भारतीय नाग पूजन परंपरा

रेंगने वाले जीव
15-07-2020 06:04 PM
भारतीय नाग पूजन परंपरा

नागों के पूजन की परंपरा युगों से भारत में प्रचलित है। आज भी यह कुछ प्राचीन संस्कृतियों में जारी है, जहां सांपों को ताकत की सत्ता माना जाता है। सांपों द्वारा कैंचुली बदलने के स्वभाव को पुनर्जन्म, मृत्यु और अमरत्व का प्रतीक माना जाता है। अनेक हिंदू मंदिरों और घरों पर नागों की प्रतिमाएं और आकृतियां चट्टानों पर उकेरी हुई हैं। इनकी संपत्ति, प्रसिद्धि और ज्ञान प्राप्त करने के लिए फूलों, दीयों, दूध, अगरबत्ती से पूजा की जाती है। बहुत से हिंदू देवता और सांपों का घनिष्ठ संबंध रहा है, जैसे कि भगवान शिव अपनी गर्दन पर सांप धारण किए दिखाए जाते हैं और विष्णु शेषनाग पर योग निद्रा में दिखाए जाते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रमुख भूमिका में रहे 5 नामों के पूजन की प्रथा है। भारत समेत विश्व की अनेक संस्कृतियों में इनके महत्व को रेखांकित किया गया है।

भारत में नाग पूजन

नाग देवताओं के पूजन की परंपरा बहुत ही प्राचीन संस्कृतियों में रही है, खासतौर से धर्म और पुराणों में जहां पर साँपों को ताकत और नवीकरण की सत्ता के रूप में दिखाया गया है। हिंदू पुराणों में नागों को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है। नाग संचित और पाली भाषा का शब्द है, जिसका मतलब ऐसे देवता से है, जिसने एक बड़े सांप का रूप धारण कर रखा है, ऐसी अवधारणा हिंदू और बौद्ध धर्म में व्यक्त हुई है। नाग शब्द का प्रयोग अनेकार्थी भी है, जैसे कि एक भारतीय जनजाति को नागा नाम से जाना जाता है। भारत के बहुत से हिस्सों में नाग पूजन होता है। कुछ भारतीय लोगों से दुर्घटनावश एक कोबरा की मृत्यु हो गई, तो उसका पूरा अंतिम संस्कार किया गया। एक समय भारत में नागों को लेकर बहुत से पंथ प्रचलन में थे। उत्तर भारत में नाग का पुरुष प्रतिनिधि रिवान (Rivaan) नाम से हुआ था, जिसे नागों के राजा के रूप में पूजा जाता था। दक्षिण में सजीव नागों की पूजा होती है। बंगाल का मांसा पंथ मानव रूपी नाग देवी मांसा का पूजन करता है। नागों ने हिंदू पुराणों का एक बड़ा भाग साबित किया है। अनेक उपाख्यान में उनकी प्रमुख भूमिका दर्शाई गई है।

बंगाल के विभिन्न जिलों में नाग पूजन कई प्रकार से होता है। बंगाली मांसा पंथ में दशहरे के आखिरी दिन हर वर्ग का परिवार मिट्टी के नाग बनाता है, जिसमें नाग देवी के साथ और दो नाग होते हैं जो अपने फन नाग देवी के कंधों पर फैलाए दिखाए जाते हैं। लोगों का विश्वास है कि इस पूजन से बच्चों की बीमारियां ठीक हो जाती हैं। नाग देवी, नाग देवता की छवियों से दीवारों और छत का श्रृंगार होता है। त्यौहार का समापन देवी की मूर्ति के विसर्जन से होता है।

मेघालय की खासी जनजाति में नाग पूजा की किवदंती प्रचलित है। नाग देवता को यूथेलेन कहते हैं, जिसका अर्थ पाइथन(Python) या बड़ा सांप होता है, जो अपने भक्तों से नरबलि मांगता है। जो बलि देते हैं, उन्हें समृद्धि मिलती है और जो नहीं देते, उनको नीची नजर से देखा जाता है।

