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उत्तर प्रदेश में लोक संगीत का खजाना है, जहां प्रत्येक जिले में अद्वितीय संगीत परंपराएं मौजूद हैं। लोक गीतों ने सामूहिक जीवन और सामूहिक श्रम को अधिक सुखद बना दिया है और स्थानीय बोलियों और भाषाओं के माध्यम से समाज में समन्वित हुए हैं। ये आमतौर पर पीढ़ी से पीढ़ी तक मौखिक रूप से पारित किए गए थे, लेकिन अब ये परंपरा धीरे धीरे खत्म हो रही है क्योंकि कई स्थानीय बोलियों के गायब होने की वजह से कई लोक संगीत के पूरे वर्ग संपूर्ण रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
जाटू, गुर्जरी, अहिरी और ब्रज भाषा जैसे क्षेत्रों में कई स्थानीय बोलियों के विलुप्त होने का मतलब है कि इन भाषाओं में लोक गीतों की परंपरा भी खो गई है। उदाहरण के लिए वर्तमान समय में बहुत कम कलाकार हैं जो आल्हा उदल, रागिनी, स्वांग और ढोला जैसी प्रस्तुतियाँ दे सकते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के पूरे पश्चिमी इलाके में एक भी ढोला गायक नहीं बचा है। इसी तरह, स्वांग कलाकार भी काफी कम रह गए हैं। बस अब रागिनी एकमात्र शैली बची है और अभी भी इसके गीतों को रेडियो स्टेशन (Radio Station) में बजाया जाता है। वहीं जहाँ तक आल्हा का सवाल है, पूरे उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इसका एक ही गायक मौजूद है। आल्हा प्रसंगवश से 52 कहानियों का एक समूह है और 12 वीं शताब्दी ईस्वी तक के सैन्य इतिहास से संबंधित है।
इस तेजी से लुप्त होती परंपरा को बनाए रखने के लिए, सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेस हिस्टोरिकल रिसर्च (Centre for Armed Forces Historical Research) ने 33 कलाकारों की कहानी को अहमद नगर गाँव के निवासी विनोद कुमार बहल नाम के कलाकार की आवाज़ में प्रलेखित किया है। इस बीच, राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, दिल्ली में पश्चिमी उत्तरप्रदेश की अमूर्त सांस्कृतिक संपत्ति के दस्तावेजीकरण का काम किया जा रहा है और इन्होंने कुछ आल्हा और स्वांग कलाकारों को विस्तृत शोध के माध्यम से खोजा है। संगीत के अधिकांश प्रस्तुतिकरण कई उद्देश्यों को पूरा करते थे। जबकि कई को विभिन्न मौसमों की शुरुआत में घोषणा करने के लिए गाया जाता था, ये गीत मौसमी त्योहारों के उत्सव का भी हिस्सा थे और धार्मिक और साथ ही विवाह समारोहों का एक अभिन्न हिस्सा थे।
उत्तर प्रदेश के लोक संगीत निम्नलिखित हैं:
• सोहर :- इस लोकगीत में जीवन चक्र के प्रदर्शन को संदर्भित किया जाता है इसलिए इसे बच्चे के जन्म की ख़ुशी में गाया जाता है।
• कहारवा :- यह विवाह समारोह के समय कहार जाति द्वारा गाया जाता है।
• चानाय्नी :- एक प्रकार का नृत्य संगीत।
• नौका झक्कड़ :- यह नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है और नाई लोकगीत के नाम से भी जाना जाता है।
• बनजारा और न्जावा :- यह लोक संगीत रात के दौरान तेली समुदाय द्वारा गाया जाता है।
• कजली या कजरी :- यह महिलाओं द्वारा सावन के महीने में गाया जाता है। यह अर्द्ध शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ है और इसकी गायन शैली बनारस घराने से मिलती है।
• जरेवा और सदावजरा सारंगा :- इस तरह के लोक संगीत लोक उद्देश्यास्थापना (Folk Stones) के लिए गाये जाते हैं।
इन लोक गीतों के अलावा, गज़ल और ठुमरी (अर्द्ध शास्त्रीय संगीत का एक रूप, जो शाही दरबार में बहुत प्रचलित था) और क़व्वाली (सूफी स्वर या कविता का एक रूप है, जो भजनों से विकसित हुआ है) और मंगलिया अवध क्षेत्र में काफी लोकप्रिय रहे थे। अब सवाल यह उठता है कि इन लोक गीतों को संरक्षित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, निम्नलिखित कुछ सुझाव है :
1. सुनिश्चित करें कि दुसरे उस संगीत को सीखें (शिक्षक से शिष्य) और उन्हें दूसरों के सामने गाएं।
2. कोशिश करें की लोक गीत को आधुनिक रूप दिया जा सकें, इससे गीत के भीतर धुनों और सामान्य संदेश को जीवित रखने में मदद मिल सकती है।
3. गीतों और संगीतों को लिख कर संरक्षित करें। संगीत को मानक संगीत संकेतन या टैब (Tab) के कुछ प्रणाली का उपयोग करके लिखा जा सकता है, जैसे कि वे गिटार टैब (Guitar tab), बैंजो टैब (Banjo tab), मैंडोलिन टैब (Mandolin tab) या आपके पास जो भी वाद्य यंत्र मौजूद हो।
4. इन संगीतों को अभिलेखित करें। ये दीर्घकालिक इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में होने चाहिए।
लोक गीतों को संरक्षित करने के साथ साथ हम अपनी परंपरा को भी सुरक्षित रख सकते हैं। साथ ही हमारी आने वाली पीढ़ी को संगीत के माध्यम से अपने इतिहास और अपनी संस्कृति की एक विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में स्वाँग गीत का चित्रण है।
2. दूसरे चित्र में सावन के दौरान गाये जाने वाले लोक गीत का चित्रण है।
3. तीसरे चित्र में ग्रामीण स्त्रियां घेरा बनाकर बधाई के लोक गीत गाते हुए चित्रित हैं।
4. चौथे चित्र में सावन और बसंत के दौरान गाये जाने वाले सखी सहेली लोक गीत हैं।
5. पांचवे चित्र में स्वाँग का चित्रण है।
6. अंतिम चित्र में आल्हा गीत के प्रदर्शन का चित्रण है।
संदर्भ :-
1. https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/list-of-folk-music-of-uttar-pradesh-1531391804-1
2. https://timesofindia.indiatimes.com/city/meerut/Folk-songs-dying-a-slow-death-in-west-UP/articleshow/46343306.cms
3. https://www.quora.com/What-are-the-four-ways-to-preserve-folk-songs
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