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नौचंदी मेला सर्कस (Nauchandi Mela circus) मेरठ में एक बड़ा आकर्षण है। देश में इस तरह के और भी सर्कस मौजूद हैं, जिनमें कलाकार विभिन्न करतबों के माध्यम से दर्शकों को आकर्षित करते हैं। दो स्तम्भों से बंधी रस्सी पर चलना, चाबुक द्वारा जानवरों को नियंत्रित करना, मौत के कुंए में मोटर साइकिल चलाना, आग निगलना आदि कुछ ऐसे करतब हैं जिन्हें कलाकार अद्भुत निपुणता के साथ प्रदर्शित करता है और दर्शकों के दिलों को लुभाता है। तीन दशक पहले, देश में 900 से अधिक सर्कस मंडली थीं लेकिन आज, टेलीविजन और अन्य कारकों की वजह से 100 से भी कम सर्कस मंडलियां बची हैं। जानवर जोकि सर्कसों का आकर्षण केंद्र होते थे, के समान सर्कस भी लुप्तप्राय होता जा रहा है। एक सर्कस मंडली से लगभग 250 से अधिक लोगों की आजीविका जुडी होती है, जिनमें बढ़ई, राजमिस्त्री, इलेक्ट्रीशियन (Electrician), दर्जी, रसोईया, प्रबंधक और अनगिनत मदद करने वाले लोग शामिल होते हैं। सर्कस उपकरणों को दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए 30 से अधिक बड़े ट्रकों का सहारा लेना पड़ता है। यह जहां रोमांचक है वहीं जोखिम भरा भी है।
फिलिप एस्टले, जिन्हें आधुनिक सर्कस के जनक के रूप में जाना जाता है, के सर्कस का प्रकल्पित रूप 1880 में भारत आया। भारत में सबसे पहला द ग्रेट इंडियन सर्कस (The Great Indian Circus) विष्णुपंत चत्रे का था। महाराष्ट्र में स्थित चत्रे के सर्कस का प्रदर्शन श्रीलंका, सिंगापुर, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान और चीन में हुआ। बाद में, कई भारतीय सर्कस सफल विदेशी दौरों को करने के लिए चले गए, और कन्नन बॉम्बायो (Kannan Bombayo) जैसे दिग्गज रस्सी डांसर (Dancer) कलाकारों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। उन दिनों सर्कस चलाना एक लाभदायक व्यवसाय था। राजनेता जैसे जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी आदि सर्कस के संरक्षक थे और उन्होंने मनोरंजन कर को समाप्त करने, रेलवे रियायतों की अनुमति देने और मैदान के लिए किराए को कम करने जैसे उपायों को पेश किया। केरल सरकार ने 1901 में थालास्सेरी में देश में अपनी तरह का पहला सर्कस अकादमी शुरू किया, जिसमें कलरीपायट्टु (Kalaripayattu) और जिम्नास्टिक (Gymnastics) प्रशिक्षक कील्लरी कुन्हिकनन (Keeleri Kunhikannan) थे। कुन्हिकनन ने नि: शुल्क प्रशिक्षण दिया और सर्कस के विकास में केंद्र ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सर्कस में सार्वजनिक हित धीरे-धीरे कम हो गए और आज सरकार की तरफ से बहुत कम समर्थन दिया जाता है। ज्यादातर काम जैसे बाजीगरी, कलाबाजी, जिमनास्टिक्स, आदि जो कभी विशेष रूप से सर्कस में किया जाता था, अब टेलीविजन पर किया जाता है। आज भारत में सर्कस उद्योग चलाना मुश्किल है। 1990 में लगभग 300 उद्योग थे, जो अब लगभग 30 पर आ गये हैं। वर्तमान में, भारत में पहले से ही बाघों और शेरों जैसी बड़ी बिल्लियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन सरकार ने इसके बाद घोड़ों, दरियाई घोड़ों, हाथियों यहां तक कि कुत्तों जैसे जानवरों पर भी प्रतिबंध लगाने की योजना बनाई जिन्हें प्रायः सर्कसों में उपयोग किया जाता था। सर्कस मालिकों का कहना है कि जानवरों की अनुपस्थिति, उत्साह में गिरावट का एक प्रमुख कारण है। जंगली जानवरों को 2013 में भारत में सर्कस से प्रतिबंधित कर दिया गया था। रेम्बो (Rambo) सर्कस भारत के उन गिने-चुने सर्कस उद्योगों में शामिल है जो वर्षों से बचे हुए हैं। सर्कस के मालिक, महसूस करते हैं कि यह एक ऐसा समय है जब सरकार को सर्कस और उसके कलाकारों को पहचानना चाहिए। दर्शक उच्च तकनीक के प्रदर्शन की पेशकश करते हैं, लेकिन यह केवल गंभीर वित्तीय कमी के कारण संभव नहीं है। सर्कस उद्योग को चलाने के लिए प्रति दिन कुल 1.5 लाख रुपये से भी अधिक की आवश्यकता होती है। 2001 में उच्च न्यायालय द्वारा सर्कस में बंदरों, भालूओं, बिल्लियों आदि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व नौचंदी मेला सर्कस मेरठ में आकर्षण का मुख्य केंद्र था किंतु प्रतिबंध के कारण सर्कस की लोकप्रियता जहां कम हुई है, वहीं इसने अपने दर्शक भी खोये हैं। वर्तमान समय में कोरोना विषाणु के चलते जहां हर प्रदर्शन कला को इसके प्रभाव का सामना करना पडा है वहीं सर्कस भी इससे अछूता नहीं हैं। तालाबंदी के चलते बिना किसी आय के सर्कस अपने परिवार, कलाकारों और जानवरों के लिए आजीविका का आश्वासन देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। टेलीविजन, सिनेमा और इंटरनेट (Internet) से भारी और स्पष्ट खतरे के बावजूद, सर्कस उद्योगों के मनोरंजन के क्षेत्र में अपने स्थान पर बने रहने के लिए दृढ़ संकल्पित है, यह स्पर्श और बेहद उत्साहजनक है।
https://www.thebetterindia.com/8882/indian-circus-took-look-behind-scenes-amazed-saw/
https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/use-of-all-animals-in-circuses-may-be-banned-in-india/articleshow/66876667.cms
https://www.thehindu.com/society/history-and-culture/A-fine-balance/article15634141.ece
https://indianexpress.com/article/cities/pune/indian-circus-companies-struggling-to-survive-neither-recognised-nor-respected-5685169/
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/Circus-a-dying-performance-art/articleshow/47193920.cms
https://www.bbc.com/news/world-asia-india-52407534
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में सर्कस के दौरान कलाकारों के प्रदर्शन का चित्र दिखाया गया है। (Flickr)
दूसरे चित्र में भारत में हाथी के साथ सर्कस प्रदर्शन का चित्रण है। (Youtube)
तीसरे चित्र में विदेशी कलाकारों का सर्कस के दौरान चित्रण प्रस्तुत किया गया है। (Wikimedia)
चौथे चित्र में द ग्रेट इंडियन सर्कस का तम्बू दिखाया गया है। (Facebook)
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