भारत के बहुत से क्षेत्रों में नागों की कुल देवता के रूप में भी पूजा होती है। मध्यप्रदेश और गुजरात प्रदेशों में नाग देवता की पूजा अपने पूर्वजों के रूप में परिवार में जन्म, विवाह आदि विशेष अवसर पर करते हैं।

हिंदू संस्कृति में एक और परंपरा योग और कुंडलिनी से जुड़ी है, इसमें एक प्रकार की आध्यात्मिक ऊर्जा मानवीय आधार पर प्राप्त होती है। संस्कृत में इसका मतलब क्वाइल्ड स्नेक(Coiled Snake) से होता है और बहुत सी देवियां इसकी जीवंतता से जुड़ी हुई है, जैसे कि पाराशक्ति और भैरवी।

हिंदू पौराणिक मिथक में 5 नामों की प्रमुख भूमिकाए

आस्तिक

आस्तिक ऋषि जरत्कारु और नाग देवी मनसा के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार, आस्तिक ने नागों के राजा तक्षक की जान सर्प सत्र के दौरान बचाई थी। सर्प सत्र का आयोजन अपने पिता परीक्षित की तक्षक नाग द्वारा काटे जाने से हुई मृत्यु के प्रतिशोध स्वरूप किया गया था। आस्तिक ने राजा को सर्प जाति पर हो रहे अत्याचारों को खत्म करने के लिए राजी कर लिया। उस दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि थी, तब से यह दिन नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।

आदिशेष

आदिशेष को शेषनाग के नाम से भी जाना जाता है और वह नागों के राजा थे। पुराणों में आदिशेष की व्याख्या इस रूप में की गई है कि उन्होंने सारे ग्रहों और ब्रह्मांड को अपने पैरों पर धारण किया हुआ है और हमेशा भगवान विष्णु की महानता का बखान करते हैं। भगवान विष्णु को अक्सर शेषनाग पर विश्राम करते दिखाया गया है। संस्कृत में शेष का अर्थ बचा हुआ होता है- इसका मतलब है कि जब सृष्टि नष्ट हो जाती है, शेषनाग तब भी बचे रहते हैं। महाभारत के अनुसार शेषनाथ का जन्म ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से हुआ था। कद्रू ने 1000 सांपों को जन्म दिया जिनमें से शेष सबसे बड़े थे।

वासुकी

भगवान शिव की गर्दन से लिपटे हुए नाग का नाम वासुकी है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि शिव ने वासुकी को आशीर्वाद दिया था और उसे आभूषण की तरह धारण करते हैं। वासुकी नागों के राजा थे और उनके माथे पर एक मणि थी, जिसे नागमणि कहते हैं। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में है। हिंदुत्व का लोकप्रिय उपाख्यान जिसमें वासुकी ने भाग लिया था - समुद्र मंथन है, जिसमें उन्होंने दूध के समुद्र का मंथन किया था। इस उपाख्यान में देवता और राक्षसों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन किया था। वासुकी ने देवता और राक्षसों को इस बात की अनुमति दी थी कि समुद्र मंथन में उन्हें रस्सी के रूप में प्रयोग कर लिया जाए और अमृत निकाल लिया जाए।

कालिया

कालिया एक जहरीला नाग था, जो वृंदावन की यमुना नदी में रहता था। वह पानी में जहर उबालता था और उसकी बूँदें 4 league (1 league=3 मील ) तक पहुंचती थी। कोई भी मनुष्य, चिड़िया आदि नदी के पास नहीं जाता था। कालिया रावण के द्वीप का रहने वाला था लेकिन गरुड़ के भय से वृंदावन भाग आया था क्योंकि वह सांपों का शत्रु था। गरुड़ को एक योगी ने श्राप दिया था कि वह कभी वृंदावन में प्रवेश नहीं कर सकेगा। एक बार श्री कृष्ण अपने मित्रों के साथ नदी के किनारे खेल रहे थे अचानक उनकी गेंद नदी में गिर गई। कृष्ण नदी में कूद गए और कालिया अपने 110 फनों के साथ जहर उगलता बाहर निकल आया। सांप के साथ संघर्ष के बाद कृष्ण यमुना के नीचे से नाचते हुए ऊपर आए और वह कालिया के सिर पर सवार थे। यह घटना दक्षिण भारत में कलिंगा नर्तन के रूप में याद की जाती है।

