भाषा स्थानांतरण के फलस्वरूप गुम हो रही हैं विभिन्न क्षेत्रीय बोलियां

ध्वनि 2- भाषायें
07-07-2020 04:50 PM
भाषा स्थानांतरण के फलस्वरूप गुम हो रही हैं विभिन्न क्षेत्रीय बोलियां

वर्तमान समय में भारत में रहने वाली अधिकांश आबादी हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग करती है। किंतु एक समय ऐसा भी था जब हर समुदाय, कस्बे या क्षेत्र में उसकी अपनी बोली बोली जाती थी। आज भाषा स्थानांतरण के फलस्वरूप ये क्षेत्रीय बोलियां कहीं गुम सी हो गयी हैं। भाषा स्थानांतरण, जिसे भाषा हस्तांतरण, भाषा प्रतिस्थापन या भाषा आत्मसात के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत आमतौर पर समय की विस्तारित अवधि में एक भाषा बोलने वाला समुदाय एक अलग भाषा बोले जाने वाले में क्षेत्र में स्थानांतरित होता है। अक्सर, जिन भाषाओं को उच्च दर्जे का माना जाता है, वे अन्य भाषाओं की कीमत पर स्थिर होती हैं या फैलती हैं तथा जो भाषा अपने स्वयं के वक्ताओं द्वारा निम्न-दर्जे की मानी जाती हैं, वहाँ की जनसंख्या अपनी स्वयं की भाषा के स्थान पर अन्य भाषा को अपनाने लगती है। यह एक सामाजिक घटना है, जहां एक भाषा किसी समाज में बोली जाने वाली भाषा को प्रतिस्थापित कर देती है। यह प्रक्रिया समाज की संरचना और आकांक्षाओं में अंतर्निहित परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है। परिभाषा के अनुसार, एक प्रणाली के रूप में यह पुरानी भाषा की गतिशीलता के कारण हुआ संरचनात्मक परिवर्तन नहीं है। जब कोई समुदाय अन्य भाषायी समुदाय के संपर्क में आता है तब नई भाषा को अपनाया जाता है। भाषा बदलाव के परिणामस्वरूप नयी अपनाई गयी भाषा का विस्तार होता है तथा कुछ या सभी वक्ताओं जोकि पुरानी भाषा बोलते थे, के द्वारा पुरानी भाषा का हास्र या नुकसान होने लगता है। भाषा परिवर्तन एक सचेत नीति का उद्देश्य हो सकता है लेकिन समान रूप से यह एक ऐसी घटना हो सकती है जो अनियोजित और अक्सर अस्पष्टीकृत होती है। भाषा परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन की एक गतिशील घटना है और इसलिए समाजशास्त्र का विषय है।

सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए जाने वाले इसके कार्य का कोई सामान्य सिद्धांत नहीं है। वर्तमान समय में भाषा परिवर्तन के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाएं तेजी से गुमनामी में डूब रही हैं। उत्तर प्रदेश की प्रमुख बोलियाँ जाटू, गुर्जरी, अहिरी और ब्रजभाषा जो कई वर्षों से पश्चिमी यूपी में प्रचलित थीं अब शायद ही उपयोग में हैं, जिन्हें क्षेत्र में बोली जाने वाली प्रचलित भाषा जिसे इतिहासकारों ने ‘हिंदुस्तानी’ भाषा का नाम दिया है, के द्वारा विस्थापित कर दिया गया है। इससे इन भाषाओं से जुड़ी कई लोक परंपराओं पर भी असर पड़ा है, जो क्षेत्रीय भाषाओं की तरह गुमनामी की कगार पर हैं। आजादी के समय, इन बोलियों की विशिष्ट पहचान थी। उदाहरण के लिए, सहारनपुर से बागपत तक जाटू बोली गयी। गुर्जरों की भाषा गुर्जरी, मथुरा से गाजियाबाद तक बोली जाती थी, और ब्रजभाषा के अलग-अलग रूप थे, जो मथुरा, नोएडा और गाजियाबाद क्षेत्र में बोली जाती थीं। हालांकि, पीढ़ी-दर-पीढी, इन भाषाओं का उपयोग कम होता चला गया। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो इनमें से अधिकांश बोलियों का अस्तित्व बहुत जल्द समाप्त हो जायेगा। भाषाविदों का कहना है कि विभिन्न कारकों के कारण इन भाषाओं ने अपनी चमक खो दी है। इसका मुख्य कारण आमतौर पर हिंदुस्तानी भाषा जोकि हिंदी, उर्दू, और कुछ क्षेत्रीय बोलियों का समामेलन है, के उद्भव को माना जाता है।

हिंदुस्तानी एक इंडो-आर्यन (Indo-Aryan) भाषा है, जिसका आधार मुख्य रूप से दिल्ली की पश्चिमी हिंदी बोली से है, जिसे खडी बोली भी कहा जाता है। यह दो मानकीकृत, पंजीकृत भाषाओं आधुनिक मानक हिंदी और आधुनिक मानक उर्दू के साथ एक मानक भाषा है। एकीकृत भाषा के रूप में हिंदुस्तानी भाषा की अवधारणा को महात्मा गांधी द्वारा समर्थन दिया गया था। पुरानी हिंदी के रूप में इस भाषा की पहली लिखित कविता, 769 ईस्वी के शुरुआती समय की हैं। भारत में दिल्ली सल्तनत की अवधि के दौरान, पुरानी हिंदी का प्राकृत आधार फ़ारसी के शब्दों के साथ समृद्ध हुआ, जो वर्तमान में हिंदुस्तानी के रूप में विकसित हुआ। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदुस्तानी भाषा भारतीय राष्ट्रीय एकता की अभिव्यक्ति बन गयी और उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की आम भाषा के रूप में बोली जाने लगी, जो बॉलीवुड फिल्मों (Bollywood movies) और गीतों की हिंदुस्तानी शब्दावली में परिलक्षित होती है। हिंदुस्तानी भाषा की शब्दावली प्राकृत (संस्कृत का एक वंशज) से ली गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वतंत्रता के बाद के युग से, बॉलीवुड फिल्मों में तथा साथ ही स्थानीय अखबारों जैसे मीडिया प्लेटफार्मों (media platforms) में हिंदुस्तानी के उपयोग से इसकी अपील बढी। इसके अलावा सरकार ने भी हिंदी को एक सामान्य भाषा के रूप में लागू करने के अपने प्रयास में, क्षेत्रीय संस्कृति और परंपराओं को धूमिल कर दिया। मातृभाषा वह है जो व्यक्ति अपनी माता और दादी से सीखता है, यह वो नहीं है जिसे सरकार हम पर लागू करना चाहती है। भाषा की हत्या होने के साथ ही क्षेत्र की संस्कृति की भी मौत हो रही है। हमें इस क्षति से बचने की आवश्यकता है जिससे पहले कि बहुत देर हो जाए।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में हिंदी भाषा दिखाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में भारत के विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषाओँ को मानचित्र के माध्यम से दिखाया गया है। (Prarang)
3. तीसरे चित्र में नृत्य-गान, बॉलीवुड, सांस्कृतिक विविधताओं के उत्कीर्णन से बढ़ने वाली हिंदी को दिखाया गया है। (Prarang)
संदर्भ:
https://www.oxfordbibliographies.com/view/document/obo-9780199772810/obo-9780199772810-0193.xml
https://en.wikipedia.org/wiki/Hindustani_language
https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/The-vanishing-languages-of-western-UP/articleshow/46317133.cms

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