शरणार्थियों के लिए महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है भारत

सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान
23-06-2020 01:05 PM
शरणार्थियों के लिए महत्वपूर्ण आश्रय स्थल है भारत

प्रत्येक वर्ष 20 जून को विश्व शरणार्थी दिवस मनाया जाता है। 2017 की शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त (United Nations High Commissioner for Refugee०s-UNHCR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2,00,000 शरणार्थियों की मेजबानी कर रहा है। ये शरणार्थी म्यांमार, अफगानिस्तान, सोमालिया, तिब्बत, श्रीलंका, पाकिस्तान, फिलिस्तीन और बर्मा जैसे देशों से आते हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत पूरे क्षेत्र के लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है। सन 1951 में शरणार्थियों के लिए इनसे संबंधित एक सम्मेलन जिसे शरणार्थी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है, प्रस्तावित किया गया। यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की बहुपक्षीय संधि है जो परिभाषित करती है कि एक शरणार्थी कौन है? यह संधि यह भी निर्धारित करती है कि शरणार्थियों को क्या अधिकार प्राप्त होंगे तथा इन लोगों के प्रति शरण देने वाले राष्ट्रों की जिम्मेदारियां क्या-क्या होंगी। यह संधि यह भी निर्धारित करती है कि कौन से लोग शरणार्थी के रूप में योग्य नहीं हैं, जैसे युद्ध अपराधी।

सम्मेलन को 28 जुलाई 1951 को एक विशेष संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में मंजूरी दी गई थी, और 22 अप्रैल 1954 को लागू किया गया था। यह शुरू में 1 जनवरी 1951 (द्वितीय विश्व युद्ध के बाद) से यूरोपीय शरणार्थियों की रक्षा करने के लिए सीमित था, हालांकि बाद में राज्यों ने एक घोषणा की कि, प्रावधान अन्य स्थानों पर शरणार्थियों के लिए भी लागू होंगे। शरणार्थियों के लिए भले ही भारत एक सुरक्षित आश्रय स्थल रहा है लेकिन इसने 1951 की संयुक्त राष्ट्र की इस संधि में हस्ताक्षर नहीं किये हैं जिसके अनेकों कारण हैं।

भारत सहित अधिकांश दक्षिण एशियाई देशों के पास शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए एक राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय नीति नहीं है। पिछले दशकों में, इस अजीबोगरीब दक्षिण एशियाई व्यवहार के कई कारण सामने आये हैं। 1947 में भारत का विभाजन दुनिया के सबसे ऐतिहासिक और दर्दनाक जनसंख्या आदान-प्रदानों में से एक था। पाकिस्तान से विस्थापित हुए लाखों लोगों ने अपने आप को दिल्ली, पंजाब और बंगाल के शरणार्थी शिविरों में स्थापित किया। संयुक्त राष्ट्र का 1951 शरणार्थी सम्मेलन, उस समय मौजूद एकमात्र शरणार्थी साधन था, जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विस्थापित हुए लोगों को संरक्षण देने के लिए बनाया गया था किंतु सम्मेलन की यूरोप-केंद्रित (Euro-centric) प्रकृति अपनी सीमाओं में स्पष्ट थी - यह 1 जनवरी 1951 से पहले यूरोप या कहीं और होने वाली घटनाओं पर लागू थी और उन्हें शरणार्थी का दर्जा देती थी जिन्होंने अपने मूल राज्य या राष्ट्रीयता की सुरक्षा खो दी है। इसका अनिवार्य रूप से मतलब था कि 1951 का सम्मेलन, अपने मूल रूप में, केवल उन लोगों पर लागू होता था जो राज्य-प्रायोजित (या राज्य-समर्थित) उत्पीड़न छोड़कर भाग गए थे।