मनसा देवी

मनसा देवी सांपों की एक हिंदू देवी है। इनकी मुख्य रूप से पूजा सांपों के काटने से बचाव, उपचार, संतानोत्पत्ति और समृद्धि के लिए की जाती है। यह वासुकी की बहन और ऋषि जरत्कारु की पत्नी थी। उन्हें कमल के फूल पर बैठे तथा सांपों से ढकी हुई या सांपों पर खड़ी हुई दिखाया जाता है, ।

कभी-कभी उन्हें गोद में बच्चा लिए भी दिखाया जाता है।

सरीसृपों का मानवीय उपयोग

प्रतीकात्मक और व्यवहारिक रूप से सरीसृपों के मानवीय उपयोग का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। प्रतीकात्मक रूप में पौराणिक कथाएं, धर्म और लोक साहित्य, दृश्यात्मक प्रतीक जैसे की दवाई के लिए सर्प से जुड़ा हुआ कैडुसिएस(Caduceus) आदि है। लोगों के सांपों के साथ मित्रता और सरीसृप विशेषताएं सारे विश्व में पाई जाती हैं। प्राचीन मिस्र के धर्म, हिंदुत्व और लैटिन अमेरिकी सभ्यताओं में मगरमच्छ का महत्व है।

सरीसृपों के व्यवहारिक इस्तेमाल में सांप के काटने पर विश रोधक इंजेक्शन का बनना, मुख्यतः चमड़े और मांस के लिए मगरमच्छ की खेती शामिल है। सरीसृप मानवीय जीवन के लिए अभी भी खतरा बने हुए हैं, सांप हर साल 10000 लोगों को मौत के घाट उतारते हैं, जबकि मगरमच्छ हर साल दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बनते हैं।

सरीसृप और पौराणिक-धार्मिक सन्दर्भ

सारे संसार में वास्तविक सरीसृप जैसे कि मगरमच्छ और सांप एवं काल्पनिक जैसे कि ड्रैगंस(Dragons) पौराणिक और धार्मिक संदर्भ में दिखाई देते हैं। ये हिंदुत्व, चीनी और अमेरिका के पौराणिक संदर्भ में मिलते हैं। मगरमच्छ को लगभग सभी धर्मों में स्थान मिला है। प्राचीन मिस्र में सोबेक(Sobek) मगरमच्छ के सिर वाला देवता है। हिंदू धर्म में वरुण, एक हिंदू और वैदिक देवता है, जो मकारा पर सवारी करते हैं, जो मगरमच्छ की तरह का जल जीव है। गोवा में मगरमच्छ की पूजा उनके सालाना उत्सव में की जाती है।

चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में सर्प पूजा को संदर्भित करने वाला एक चित्र दिखाया गया है। (Prarang)
द्वितीय चित्र में कृष्ण भगवान् के साथ पूजा जाने वाला कालिया सर्प दिखाया गया है, जिसे मिथक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने दण्डित किया था। (Flickr)
तीसरे चित्र के पूजन लिए तैयार की गयी सर्प मूर्तियों को दिखाया गया है। (Unsplash)
चौथे चित्र में नाग पंचमी पर सर्प पूजन के बाद सर्प देव मूर्तियों को दृश्यांवित किया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में भगवान् शिव के साथ पूजे जाने वाले शेषनाग को दिखाया गया है। (Wikimedia)
सन्दर्भ:
https://www.freepressjournal.in/cmcm/5-nagas-and-their-prominent-roles-in-hindu-mythology
https://en.wikipedia.org/wiki/Snake_worship#India
https://en.wikipedia.org/wiki/Human_uses_of_reptiles#In_mythology_and_religion
http://www.thinkaboutit-aliens.com/reptilesserpentslizards-history-mythology-religion/
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