में परिवर्तित कर आसपास के वायुमंडल में छोड़ने का कार्य करते हैं। इसलिए जितना संभव हो सके अपने आसपास भवनों, स्कूलों, घरों और अपार्टमेंट (Apartment) परिसरों के बीच अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने की कोशिश करें।चित्र सन्दर्भ:
शहरी गर्मी द्वीप चित्रण(youtube)
भारत में शहरी सिटीस्केप(youtube)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.