भारत का विभाजन और 1947 का प्रवास, सम्मेलन की समयसीमा के भीतर, राज्य-समर्थित/प्रायोजित उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आया था। जिन लोगों ने पलायन किया था, उन्हें 'राज्य-प्रायोजित उत्पीड़न' या 'युद्ध' के बजाय 'सामाजिक उत्पीड़न' के कारण ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था। इस प्रकार इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खारिज कर दिया गया। इसने 1951 शरणार्थी सम्मेलन के प्रति एक समग्र संदेह पैदा किया। सम्मेलन को अपनाये जाने के बाद उत्पन्न हुई नई शरणार्थी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए 1967 में संयुक्त राष्ट्र ने अंततः अपने शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित अपने प्रोटोकॉल (Protocol) में 1 जनवरी 1951 की तिथि को हटा दिया। अंतर्राष्ट्रीय आलोचना और आंतरिक मामलों में बाह्य और अनावश्यक हस्तक्षेप के डर से जवाहरलाल नेहरू के अधीन भारत ने 1951 के सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं करने का निर्णय लिया।

सम्मेलन पर हस्ताक्षर करने वाले देश के लिए यह आवश्यक है कि वह शरणार्थियों के रूप में स्वीकार किये गये लोगों के प्रति आतिथ्य और आवास के एक न्यूनतम मानक को स्वीकार करें। ऐसा करने में विफल होने पर उस देश को आज भी अनेक अंतर्राष्ट्रीय आलोचना का सामना करना पडता है। दक्षिण एशिया में सीमाओं की अनुपयुक्त प्रकृति, निरंतर जनसांख्यिकीय परिवर्तन, गरीबी, संसाधन संकट और आंतरिक राजनीतिक असंतोष आदि के कारण भारत के लिए प्रोटोकॉल को स्वीकार करना असंभव है। 1951 के सम्मेलन या इसके प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का मतलब होगा कि भारत की आंतरिक सुरक्षा, राजनीतिक स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की अंतर्राष्ट्रीय जांच की अनुमति देना।

तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य दमन के कारण लगभग 100 लाख लोग 1971 के अंत तक भारत में शरण लेने की मांग कर रहे थे। इसने भारत के लिए असाधारण समस्याएँ पैदा कीं, और यह महसूस किया गया कि बड़े पैमाने पर संख्या से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, भारत में लगभग 8,000 से 11,684 अफगान शरणार्थी हैं, जिनमें से अधिकांश हिंदू और सिख हैं। भारत सरकार ने भारत में शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त को उनके लिए एक कार्यक्रम संचालित करने की अनुमति दी है। 2015 में, भारत सरकार ने 4,300 हिंदू और सिख शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की। अधिकांश अफगानिस्तान से थे, और कुछ पाकिस्तान से। 1947 में भारत के विभाजन के समय, मुख्य रूप से पूर्वी बंगाल के बहुत से लोग, पश्चिम बंगाल चले गए थे। 1947 से 1961 तक, पूर्वी बंगाल की जनसंख्या का प्रतिशत जो कि हिंदू था, 30% से घटकर 19% हो गया। 1991 में, यह घटकर 10.5% रह गया था। भारत के विभाजन के बाद, दो नवगठित राष्ट्रों के बीच कई महीनों के दौरान बड़े पैमाने पर जनसंख्या का आदान-प्रदान हुआ। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाएं स्थापित हो जाने के बाद, लगभग 145 लाख लोग एक देश से दूसरे देश में चले गए।

1951 की जनगणना के आधार पर, विभाजन के तुरंत बाद 72.26 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान चले गए, जबकि 72.49 लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान से भारत आ गए। लगभग 112 लाख प्रवासियों ने पश्चिमी सीमा को पार किया, जिससे कुल प्रवासी आबादी का 78% हिस्सा बना। पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम संवैधानिक और कानूनी भेदभाव का सामना करते हैं। नतीजतन, पाकिस्तान के हिंदुओं और सिखों ने भारत में शरण मांगी। 21 वीं सदी में भारत में कई शरणार्थी पहुंचे। भारतीय शहरों में लगभग 400 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी हैं।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र - भारत में शरणार्थी शिविर में भोजन ग्रहण करते हुए शरणार्थी । (Publicdomainpictures)
2. दूसरा चित्र - विभाजन के दौरान पाकिस्तान से पलायन के दौरान भारत आते हुए शरणार्थी। (wikimedia)
3. तीसरा चित्र - विभाजन के दौरान पाकिस्तान से पलायन के दौरान पाकिस्तान जाते हुए शरणार्थी। (wikipedia)

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2YnlMmS
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Refugees_in_India
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Convention_Relating_to_the_Status_of_Refugees

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.